अरबों रुपए का फंड, पर पैसा खर्च ही नहीं कर पा रहे अफसर | Funds worth billions of rupees, but officers are unable to spend money | Patrika News

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अरबों रुपए का फंड, पर पैसा खर्च ही नहीं कर पा रहे अफसर | Funds worth billions of rupees, but officers are unable to spend money | Patrika News


योगेंद्र सेन भोपाल. 1984 भोपाल गैस त्रासदी। एक ऐसा जख्म जिसमें हजारों लोगों की जानें चली गईं। हजारों लोग अपंग हो गए। 37 साल हो गए। जब गैस पीडि़तों के लिए स्वास्थ्य, सामाजिक, आर्थिक पुनर्वास को लेकर चल रही योजनाओं की पड़ताल की तो सामने आया कि इनमें से कई योजनाएं तो कागजों में ही चल रही हैं। जो योजनाएं लागू हुईं वे भी आधी-अधूरी। पीडि़त अब भी भटक रहे हैं।

गैस पीडि़तों के लिए जो योजनाएं चल रही हैं, उनमें कई का तो पैसा ही खर्च नहीं कर पाए। जिम्मेदारों की लापरवाही के चलते पीडि़तों को पूरी तरह से लाभ नहीं मिल पा रहा। जबकि इन योजनाओं में अरबों रुपए का फंड रखा गया था। पीडि़त इतने सालों बाद अपने हक के लिए भटक रहे हैं। इस त्रासदी का असर इतना घातक था, कि कोरोना की वजह से भोपाल में जितनी मौतें हुई हैं उनमें सामान्य मरीजों की अपेक्षा गैस पीडि़तों की मृत्युदर 5 गुना ज्यादा है।

आवास मिला न पेंशन
त्रासदी में उमा देवी ने बेटियों, पति को खोया। स्वास्थ्य सुविधाओंं के नाम पर कुछ खास मदद नहीं मिली। 55 वर्षीय उमा देवी गैस राहत विभाग के रिकार्ड में गैस पीडि़त विधवा के रूप में दर्ज हैं। नियमों के तहत आवास और पेंशन की सुविधा दी जानी थी, लेकिन इनके पास कोई आसरा नहीं है।

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राशन के लिए बहुत चक्कर
गैस पीडि़त 70 वर्षीय मुन्नी देवी का पेंशन और राशन के लिए योजनाओं में नाम तो जोड़ दिया, लेकिन इसे पाने के लिए बहुत चक्कर काटने पड़ते हैं। हालात ये हैं कि गुजारा करना मुश्किल हो जाता है। करीब नौ महीने तक पेंशन की राशि नहीं मिली थी। जब ये शुरू होने को आई तो राशन के लिए परेशान होना पड़ा।

कांग्रेस सरकारों के कारण पीडि़तों का पक्ष कमजोर हुआ
मध्यप्रदेश के गैस राहत एवं पुनर्वास मंत्री विश्वास सारंग कहते हैं— हमारी सरकार ने पीडि़तों के चिकित्सकीय, सामाजिक, आर्थिक पक्ष के उन्नयन के लिए लगातार काम किया है। उस समय केंद्र की राजीव गांधी और मप्र में अर्जुन सिंह की कांग्रेस सरकारों ने वारेन एंडरसन को बचाने का काम किया। गैस पीडि़तों का पक्ष उन्हीं के कारण कमजोर हुआ। हमारी ही सरकार ने क्यूरिटी पिटीशन लगाकर मप्र सरकार को इस मामले में पार्टी बनाया। वर्ना अब तक को मप्र सरकार इसमें शामिल ही नहीं थी।

भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई योजनाएं
इधर भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढिंगरा का कहना है— जो भी योजनाएं बनीं वे गैस पीडि़तों को ध्यान में रखकर बनाई ही नहीं गईं। ये सफेद हाथी बनकर रह गई हैं। स्वास्थ्य और पुनर्वास की योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गईं। कई योजनाओं का तो फंड ही खर्च नहीं कर पाए। 37 साल बाद भी पीडि़तों को लाभ नहीं मिल सका।

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1 – योजना – आर्थिक पुनर्वास (प्रथम कार्य योजना)
क्या करना था – गैस पीडि़तों को रोजगार देने के लिए ट्रेनिंग देना और आर्थिक रूप से मदद करना। आइटीआइ में विशेष इंतजामों के ट्रेनिंग की व्यवस्था एनजीओ के हाथ दी गई।
बजट – 21.18 करोड़
कितनों को लाभ देना था – गैस पीडि़त और उनके आश्रितों को
अभी क्या स्थिति – वर्तमान में इस पर काम नहीं हो रहा है।

2- योजना – सामाजिक पुनर्वास
क्या करना था – पेंशन, शिक्षा, पर्यावरण के लिए इसके तहत काम होना था।
बजट – 85.20 करोड़
कितनों को लाभ देना था – गैस पीडि़त और उनके आश्रितों को
अभी क्या स्थिति – कई काम अब भी अधूरे, योजना के तहत आवेदन लंबित हैं।

3- योजना- गैस पीडि़तों के स्वाथ्य सुधार की योजना
क्या करना था – नि:शुल्क स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराना। राज्य सरकार ने 6 बड़े अस्पताल बनाए। सुपर स्पेशलिटी के रूप में बीएमएचआरसी का निर्माण हुआ।
बजट- करीब तीन सौ करोड़।
हाल- सुविधाओं की कमी। विशेषज्ञ डॉक्टर ही नहीं।

4- योजना- योग केन्द्र
क्या करना था- 36 योग केन्द्र बनाने थे।
बजट- 3.68 करोड
क्या हुआ- 7 केन्द्र बने। वहां भी योग नहीं हो रहा है।

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