इन्फोसिस को खरीदने के लिए 2 करोड़ का था ऑफर, आज कंपनी का मार्केट कैप 6.5 लाख करोड़

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इन्फोसिस को खरीदने के लिए 2 करोड़ का था ऑफर, आज कंपनी का मार्केट कैप 6.5 लाख करोड़

हाइलाइट्स

  • 1990 में इन्फोसिस को 2 करोड़ रुपये में खरीदने की हुई थी पेशकश
  • कंपनी के फाउंडर एनआर नारायण मूर्ति कंपनी को बेचना नहीं चाहते थे
  • आज इन्फोसिस का मार्केट कैप 6.5 लाख करोड़ रुपये पहुंच चुका है

नई दिल्ली
देश की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी इन्फोसिस (Infosys) के फाउंडर एनआर नारायण मूर्ति (NR Narayana Murthy) का कहना है कि 1990 में कपनी को महज 2 करोड़ रुपये में खरीदने की पेशकश हुई थी। लेकिन वह कंपनी को बेचना नहीं चाहते थे। उन्होंने अपने को-फाउंडर की हिस्सेदारी खरीदने की पेशकश की लेकिन उन्होंने कंपनी के साथ बने रहने का फैसला किया। आज इन्फोसिस का मार्केट कैप 6.5 लाख करोड़ रुपये पहुंच चुका है।

नारायण मूर्ति ने मनीकंट्रोल को दिए गए इंटरव्यू में कहा कि फाउंडर्स के संकल्प और 1991 के आर्थिक सुधारों के बिना कंपनी इस मुकाम पर नहीं पहुंच सकती थी। उन्होंने कहा कि आर्थिक सुधारों ने इन्फोसिस जैसी कंपनियों को बाजार में अपना स्थान बनाने का मौका दिया। इसकी वजह यह है कि कंपनी को विदेश जाने और कंप्यूटर आयात करने के लिए सरकार या आरबीआई की अनुमति पर निर्भर नहीं रहना पड़ा।

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आर्थिक उदारीकरण से पहले का दौर
आर्थिक सुधारों से पहले के दौर को याद करते हुए उन्होंने कहा कि कंप्यूटर, कंप्यूटर एक्सेसरीज और सॉफ्टवेयर आयात करने की परमिशन लेने के लिए दिल्ली जाना पड़ता था। इसमें काफी समय बर्बाद होता था। साथ ही हमें मुंबई में आरबीआई ऑफिसेज के भी चक्कर लगाने पड़ते थे। उन दिनों कंप्यूटर आयात करना किसी टॉर्चर से कम नहीं था। बैंकों की समझ में सॉफ्टवेयर नहीं आता था और वे फिजिकल कोलैट्ररल मांगते थे। ऐसे में बैंकों से टर्म लोन और वर्किंग कैपिटल लोन हमारी इंडस्ट्री के लिए नहीं था।

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नारायण मूर्ति ने कहा कि आर्थिक उदारीकरण के बाद बिजनस की अधिकांश बाधाओं को खत्म कर दिया गय़ा था। इससे कंपनी में नई ऊर्जा का सूत्रपात हुआ। उन्होंने कहा, ‘इसलिए मैं अक्सर कहता हूं कि इन्फोसिस उदारीकरण का फायदा उठाने वाली कंपनियों का सबसे अच्छा उदाहरण है।’ किसी भी देश की समृद्धि में सरकार और कॉरपोरेट की अहम भूमिका होती है। 1991 में सरकार ने अपना काम किया और उसके बाद आने वाली सरकारों ने उसे जारी रखा।

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