देशद्रोह का इलज़ाम लगाकर मनमोहन सिंह से कैसे मिले मोदी जी

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एक कहावत है कि बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी. कुछ ऐसा ही वाकया मान्नीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के साथ हुआ.

दरअसल मौक़ा था संसद पर हुए हमले की बरसी का. आज से 16 साल पहले 13 दिसम्बर 2001 को भारतीय संसद पर हमला किया गया था और उसमे 6 पुलिस कर्मियों सहित सांसदों कि सुरक्षा में लगे जवान भी शहीद हो गए थे, साथ ही संसद के एक कर्मचारी की भी मृत्यु हो गयी थी. उस दिन से आजतक हर साल इस दिन शहीदों को श्रद्धांजली दी जाती है.

इसी मौके पर आज सरकार और विपक्ष के सभी नेता इखट्टे हुए थे. इस कार्यक्रम में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दोनों ही शामिल हुए थे. जब दोनों नेता आमने-सामने आये तो हर किसी की नज़र इनपर टिक गयी.

इस ऊहापूह की वजह थी तीन दिन पुराना मोदी जी का एक बयान जिसमे उन्होंने डॉ मनमोहन सिंह पर पकिस्तान के उच्चायुक्त के साथ मिलकर गुजरात चुनाव में भाजपा को हराने की साज़िश रचने का इलज़ाम लगाया था. उन्होंने कहा था कि ये देश के और जनता के साथ गद्दारी है. मुझे इन सवालों के जवाब चाहिए.

मोदी जी के इन आरोपों का जवाब मनमोहन सिंह ने बड़े ही कड़े लहजे में दिया था और कहा था कि “प्रधानमंत्री अपने पद की गरिमा भूलकर बात कर रहे हैं. उनके इस रवैये ने मुझे बहुत दुखी किया है” जिसके बाद हर तरफ इन बयानों की चर्चा होने लागी.

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मगर आज जब ये दोनों दिग्गज नेता संसद भवन में हुए हमले की बरसी के मौके पर एक दूसरे से मिले तो बेहद शालीनता से पेश आये. मनमोहन सिंह ने औपचारिक तौर पर मोदी जी का अभिवादन किया और माहौल को सामान्य बनाए रखने की कोशिश की. इसके अल्वा मोदी जी से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और सोनिया गाँधी ने भी मुलाक़ात की मगर राजनीती से समबन्धित किसी विषय को नही कुरेदा.

केन्द्रिय मंत्री रवि शंकर प्रसाद को भी राहुल के साथ हँसते मुस्कुराते देखा गया.

वहीँ इस मौके पर विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि इसी दिन पाकिस्तानी आतंकवादियों ने हमारे लोकतंत्र पर हमला किया था. उन्होंने कहा कि सभी राजनैतिक दल देश के लोकतंत्र की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं और लोकतंत्र को खत्म नहीं होने देंगे. आजाद ने कहा कि पाकिस्तान कितनी भी कोशिश करले लेकिन भारत का जो तिरंगा है वो हमेशा ऊंचा रहेगा. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी शहीदों को याद किया.