नोएडा प्राधिकरण ने न्यायालय से कहा, बिल्डरों के बकाया पर ब्याज सीमा तय किये जाने से उसे भारी नुकसान

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नोएडा प्राधिकरण ने न्यायालय से कहा, बिल्डरों के बकाया पर ब्याज सीमा तय किये जाने से उसे भारी नुकसान

नयी दिल्ली, 20 सितंबर (भाषा) नोएडा प्राधिकरण ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय के समक्ष कहा कि उसे शीर्ष अदालत के पिछले साल के आदेश से काफी नुकसान हो रहा है और उसका कामकाज लगभग ठप सा हो गया है। न्यायालय ने पिछले साल अपने आदेश में प्राधिकरण को विभिन्न रियल एस्टेट कंपनियों को पट्टे पर दी गयी जमीन पर बकाया के मद में ब्याज दर आठ प्रतिशत तय कर दी थी।

प्राधिकरण ने आरोप लगाया कि विभिन्न बिल्डरों ने न्यायालय से तथ्यों को छिपाया है। इसकी वजह से 10 जून, 2020 का आदेश नोएडा और ग्रेटर नोएडा क्षेत्र की रियल एस्टेट कंपनियों के पक्ष में आया।

न्यायाधीश यू यू ललित और न्यायाधीश अजय रस्तोगी की पीठ के समक्ष नोएडा प्राधिकरण की तरफ से पेश अधिवक्ता रवीन्द्र कुमार ने कहा कि न्यायालय के पिछले साल 10 जून के आदेश में 2010 के बाद से बिल्डरों के साथ अनुबंध के तहत वसूले जाने वाले ब्याज में कटौती की गई। इस अनुबंध के जरिये राज्य की भूमि का बड़ा हिस्सा बिल्डरों को निजी उपयोग के लिये उपलब्ध कराया गया।

कुमार के अनुसार यह कहा गया कि नोएडा प्राधिकरण ने मामले में न्यायालय के समक्ष अपना पक्ष रखा था। लेकिन सचाई यह है कि एक बिल्डर (एसीई ग्रुप) जिसकी याचिका पर यह आदेश आया था उसने निचले स्तर के अधिकारियों के साथ साठगांठ की जिससे प्राधिकरण को कोई नोटिस नहीं दिया गया। इसकी वजह से उचित जवाब नहीं रखा जा सका।

अधिवक्ता ने कहा, ‘‘….इस अदालत के आदेश उन परिस्थितियों में दिये गये थे जहां आवेदक अदालत में अपना पक्ष रखने की स्थिति में नहीं था जबकि आदेश का दूरगामी वित्तीय प्रभाव हुआ है। अत: ….आवेदक पूरे सम्मान के साथ अदालत के समक्ष निवेदन करता है कि यह न्याय के हित में है कि आदेशों को वापस लिया जाए और मामले की नये सिरे से सुनवाई की जाए।’’

प्राधिकरण ने यह भी कहा कि एसीई ग्रुप ने भूमि ब्याज दरों पर तथ्यों को छिपाया। पट्टा प्रीमियम के भुगतान में चूक की। जबकि कंपनी ने स्वयं खरीदारों से 18 प्रतिशत चक्रवृद्धि ब्याज लिया और तथ्य यह है कि उसने 2017 में आम्रपाली मामले के दायर होने से पहले ही कुछ परियोजनाओं को पूरा कर उसे सौंप दिया था।

न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई के लिये एक अक्टूबर की तारीख तय की है।

इससे पहले, आम्रपाली मामले में न्यायालय द्वारा नियुक्त फोरेंसिक ऑडिटर पवन कुमार अग्रवाल ने कहा कि शीर्ष अदालत के अंतिम निर्देश के अनुसार उन्होंने सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट दाखिल की है।

पीठ ने अग्रवाल से अपनी रिपोर्ट की प्रति प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के साथ साझा करने के लिये कहा है। ईडी ने आम्रपाली समूह के पूर्व निदेशक प्रेम मिश्रा की 4.79 करोड़ रुपये की संपत्ति कुर्क की है। उस पर मुखौटा कंपनियों के माध्यम से घर खरीदारों के पैसे की हेराफेरी करने का आरोप है।

अग्रवाल ने ईडी की इस जांच पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि मिश्रा ने आम्रपाली समूह से घर खरीदारों के 10 करोड़ रुपये से अधिक राशि की हेराफेरी की।

इस पर शीर्ष अदालत ने अग्रवाल और ईडी को बैठककर राशि की गणना में खामियों को देखने और सुलझाने का निर्देश दिया था।

पीठ ने कहा कि वह मामले में पांच अक्टूबर को सुनवाई करेगी। साथ ही अग्रवाल की रिपोर्ट पर ईडी, मकान खरीदारों और मिश्रा से जवाब चाहेगी।

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