पहले सुप्रीम कोर्ट से हाईकोर्ट के फैसले पर मोहर, अब रिव्यु में हाईकोर्ट ने मामला फिर खोला

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पहले सुप्रीम कोर्ट से हाईकोर्ट के फैसले पर मोहर, अब रिव्यु में हाईकोर्ट ने मामला फिर खोला

-राजस्थान स्वैच्छिक ग्रामीण शिक्षा सेवा नियम में नियुक्ति पाने वालों को पेंशन का मामला
— हाईकोर्ट के 2018 का फैसला वापस लेने से सरकार को राहत, कोर्ट ने याचिकाओं को बहाल कर उनमें संशोधन की छूट दी

जोधपुर/जयपुर। अनुदानित शिक्षण संस्थानों के कर्मचारियों को सरकारी कर्मचारियों के समान पेंशन देने के 2018 के फैसले को हाईकोर्ट ने वापस ले लिया है। इसे राज्य सरकार को बड़ी राहत माना जा रहा है, वहीं कोर्ट ने मूल याचिकाओं को बहाल कर कर्मचारियों को उनमें संशोधन करने की छूट दी है। अब इन याचिकाओं पर पुन: सुनवाई होगी। हालांकि हाईकोर्ट केेे 2018 के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट मोहर लगा चुका है।
राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की रिव्यु यचिकाओं को स्वीकार करते हुए 2018 का अपना आदेश वापस लिया है। न्यायाधीश संगीत लोढ़ा और न्यायाधीश मनोज कुमार गर्ग की खंडपीठ ने मूल याचिकाओं को बहाल कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि मूल याचिकाकर्ता राजस्थान स्वैच्छिक ग्रामीण शिक्षा सेवा (द्वितीय संशोधन) नियम, 2012 की ओर से प्रतिस्थापित नियम 5 को चुनौती देने के लिए याचिकाओं में संशोधन कर सकेंगे। इन संशोधित याचिकाओं पर केवल 2010 के नियमावली के नियम 5(नौ) के अधिकार और राहत के प्रश्न पर ही सुनवाई की जाएगी। जिन प्रत्यर्थियों ने भविष्य निधि की राशि को 2018 के आदेशानुसार ब्याज सहित जमा कर दिया है, उन्हें जमा की तिथि से प्रतिदाय की तिथि तक 6 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज सहित जमा की गई राशि चार सप्ताह की अवधि के भीतर वापस करने के निर्देश दिए गए हैं। ऐसा न करने पर राशि जमा करने की तारीख से वास्तविक भुगतान की तारीख तक 9 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज देना होगा। राज्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत, अतिरिक्त महाधिवक्ता संदीप शाह और कुलदीप माथुर ने पैरवी की।
क्या था 2018 का फैसला

हाईकोर्ट ने 2018 में फैसला दिया था कि राजस्थान सिविल सेवा (अंशदायी) पेंशन नियम, 2005 लागू से पूर्व नियुक्त अनुदानित शिक्षण संस्थाओं के कर्मचारियों को पेंशन नियम 1996 के अनुसार सरकारी सेवकों के समान पेंशन नहीं देना असंवैधानिक है। कोर्ट ने राजस्थान स्वैच्छिक ग्रामीण शिक्षा सेवा नियम, 2010 के नियम 5 के उप नियम को उस सीमा तक असंवैधानिक घोषित किया, जो संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। खंडपीठ ने कहा था कि सभी कर्मचारी जो अनुदानित संस्थानों में राजस्थान सिविल सेवा (अंशदायी पेंशन), नियम 2005 लागू होने से पहले स्वीकृत किए पदों पर 2010 के नियमों के तहत नियुक्त किए गए, वे राजस्थान सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1996 के तहत शासित होंगे। 2010 के नियमों के तहत नियुक्ति से पहले अनुदानित संस्थानों से आहरित कर्मचारी भविष्य निधि को 6 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ सरकार में जमा किया जाए। यह भी स्पष्ट किया था कि यदि अनुदानित संस्थानों के कर्मचारियों द्वारा 2010 के नियमावली के तहत नियुक्ति के बाद ली गई भविष्य निधि उनके द्वारा दो महीने की अवधि के भीतर 6 प्रतिशत की दर से ब्याज के साथ जमा नहीं किया जाएगी, तो वे 1996 के पेंशन नियम के तहत लाभ पाने का हकदार नहीं होंगे।

सुप्रीम कोर्ट तक राहत नहीं मिली
हाईकोर्ट के 2018 के आदेश को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट तक चुनौती दी, लेकिन वहां से राहत नहीं मिली। सरकार ने उन तथ्यों के साथ रिव्यु याचिकाएं दायर की, जिनको पूर्व में निर्णय में शामिल नहीं किया गया था। सरकार का तर्क था कि कोर्ट ने 2010 के जिस उप नियम को असंवैधानिक ठहराया था, उसे 2012 में संशोधित किया जा चुका था। संशोधित उप नियम पर विचार ही नहीं किया गया।



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