भगवान जगन्नाथ को भी होता है जुकाम,जानिए दादी की जुबानी
रोक दी जाती है पूजा और लगता है काढ़े का भोग
लखनऊ। लोक संस्कृति शोध संस्थान द्वारा प्रतिमाह आयोजित की जाने वाली ‘दादी-नानी की कहानी’ श्रृंखला में भगवान जगन्नाथ से सम्बन्धित लोक कथा दुर्बले ब्राम्हणे सुनायी गयी। सोमवार को फेसबुक लाइव में लोक विदुषी डा. विद्या विन्दु सिंह ने बच्चों को बताया कि प्रभु जगन्नाथ सारे संसार का पालन व उसकी रक्षा करते हैं। जब जगन्नाथ जी को जुकाम होता है तो पूजा रोक दी जाती है और उन्हें काढ़े का भोग लगता है और काढ़े का ही प्रसाद बांटा जाता है। सुदीर्घ काल से चली आ रही ये सारी बातें आज की कोरोना महामारी में प्रासंगिक हैं। व्याधि के समय में संयम रखना और काढ़ा आदि का प्रयोग करने की पुरानी प्रथा रही है।
कथा की शुरूआत एक गरीब व दुर्बल ब्राह्मण से होती है। ग्रामीण परिवेश व उनमें होने वाली दैनन्दिन समस्याओं, भक्ति और परोपकार की भावना से ओत-प्रोत कथा में ब्राह्मण जगन्नाथ जी के दर्शन के लिए यात्रा पर निकलता है। रास्ते में मिलने वाले विभिन्न जीव-जन्तुओं ने उनसे अपेक्षा की कि हमारे दुःख की बात भी जगन्नाथ जी से कहना। ब्राह्मण जगन्नाथ के मन्दिर पहुंचा। उसकी निश्छल भक्ति से प्रभावित जगन्नाथ जी ने उसे साक्षात दर्शन दिये और सभी प्रश्नों का उत्तर दिया। वापस लौटते ब्राह्मण ने सभी जीव-जन्तुओं का उद्धार किया।
कथा के सहारे डा. विद्याविन्दु सिंह ने लकड़ी का कठौता व काठ के बर्तनों के उपयोग की परम्परा की बातें बतायीं। इसके साथ ही गेहूं व गुड़ मिलाकर बनने वाली गुरधनिया का उल्लेख करते हुए भगवान व प्रकृति को धन्यवाद देने की परम्परा से भी बच्चों को परिचित कराया। पुनर्जन्म की अवधारणा के सहारे कथा में दुःखी जनों की पुराने गलत कार्यों के कारण वर्तमान में भुगते जाने वाले कष्टों की बात बताते हुए उन्होंने कहा कि हमें गलत काम करने से बचना चाहिए। उन्होंने बड़े भावुक होकर कहा कि मैं बीमार थी किन्तु रात जगन्नाथ जी से कहा कि मुझे बच्चों को कहानी सुनानी है और आज मैं ठीक हूं। लोक संस्कृति शोध संस्थान की सचिव सुधा द्विवेदी ने बताया कि आनलाइन हुए इस आयोजन में सैकड़ों लोग जुड़े तथा इसे शेयर भी किया।
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रोक दी जाती है पूजा और लगता है काढ़े का भोग
लखनऊ। लोक संस्कृति शोध संस्थान द्वारा प्रतिमाह आयोजित की जाने वाली ‘दादी-नानी की कहानी’ श्रृंखला में भगवान जगन्नाथ से सम्बन्धित लोक कथा दुर्बले ब्राम्हणे सुनायी गयी। सोमवार को फेसबुक लाइव में लोक विदुषी डा. विद्या विन्दु सिंह ने बच्चों को बताया कि प्रभु जगन्नाथ सारे संसार का पालन व उसकी रक्षा करते हैं। जब जगन्नाथ जी को जुकाम होता है तो पूजा रोक दी जाती है और उन्हें काढ़े का भोग लगता है और काढ़े का ही प्रसाद बांटा जाता है। सुदीर्घ काल से चली आ रही ये सारी बातें आज की कोरोना महामारी में प्रासंगिक हैं। व्याधि के समय में संयम रखना और काढ़ा आदि का प्रयोग करने की पुरानी प्रथा रही है।
कथा की शुरूआत एक गरीब व दुर्बल ब्राह्मण से होती है। ग्रामीण परिवेश व उनमें होने वाली दैनन्दिन समस्याओं, भक्ति और परोपकार की भावना से ओत-प्रोत कथा में ब्राह्मण जगन्नाथ जी के दर्शन के लिए यात्रा पर निकलता है। रास्ते में मिलने वाले विभिन्न जीव-जन्तुओं ने उनसे अपेक्षा की कि हमारे दुःख की बात भी जगन्नाथ जी से कहना। ब्राह्मण जगन्नाथ के मन्दिर पहुंचा। उसकी निश्छल भक्ति से प्रभावित जगन्नाथ जी ने उसे साक्षात दर्शन दिये और सभी प्रश्नों का उत्तर दिया। वापस लौटते ब्राह्मण ने सभी जीव-जन्तुओं का उद्धार किया।
कथा के सहारे डा. विद्याविन्दु सिंह ने लकड़ी का कठौता व काठ के बर्तनों के उपयोग की परम्परा की बातें बतायीं। इसके साथ ही गेहूं व गुड़ मिलाकर बनने वाली गुरधनिया का उल्लेख करते हुए भगवान व प्रकृति को धन्यवाद देने की परम्परा से भी बच्चों को परिचित कराया। पुनर्जन्म की अवधारणा के सहारे कथा में दुःखी जनों की पुराने गलत कार्यों के कारण वर्तमान में भुगते जाने वाले कष्टों की बात बताते हुए उन्होंने कहा कि हमें गलत काम करने से बचना चाहिए। उन्होंने बड़े भावुक होकर कहा कि मैं बीमार थी किन्तु रात जगन्नाथ जी से कहा कि मुझे बच्चों को कहानी सुनानी है और आज मैं ठीक हूं। लोक संस्कृति शोध संस्थान की सचिव सुधा द्विवेदी ने बताया कि आनलाइन हुए इस आयोजन में सैकड़ों लोग जुड़े तथा इसे शेयर भी किया।
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