ललित नारायण मिश्रा हत्याकांड: 2 जनवरी 1975… एक बम ब्लास्ट और बदल गई थी बिहार की पूरी सियासत, पॉलिटिकल मर्डर की अनसुलझी गुत्थी

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ललित नारायण मिश्रा हत्याकांड: 2 जनवरी 1975… एक बम ब्लास्ट और बदल गई थी बिहार की पूरी सियासत, पॉलिटिकल मर्डर की अनसुलझी गुत्थी

पटना
एक कहावत है कि जंग में शिकस्त हो तो जान जाती है और सियासत में शिकस्त हो तो शान जाती है। लेकिन अगर सियासत में शिकस्त के बदले जीत पर जीत मिलती जाए तो जान और शान के बीच का फर्क मिट जाता है। जीतन राम मांझी ने पूर्व रेलमंत्री ललित नारायण मिश्रा की मौत की नए सिरे से जांच की मांग कर सनसनी फैला दी है।

बिहार की राजनीति का ‘रक्तचरित्र’
देखा जाए तो अजीत सरकार, अशोक सिंह, तत्कालीन JNUSU अध्यक्ष चंद्रशेखर और बृजबिहारी प्रसाद की हत्या भी कुछ ऐसी ही कहानी कहती है। लेकिन क्या ये सब बिहार में 80-90 के दशक के करीब पहली बार हुआ। जवाब है नहीं…. ललित नारायण मिश्र, जो 1973 से 1975 तक भारत सरकार के रेलमंत्री थे, की कहानी भी उसी किताब का एक रक्तरंजित हिस्सा है।
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एक बम और बदल गई बिहार की सियासत
वो तारीख थी 2 जनवरी 1975 की… जगह समस्तीपुर रेलवे स्टेशन। यहां तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा को समस्तीपुर से मुजफ्फरपुर के बीच बड़ी लाइन का उद्घाटन करना था। वक्त शाम का था, तय समय पर ललित बाबू (मिथिलांचल के लोग उन्हें इसी नाम से बुलाते थे) रेलवे स्टेशन पहुंच गए। छोटे भाई जगन्नाथ मिश्रा (तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री बने) भी साथ थे। इनके अलावा कांग्रेस के कुछ MLC भी मंच पर ही थे।
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ललित नारायण मिश्रा ने रेलवे की उपलब्धियां गिनाते हुए अपना भाषण पूरा किया। वो मंच से नीचे उतर ही रहे थे कि अचानक भीड़ में से एक शख्स ने उनकी तरफ बम फेंक दिया। जोर का धमाका हुआ और जब धुंआ छंटा तो ललित नारायण मिश्रा, जगन्नाथ मिश्रा, विधानपार्षद सूर्यनारायण झा समेत 29 लोग जख्मी हो चुके थे।

बम ब्लास्ट कर ललित बाबू की हत्या
इसके बाद ललित नारायण मिश्रा को दानापुर के रेलवे अस्पताल में लाया गया। लेकिन बुरी तरह से जख्मी ललित बाबू ने 3 जनवरी 1975 को दम तोड़ दिया। इस हत्याकांड ने पूरे देश में सनसनी फैला दी। किसी को उम्मीद तक नहीं थी कि राज्य में इस तरह से सरेआम रेल मंत्री की हत्या कर दी जाएगी और वो भी उनके गृह जिले के बगल में। इस हत्याकांड में CBI जांच तक हुई। CBI की चार्जशीट में विनयानंद, संतोषानंद, विश्वेश्वरानंद को आरोपी बनाया गया था। कहा जाता है कि इस कांड के पीछे आनंद मार्ग प्रचारक संघ की नींव रखने वाले पी आर सरकार यानि प्रभात रंजन सरकार के समर्थकों का हाथ था।
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आज भी गुत्थी अनसुलझी
सालों बाद आज भी इस हत्याकांड की गुत्थी उलझी हुई ही है। 39 साल बाद कोर्ट का फैसला आया तो जरुर लेकिन ललित बाबू के घरवाले इस फैसले से सहमत नहीं हुए। 2014 में सेशन कोर्ट ने रंजन द्विवेदी, संतोषानंद, सुदेवानंद और गोपाल जी को उम्रकैद की सजा सुनाई। इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील तक हुई। 2015 में आरोपी जमानत पर छूट गए। लेकिन ललित बाबू के परिवार ने हर बार यही कहा कि जिनको सजा हुई वो दोषी थे ही नहीं।

क्यों हुई ललित बाबू की हत्या?
इस हत्याकांड की वजह पर वैसे तो कई तरह की चर्चा है। लेकिन एक बात है जो इन चर्चाओं में समान है और वो ये कि ललित बाबू का कद इतना बढ़ गया था कि उनसे उन्हीं की पार्टी के कद्दावर नेता भी घबराने लगे थे। ललित बाबू मिथिलांचल के अलावा राज्य में भी लोकप्रियता की सीढ़ी चढ़ते जा रहे थे। कहनेवाले तो ये भी कहते हैं कि उनका बढ़ता कद ही उनकी जान का दुश्मन बन गया। लेकिन सच क्या है ये किसी को नहीं पता।

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