संकट में ‘गुर्राहट’… इंसानी बस्तियों तक जंगल राज | Conflict between leopards and humans 10101 | Patrika News

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संकट में ‘गुर्राहट’… इंसानी बस्तियों तक जंगल राज | Conflict between leopards and humans 10101 | Patrika News


विजय चौधरी@भोपाल. मध्यप्रदेश में तेंदुओं को बाघों और इंसानों से संघर्ष करना पड़ रहा है। उनके लिए वन क्षेत्रों की कमी है। पत्रिका की इस रिपोर्ट में पता लगाने की कोशिश की गई है कि तेंदुए अपना जीवन कैसे जी रहे हैं और उनके इलाके के आसपास की आबादी को कैसे रास्ते अपनाना पड़ रहे हैं।

भूख से मौत: 28 अक्टूबर को एक तेंदुए की मौत हो गई। विदिशा जिले के सगड़ बांध में उसका शव मिला। मौत का कारण था भूख।
संघर्ष में गई जान: जबलपुर के सिहोरा वन क्षेत्र से 2 नवंबर को एक तेंदुए का शव बरामद हुआ। मौत क्यों हुई, पता नहीं चला है। चेहरे पर संघर्ष के निशान मिले हैं।
इंसान पर हमला: शहडोल के पपौंध-ब्यौहारी क्षेत्र के एक घर में बाहर खेल रही एक चार वर्षीय बच्ची को तेंदुआ घसीट ले गया। चीख-पुकार सुनकर तेंदुए को खदेड़ा और बच्ची को छुड़ाया गया। वह गंभीर घायल हो गई।
शिकारी सक्रिय: 20 नवंबर को देवास के जंगल में तेंदुए का शिकार कर खाल, नाखून, हड्डी बेचने निकले गिरोह को पकड़ा। गिरोह का सरगना पूर्व में वह हिरन शिकार मामले में गिरफ्तार हो चुका है।
गांव में घुसा: 23 नवंबर को देवास जिले के पानीगांव वन परिक्षेत्र के गांव थूरिया के पास एक खेत में बनी टापरी में मंगलवार सुबह एक तेंदुआ घुस गया। इसको पकडऩे के लिए रेस्क्यू अभियान वन विभाग की टीम द्वारा चलाया गया। करीब 8 घंटे की मशक्कत के बाद तेंदुआ शाम को काबू में आ सका।
ये खबरें बीते दिनों की सुर्खियां रही हैं। इनसे जाहिर होता है कि तेंदुआ संकट में है, मगर एक तथ्य यह भी है कि मध्यप्रदेश में तेंदुओं की संख्या देश में सबसे अधिक है। दरअसल यही सबसे बड़ी चुनौती भी है कि इतनी संख्या के लिए प्रदेश के पास पर्याप्त जंगल और भोजन उपलब्ध है या नहीं। वन्य प्राणी विशेषज्ञों का मानना है कि तेंदुए हमेशा ही आबादी के आसपास रहना पसंद करता है और इसी वजह से उसका इंसानों के साथ संघर्ष लगातार चलता ही रहता है।

जानिए…तेंदुए का संघर्ष और मनोविज्ञान
1. तेंदुए आबादी क्षेत्रों की ओर क्यों आते हैं?
उनकी खुराक कम होती है और इसी कारण वे छोटे व आसान शिकार की तलाश में आबादी के आसपास आ जाते हैं। कुत्ते, बिल्ली, मुर्गे, बकरी उन्हें यहां आसानी से मिल जाते हैं।

2. इनके इलाके होते हैं या कहीं भी घुमते रहते हैं?
बाघों के तरह ही इनके क्षेत्र होते हैं और आम तौर पर एक इलाके में एक ही नर तेंदुआ रहता है। भोजन की तलाश में ये क्षेत्र बदलते भी रहते हैं।

3. क्या बाघों से इनका संघर्ष होता रहता है?
संघर्ष जैसी स्थिति तो कम ही बनती है, मगर ये बाघों के इलाकों में नहीं घुसते हैं। बाघ इन पर भारी पड़ते हैं।

4. बाघों से अधिक गति से इनकी बढ़ोत्तरी हो रही है, कोई खास वजह?
बाघों ने इंसानों के साथ रहना नहीं सीखा है, जबकि तेंदुओं ने इसके लिए खुद को तैयार कर लिया है। देश के कई हिस्सों में वह आबादी के पास ही छुपकर रहता है।

5. इंसानोंं पर ये हमला क्यों करते हैं?
मध्यभारत में इंसानों पर ये हमला कम ही करते हैं, जबकि उत्तराखंड जैसे पहाड़ी इलाकों में कई तेंदुए नरभक्षी हुए हैं। हमला दो ही स्थितियों में करते हैं, एक बहुत भूखे हों और दूसरा इंसानों के बीच फंस गए हों।

6. सरकार को तेंदुओं की बेहतरी के लिए क्या करना चाहिए?
इनके लिए पर्याप्त जंगल व भोजन उपलब्ध रहे तब तक कोई परेशानी नहीं है। बाघों व तेंदुओं को एक साथ रखकर इनके इलाके चिह्नित करना जरूरी है। इसके बाद वहां उनके हिसाब से भोजन, पानी और रहने की जगह का इंतजाम किया जाना चाहिए।
(राज्य वाइल्डलाइफ बोर्ड के सदस्य एचएस बावला से हुई चर्चा के आधार पर)

3421 तेंदुए थे 2018 की स्थिति में प्रदेश में। 2021 में बाघों के साथ इनकी गणना का काम अभी जारी है।
04 लोगों की जान गई इस साल मप्र में तेंदुए के हमले में। हर साल पन्द्रह तेंदुओं का रेस्क्यू होता है।

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