संपादकीय : ओमीक्रोन की चुनौती, घबराहट में उठाए सख्त कदम नुकसान करेंगे

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संपादकीय : ओमीक्रोन की चुनौती, घबराहट में उठाए सख्त कदम नुकसान करेंगे

कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ओमीक्रोन का दुनिया के कई देशों में फैलाव पहले से ही चिंता का कारण बना हुआ था, लेकिन भारत में भी इसके कुछ मामले मिलने के बाद स्थिति गंभीर हो गई है। गौर करने की बात है कि अभी भी वायरस के इस नए वेरिएंट को लेकर ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। इतना जरूर है कि यह अब तक के तमाम वेरिएंट के मुकाबले ज्यादा संक्रामक है। इसलिए जिस तीसरी लहर के खतरे को टल गया माना जा रहा था,, वह वास्तविक रूप लेकर हमारे सामने आ खड़ा हुआ है। मगर अभी यह पता नहीं है कि अपने नए रूप में यह वायरस कितना घातक है।

पूरी तरह वैक्सिनेशन के दायरे में आ चुके लोग भी इसका शिकार हो रहे हैं, इससे यह तो लगता है कि नया वेरिएंट टीकों के कवच को भेद सकता है, लेकिन इसे भेद कर शरीर तक पहुंचने के बाद इसकी कितनी ताकत बची रहती है और यह शरीर को वास्तव में कितना नुकसान पहुंचा सकता है, इसे लेकर कोई स्टडी अभी नहीं हुई है। आरंभिक मामलों में हलके लक्षण ही बताए जा रहे हैं। इसलिए अनावश्यक रूप से आशंकाएं पालने या अफवाहों के पचड़े में पड़ने से बेहतर है एक्सपर्ट्स की राय का इंतजार किया जाए। इस दौरान सावधानी तो पूरी बरती जानी चाहिए, लेकिन घबराहट में आकर फैसले लेने से बचना होगा।

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उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय उड़ानों से आने वाले यात्रियों पर लगाई गई अतिरिक्त पाबंदी यों तो केंद्र के दखल के बाद वापस ले ली गई है, लेकिन थोड़े समय के लिए ही सही इसने अनिश्चितता तो पैदा की। इससे बचा जाना चाहिए था। भूलना नहीं चाहिए कि हमारे सामने दोहरी चुनौती है। महामारी की तीसरी लहर से तो हमें बचना ही है, बड़ी मुश्किलों के बाद खड़ी हुई अर्थव्यस्था को भी संभाले रखना है। साल की दूसरी तिमाही यानी जुलाई से सितंबर की अवधि में जीडीपी के आंकड़े 2019 के उसी अवधि में दर्ज बढ़ोतरी दर को पार जरूर कर गए हैं, लेकिन अगर निजी खपत की और उन सेक्टरों की बात करें जिनमें प्रत्यक्ष संपर्क की जरूरत होती है, मिसाल के तौर पर ट्रेड और होटल की तो वहां ग्रोथ अभी भी महामारी से पहले यानी 2019 के स्तर से नीचे है। यानी इन सेक्टरों के दो साल पूरी तरह धुल-पुछ चुके हैं।

साफ है कि हमें रस्सी पर संतुलन बनाए रखते हुए चलने का मुश्किल काम करना है। न तो किसी तरह की असावधानी की गुंजाइश छोड़ सकते हैं और न ही अनावश्यक सख्ती की ओर बढ़ सकते हैं। ऐसे में सबसे ज्यादा अहम हो जाता है आम नागरिकों का सहयोग। अगर लोग अपने स्तर पर मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते रहें तो आधी जंग तो हम ऐसे ही जीत जाते हैं।



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