बीजेपी के सह संस्थापक लालकृष्ण आडवाणी को क्यों उनकी पार्टी के सदस्यों ने ही दर किनार कर दिया ?

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आज बीजेपी का अस्तित्व देश में है तो उसका सबसे बड़ा कारण है बीजेपी के सह संस्थापक लालकृष्ण आडवाणी जिन्होंने बीजेपी की नीव रखी, जिस पार्टी को उन्होंने अपने मेहनत से देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी के साथ सींचा था। वो तीन बार वो प्रधानमंत्री बनते बनते और दावेदार बनते बनते रह गए। इसका सबसे बड़ा कारण उनका नाम हवाला काण्ड में जैन डायरी में आना. अडवाणी की सबसे बड़ी भूल के तोर पर यह बात भी उनके राजनीतिक करियर कि सबसे बड़ी भूल थी की उन्होंने एक कट्टर छवि बना ली. जो भाजपा के फायदेमंद साबित हुई लेकिन अडवाणी जे के लिए घातक साबित हुई और वो आगे चल कर देश के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति नहीं बन पाए। उन्होंने जब अपनी छवि बदलने की कोशिश की तो ये उनपर और भरी पर गया और वी हाशिये पर चले गए।

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2004 और 2009 की लगातार दो चुनाव की हार के बाद ‘लॉ ऑफ़ डिमिनिशिंग रिटर्न्स’ का सिद्धांत आडवाणी पर भी लागू हुआ और एक ज़माने में उनकी छत्रछाया में पलने वाले नरेंद्र मोदी ने उनकी जगह ले ली। खबरों मुताबिक गुजरात दांगे से मोदी को उनके ऊपर ही भाड़ी पर गया था।

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राम बहादुर राय के मुताबिक “वाजपेयी चाहते थे कि नरेंद्र मोदी इस्तीफ़ा दें. उन्होंने एक बयान में राजधर्म की शिक्षा भी दी लेकिन वाजपेयी को ठंडा करने और अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार करने के लिए जिन दो व्यक्तियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके नाम थे अरुण जेटली और प्रमोद महाजन. वाजपेयी जब दिल्ली से गोवा पहुंचे तो उनके विमान में ये दोनों लोग ही थे. आडवाणी तो थे ही नहीं.”

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इन्हीं दो लोगों ने रास्ते में वाजपेयी को समझाया कि ये पार्टी के हित में नहीं है और पणजी आते आते जैसा कि वाजपेयी का स्वभाव था, उन्होंने मान लिया. मेरा मानना है कि आडवाणी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वो वाजपेयी को ये कहें कि आप ये करे या न करें.”आज पार्टी में जो लालकृष्ण आडवाणी का स्तर स्थिति है वो काफी दयनीय है