अश्वत्थामा के मस्तक पर मणि होने के पीछे क्या रहस्य था?

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महाभारत की गाथा अप्रम पार है। महाभारत के हर एक पात्र की कथा काफी अद्भुत और काफी रोचक पूर्ण है। अश्वत्थामा के बारे में अधिकतर लोग अवगत नहीं होंगे कि उनके पास एक चमत्कारिक मणि थी जिसके कारण पर वह शक्तिशाली और अमर हो गया था। अश्वत्थामा महान गुरू द्रोणाचार्य के पुत्र थे। द्रोणाचार्य ने शिव की उपासना कर उन्हीं के अंश से अश्वत्थामा नामक पुत्र को प्राप्त किया। अश्‍वत्थामा के पास शिवजी द्वारा दी गई कई शक्तियां थीं। वे स्वयं शिव का अंश थे।

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जन्म से ही अश्वत्थामा के मस्तक में एक अमूल्य मणि विद्यमान थी, जो कि उसे दैत्य, दानव, शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग आदि से रक्षा प्रदान करती थी । इस मणि के कारण ही उस पर किसी भी अस्त्र-शस्त्र का प्रभाव नहीं पड़ता था।

द्रौपदी ने अश्‍वत्थामा को जीवनदान देते हुए अर्जुन से उसकी मणि उतार लेने का सुझाव दिया अत: अर्जुन ने इनकी मुकुट मणि लेकर प्राणदान दे दिया। अर्जुन ने यह मणि द्रौपदी को दे दी जिसे द्रौपदी ने युधिष्ठिर को दे दी। शिव महापुराण (शतरुद्रसंहिता -37) के मुताबिक यह माना गाय है कि महान गुरू द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और वे गंगा के किनारे निवास करते हैं किंतु उनका निवास कहां हैं, इसका जिक्र नहीं है।

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द्रोणाचार्य को अपनी कन्या मानते थे क्योंकि द्रौपद उनका मित्र था, इसी कारण द्रौपदी और अश्वत्थामा में भाई -बहन का सम्बन्ध था लेकिन द्रौपदी का अपमान होते वक़्त अश्वत्थामा ने भी उसे काफी कुटिल शब्द बोले थे।

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