बार काउंसिल ऑफ इंडिया के हालिया सवाल से भाजपा, कांग्रेस समेत कई राजनितीक दलों के नेताओं की सदस्यता खतरे में पड़ सकती है. काउंसिल ने देश भर के 500 से ज़्यादा नेताओं से एक ख़ास मुद्दे पर जवाब तलब किया है. दरअसल काउंसिल ने मखसूस तौर पर वकालत कर रहे सांसदों, विधायकों और पार्षदों को नोटिस भेजकर पूछा है कि “क्यों न उन्हें वकालत करने से रोक दिया जाए?”
जवाब देने के लिए हफ्ते भर का समय दिया
बता दें कि इस विषय में काउंसिल के सख्त तेवर देखने को मिल रहे हैं. उन्होंने वकालत कर रहे सभी जन प्रतिनिधियों से पूछा है कि वकालत करने से क्यूँ ना रोक दिया जाए. इस नोटिस का जवाब देने के लिए नेताओं को एक हफ्ते का समय दिया गया है. इस गंभीर मसले पर विचार करने के लिए बार काउंसिल ने एक एक्सपर्ट कमेटी का भी गठन किया है. कहा जा रहा है कि जनप्रतिनिधियों का जवाब आने के बाद इसको लेकर नए सिरे से गाइडलाइंस तय की जाएगी.
काउंसिल ने दिखाए सख्त तेवर
दरअसल नेताओं द्वारा वकालत करने का मामला अक्सर उठता रहता है. इसीलिए बार काउंसिल ने इस मसले पर तस्वीर साफ करने के लिए ये कदम उठाया है. 22 जनवरी को होने वाली बैठक में सांसदों और विधायकों के वकालत करने के मामले पर अंतिम फैसला लिया जाएगा. नोटिस जारी कर बार काउंसिल ने पूछा है, ‘चूंकि आप सभी जनप्रतिनिधि के तौर पर काम कर रहे हैं तो क्यों न आपको वकालत करने से रोक दिया जाए?’ ऐसे सभी नेता अपने जवाब, आपत्ति और सुझाव दर्ज करा सकते हैं. बार काउंसिल की बैठक में इस पर विचार किया जाएगा. इस मसले पर बार काउंसिल द्वारा गठित समिति के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने स्थिति साफ़ करते हुए बताया कि “इन नेताओं को इसलिए नोटिस भेजा गया है, ताकि मान्यता रद्द करने की स्थिति में वे न्यायिक व्यवस्था के उल्लंघन की बात न कह सकें.”
सुप्रीम कोर्ट में लगी है अर्ज़ी
सांसदों और जनप्रतिनिधियों द्वारा वकालत करने से जुड़ी एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में भी लंबित है. भाजपा के वरिष्ठ नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल कर नेताओं द्वारा वकालत करने को हितों के टकराव का गंभीर मामला करार दिया है. दूसरी तरफ बार काउंसिल द्वारा गठित विशेषज्ञों की समिति ने भी सांसदों और विधायकों द्वारा वकालत करने को संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन माना है.
गौरतलब है कि काउंसिल द्वारा वकालत कर रहे नेताओं के खिलाफ फैसला लेने कि स्थिति में कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, केटीएस तुलसी, पी. चिदंबरम, भूपेंद्र यादव, मिनाक्षी लेखी जैसे दिग्गज नेताओं की वकालत खतरे में पड़ सकती है.