नई दिल्ली: मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ नतीजे घोषित होने के बाद भाजपा सहित राजनीतिक जानकारों ने अपनी-अपनी थ्योरी लगाना शुरू कर दी है.
बता दें कि जहां एक तरफ कांग्रेस ने भाजपा की विजय रथ को रोका तो दूसरी तरफ लोकसभा चुनावों की एक धुंधली तस्वीर भी प्रस्तुत कर दी. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीजेपी की हार के पीछे कई चीजें है जो इस बार बीजेपी के हार का बड़ा कारण बनकर उभरी है. इसमें किसानों में असंतुष्टता और बेरोजगारी का मुद्दा बड़ा असरदार साबित हुए है, लेकिन इन सबसे महत्वपूर्ण भूमिका नोटा (नॉन ऑफ द ऐवब) की रही.
नोटा का सबसे ज्यादा प्रभाव बीजेपी को मध्यप्रदेश में पड़ा जहां कांग्रेस और भाजपा में कांटे की टक्कर देखने को मिली थी. इस जगह नोटा का भरपूर साथ सपाक्स पार्टी ने दिया. बता दें कि सपाक्स सामान्य पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक समुदाय के शासकीय सेवकों का संगठन है जो पदोन्नति में आरक्षण का विरोध करता रहा है. बताया जा रहा है कि इसका असर लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में भी देखने को मिल सकता है. जहां मध्य प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी के बीच 100 वोटों को लेकर लड़ाई जारी थी, वहीं नोटा डेढ़ फीसदी वोट शेयर लेकर भाजपा को बहुमत से दूर रखने में मुख्य योगदान दिया.
आम आदमी पार्टी को नोटा के कारण झेलनी पड़ी मात
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ समेत दो अन्य राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए मंगलावर को मतगणना में देर शाम तक घोषित परिणाम के आधार पर ‘आप’ को नोटा से कम वोट प्राप्त हुए. बता दें कि मध्य प्रदेश की 230 सीटों में से आप ने 208 पर उम्मीदवार उतारे थे. जिनमें से ज्यादातर प्रत्याशी अपनी जमानत भी नहीं बचा सकें. राज्य में आप को मात्र 0.7 प्रतिशत वोट ही मिले जबकि 1.5 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा को अपनाया. इस बार राज्य की जनता ने क्षेत्रीय पार्टीयों से ज्यादा नोटा पर ज्यादा भरोसा किया.