Bhopal Gas Tragedy: भोपाल में जहरीली गैस फैल रही थी, अपने परिवार को लेकर इलाहाबाद चले गए थे मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह
हाइलाइट्स
- भोपाल गैस त्रासदी के 37 साल पूरे
- 1984 में 2-3 दिसंबर की रात को लीक हुई थी जहरीली गैस
- हादसे की अगली सुबह इलाहाबाद चले गए थे सीएम अर्जुन सिंह
भोपाल
साल 1984 में 2-3 दिसंबर की रात को भोपाल भयानक त्रासदी का शिकार हुआ था। यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से मिथाइल आइसो सायनाइड गैस का रिसाव हुआ और एक रात में पांच हजार से ज्यादा लोगों की जान चली गई। विश्व की सबसे भीषण औद्योगिक दुर्घटना भोपाल में हुई। अगली सुबह पूरे भोपाल में अफरा-तफरी का माहौल था, लेकिन इसे संभालने के लिए राज्य का मुख्यमंत्री राजधानी में मौजूद नहीं था।
1984 में जब ये हादसा हुआ, अर्जुन सिंह राज्य के मुख्यमंत्री थे। 2-3 दिसंबर की रात को गैस का रिसाव हुआ और अर्जुन सिंह अपने परिवार को लेकर इलाहाबाद चले गए। सुबह होते ही सरकारी विमान से अपने परिवार को लेकर वे भोपाल से निकल गए थे। उन पर आरोप भी लगे कि जब भोपाल इतनी बड़ी त्रासदी से जूझ रहा था, वे मौके पर मौजूद नहीं थे।
इसको लेकर अर्जुन सिंह की काफी आलोचना हुई थी। हालांकि, उन्होंने खुद इससे इनकार किया था। अपनी आत्मकथा में उन्होंने बाद में लिखा कि वे इलाहाबाद के सेंट मैरी कॉन्वेंट स्कूल के गिरजाघर में प्रार्थना करने गए थे। अर्जुन सिंह ने इसी स्कूल से पढ़ाई की थी। उन्होंने यह भी लिखा कि तीन दिसंबर की शाम को ही वे लौटकर भोपाल आ गए और अपनी उपस्थिति में ऑपरेशन फेथ चलाया जिसके जरिए यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री में बची हुई गैस को खत्म किया गया।
ऑपरेशन फेथ को लेकर भी भोपाल में जमकर हंगामा हुआ था। गैस के रिसाव के बाद यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री बंद कर दी गई थी, लेकिन एक टंकी में जहरीली गैस बची हुई थी। इसको प्रभावहीन करना जरूरी था, लेकिन भोपाल के लोग डरे हुए थे। उन्हें डर था कि गैस को प्रभावहीन करते समय फिर कोई हादसा न हो जाए।
राजधानी में एक बार फिर भागमभाग की स्थिति पैदा हो गई। फैक्ट्री के आसपास रहने वाले लोग वहां से भागने लगे। नेताओं के बीच भी भगदड़ मच गई। सभी भोपाल छोड़कर जाने की तैयारी करने लगे, लेकिन इस बार अर्जुन सिंह डटकर खड़े रहे। उन्होंने ऐलान किया कि जब जहरीली गैस को प्रभावहीन किया जाएगा, वे खुद मौके पर मौजूद रहेंगे। इसके बाद जाकर लोगों में हिम्मत बंधी और स्थिति नियंत्रण में आई।
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हाइलाइट्स
- भोपाल गैस त्रासदी के 37 साल पूरे
- 1984 में 2-3 दिसंबर की रात को लीक हुई थी जहरीली गैस
- हादसे की अगली सुबह इलाहाबाद चले गए थे सीएम अर्जुन सिंह
साल 1984 में 2-3 दिसंबर की रात को भोपाल भयानक त्रासदी का शिकार हुआ था। यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से मिथाइल आइसो सायनाइड गैस का रिसाव हुआ और एक रात में पांच हजार से ज्यादा लोगों की जान चली गई। विश्व की सबसे भीषण औद्योगिक दुर्घटना भोपाल में हुई। अगली सुबह पूरे भोपाल में अफरा-तफरी का माहौल था, लेकिन इसे संभालने के लिए राज्य का मुख्यमंत्री राजधानी में मौजूद नहीं था।
1984 में जब ये हादसा हुआ, अर्जुन सिंह राज्य के मुख्यमंत्री थे। 2-3 दिसंबर की रात को गैस का रिसाव हुआ और अर्जुन सिंह अपने परिवार को लेकर इलाहाबाद चले गए। सुबह होते ही सरकारी विमान से अपने परिवार को लेकर वे भोपाल से निकल गए थे। उन पर आरोप भी लगे कि जब भोपाल इतनी बड़ी त्रासदी से जूझ रहा था, वे मौके पर मौजूद नहीं थे।
इसको लेकर अर्जुन सिंह की काफी आलोचना हुई थी। हालांकि, उन्होंने खुद इससे इनकार किया था। अपनी आत्मकथा में उन्होंने बाद में लिखा कि वे इलाहाबाद के सेंट मैरी कॉन्वेंट स्कूल के गिरजाघर में प्रार्थना करने गए थे। अर्जुन सिंह ने इसी स्कूल से पढ़ाई की थी। उन्होंने यह भी लिखा कि तीन दिसंबर की शाम को ही वे लौटकर भोपाल आ गए और अपनी उपस्थिति में ऑपरेशन फेथ चलाया जिसके जरिए यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री में बची हुई गैस को खत्म किया गया।
ऑपरेशन फेथ को लेकर भी भोपाल में जमकर हंगामा हुआ था। गैस के रिसाव के बाद यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री बंद कर दी गई थी, लेकिन एक टंकी में जहरीली गैस बची हुई थी। इसको प्रभावहीन करना जरूरी था, लेकिन भोपाल के लोग डरे हुए थे। उन्हें डर था कि गैस को प्रभावहीन करते समय फिर कोई हादसा न हो जाए।
राजधानी में एक बार फिर भागमभाग की स्थिति पैदा हो गई। फैक्ट्री के आसपास रहने वाले लोग वहां से भागने लगे। नेताओं के बीच भी भगदड़ मच गई। सभी भोपाल छोड़कर जाने की तैयारी करने लगे, लेकिन इस बार अर्जुन सिंह डटकर खड़े रहे। उन्होंने ऐलान किया कि जब जहरीली गैस को प्रभावहीन किया जाएगा, वे खुद मौके पर मौजूद रहेंगे। इसके बाद जाकर लोगों में हिम्मत बंधी और स्थिति नियंत्रण में आई।