लाल घाटी भोपाल का खूनी इतिहास ?

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लाल घाटी
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लाल घाटी भोपाल का खूनी इतिहास ? ( Bloody History of Lal Ghati Bhopal )

इतिहास का अपना महत्व होता है. इतिहास के कारण ही हम किसी भी पुरानी घटना या किसी क्षेत्र विशेष के बारे में अच्छे से जान सकते हैं. इसी तरह का इतिहास लाल घाटी भोपाल का है. इसके इतिहास को खूनी इतिहास भी कहा जाता है. किसी भी स्थान के नाम के पीछे भी कोई कहानी या इतिहास होता है. अगर लाल घाटी भोपाल के पीछे भी इतिहास छुपा है. चलिए जानते हैं कि लाल घाटी भोपाल का खूनी इतिहास क्या था.

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घाटी

इतिहास-

लाल घाटी भोपाल के इतिहास को अच्छे से जानने और समझने से पहले हम ये जाने लेते हैं कि घाटी किसे कहते हैं. साधारण शब्दों में समझें तो किसी भी पहाड़ी गर्त या खाई को उंचाइयों से जोड़ने वाली राह को घाटी कहते हैं. लेकिन इस जगह का नाम ‘लालघाटी’ कैसे पड़ा तो हमें पता चलेगा कि इतिहास के पन्नों में इसके पीछे एक बहुत बडी घटना रही है. दरअसल इंसानी खून से नहाने के बाद इस घाटी का नाम लालघाटी पड़ा था. बता दें कि भोपाल का पहला नवाब ‘दोस्त मोहम्मद खां’, बैरसिया के पास का एक जमींदार था. वह भोजपाल नगरी को अपने कब्जे में करना चाहता था. लेकिन भोजपाल पर कब्जा करने से पहले उसे रास्ते में जगदीशपुर के राजा ‘नरसिंह राव चौहान’ से जीतना पड़ता जोकि आसान नहीं लग रहा था.

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लाल घाटी

मोहम्मद खां का धोखा-

इसी कारण मोहम्मद खां ने धोखे का सहारा लिया तथा उसने नरसिंह राव चौहान को संधि के लिए एक मैत्री भोज यानि दोस्ती के नाम पर साथ भोजन करने के लिए आमंत्रित किया. दोनों इस पर सहमत हो गए. इसके बाद दोनों पक्षों से 16-16 लोग इस संधि में शामिल होने का फैसला हुआ. दोस्त मोहम्मद खां ने थाल नदी के किनारे तंबू लगवाए और एक शानदार मैत्री भोज का आयोजन किया. जब राजा नरसिंह राव चौहान के सारे लोग मदहोश हो गए तो धोखे से दोस्त मोहम्मद खां ने उनलोगों पर हमला करवा दिया. जिसके बाद मोहम्मद खां के सैनिकों ने बड़ी बेरहमी से नरसिंह राव चौहान के सारे सैनिकों की हत्या कर दी. यह नरसंहार इतना भीषण था कि नदी का पानी खून से लाल हो गया. इसकी कारण उस दिन से इस नदी का नाम हलाली नदी हो गया. हलालपुर बस स्टैंड का नाम भी इसी नदी के नाम पर है.

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लालघाटी नाम पड़ने के पीछे का कारण-

नरसिंह राव चौहान की हत्या के बाद दोस्त मोहम्मद खां ने जगदीशपुर पर कब्जा कर लिया और इसका नाम इस्लामपुर कर दिया जिसे आज इस्लामनगर के नाम से भी जाना जाता है. इसके बाद नरसिंह राव चौहान के पुत्र नें अपना राज्य वापस पाने के लिए छोटी सेना संगठित की और पश्चिमी राह से चढाई कर दी, हालांकि वो ‘दोस्त मोहम्मद खां’ के सामने टिक नहीं पाया तथा उसकी सेना के खून से नहाकर घाटी लाल हो गई और तब से ही इस घाटी का नाम लालघाटी पड़ गया.

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