जानियें, बुंदेलखंड की ये परंपरा, जो सदियों से चली आ रही है!

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जानियें, बुंदेलखंड की ये परंपरा, जो सदियों से चली आ रही है!
जानियें, बुंदेलखंड की ये परंपरा, जो सदियों से चली आ रही है!

बुंदेलखंड का एक हिस्सा यूपी में है तो दूसरा हिस्सा मध्यप्रदेश में है, इन सबके बावजूद बुंदेलखंड की सदियों पुरानी परंपरा आज भी बरकरार है। जी हाँ, लोग अपनी परंपराओं को तो भूल जाते है, लेकिन बुंदेलखंड के निवासी अपनी परंपराओं को अभी तक बरकरार रखा है। आइये आपको बताते है बुंदेलखंड की पुरानी परंपरा के बारे में….

बुंदेलखंड का आज भी विकास नहीं हुआ है, जिसकी वजह से बुंदेलखंड की गिनती पिछड़े राज्यों में की जाती है। लेकिन जिस तरह से यहां के लोगों ने अपनी परंपरा को बरकरार रखा है, उसे जानकर आप भी इनकी तारीफ करने लगेंगे।

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बुंदेलखंड का एक नृत्य जो सदियों से प्रचलित है। वक्त के साथ सब बदल जाता है, इस कहावत को बुंदेलखंड वालों ने झूठा साबित कर दिया, क्योंकि उनके पास भले ही पीने का पानी नही है, भले ही शिक्षा नहीं है, लेकिन वो अपनी परंपराओं को जीवित रखने में सबसे आगे है।

बुंदेलखंड का ये नृत्य….

आपको बता दें कि बुंदेलखंड की मिट्टी में अभी भी पुरातन परम्पराओं की महक देखने को मिलती है। बुंदेलखंड का दिवारी नृत्य पूरे देश में अनूठा है। साथ ही आपको ये भी बता दें कि इसे दिवारी पाई डण्डा के नाम से भी जानते हैं,जिसमें गोवंश की सुरक्षा, संरक्षण, संवर्द्धन, पालन के संकल्प का इस दिन कठिन व्रत लिया जाता है।

आपको ये भी बता दें कि परम्परागत पीढ़ी दर पीढ़ी प्रदर्शित किया जाने वाला यह नृत्य बुंदेलखण्ड के अलावा कहीं भी देखने को नहीं मिलता। यह नृत्य भाद्रपद की पंचमी से पौष, माघ माह की संक्रान्ति तक किया जाता है।

इसीलिए है लोकप्रिय….

आपको बता दें कि पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक,  इस नृत्य को भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में मथुरा के राजा कंस का वध करने के बाद किया था। साथ ही आपको ये भी बता दें कि यह नृत्य नटवर भेषधारी श्रीकृष्ण की लीला पर आधारित है। नृत्य में लाठी चलाना, आत्मरक्षार्थ हेतु वीरता प्रतीक है। एक साथ कमर मटकाना तथा बलखाते हुए नाचना ही इसकी पहचान है।

परंपरा को निभाने की कला तो बुंदेलखंड के निवासियों से सीखनी चाहिए, समूचे देशवासियों को भी अपनी परंपरा को नहीं भूलाना चाहिए।