तीन हजार से की थी शुरूआत, आज है करोंडों की फैक्ट्री

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कानपुर। जेब में पैसे ना हो और जिम्मेदारियों का बोझ सर पर हो तो कोई भी शख्स पहले नौकरी की तलाश करता है ताकि दो पैसे कमा के आर्थिक हालात को ठीक किया जा सके। लेकिन प्रेरणा वर्मा ने ऐसा नहीं किया, उऩ्होंने अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए नौकरी नहीं बल्कि व्यापार में हाथ आजमाने की सोची और आज करोंड़ों का टर्नओवर करने वाले एक्सपोर्ट हाउस की मालकिन हैं।

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अपनी जमा पूंजी के तीन हजार रूपए से 12 साल पहले लेदर इंडस्ट्री में कदम रखने वाली प्रेरणा वर्मा ने एक छोटे से कमरे में लेदर के फीते बनाने शुरू हुए थे, आज ‘क्रिएटिव इण्डिया’ में बने प्रोडक्ट की मांग दुनिया के 25 देशों में हैं।

कानपुर जिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर कौशलपुरी गुमटी में रहने वाली प्रेरणा वर्मा (35 वर्ष) अपने बिजनेस के सफर और तरक्की के बारे में मुस्कुराते हुए बताती हैं, “जब मैंने इस काम की शुरुआत की थी मुझे खुद भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि मेरा ये बिजनेस इतना सफल होगा। मै मेहनत करती गयी और ये सफर आगे बढ़ता गया, आज हमारे बने प्रोडक्ट की मांग 20 से 25 देशो में हैं।” वो आगे बताती हैं, “जब अपने घर में अपने इस काम की शुरुआत की थी, उस दौर में मेरा मोबाइल खर्च, मेरी स्कूटी के पेट्रोल का पैसा निकल आये बस इस बात की हमेशा चिंता रहती थी, सभी ने मेरा मजाक बनाया और कहा, ये बिजनेस करेंगीं। क्योंकि हमारा समाज आज भी ये स्वीकार करने में संकोच करता है कि कोई लड़की या महिला भी अकेले बिजनेस खड़ा कर सकती हैं।”

एक साधारण परिवार में जन्मी प्रेरणा के घर में उनकी माँ और एक छोटा भाई है। घर में पैसे की तंगी हमेशा से रही। घर के खर्चों में हाथ बंटाने के लिए प्रेरणा बारहवीं कक्षा से ही नौकरी करने लगीं थी। इन्होने पैसों को लेकर कभी बड़े बनने की उम्मीद नहीं पाली थी, बस इतना कमाना चाहती थी जिससे सिर्फ घर का खर्च और उनकी पढ़ाई पूरी होती रहे। साल 2004 में किसी के साथ पार्टनरशिप करके लेदर की डोरी के बिजनेस की शुरुआत की। आपसी तालमेल न रहने की वजह से ये पार्टनरशिप बहुत लम्बे समय तक नहीं चल सकी। उसी समय प्रेरणा को ये चुनौती दी गयी कि ये क्या बिजनेस कर पाएंगी, जिन्हें बिजनेस के बारे में कुछ पता ही न हो’। ये बात प्रेरणा को चुभ गयी थी।

प्रेरणा ने बताया, “मुझे लगा नौकरी करके कुछ हजार रूपए तो मै कभी भी कमा सकती हूँ, क्यों न इस चुनौती को स्वीकार करूं कि मै भी बिजनेस कर सकती हूँ। सफलता या असफलता तो लगी ही रहती है, कुछ महीने इसी कशमकश में गुजर गये।” साल 2005 में प्रेरणा ने एक बार फिर अपने घर के छोटी से कोने में अपना छोटा सा आफिस बनाया और काम की शुरुआत कर दी। एक साल बाद प्रेरणा ने 2006 में अपनी कम्पनी ‘क्रिएटिव इण्डिया’ नाम से रजिस्ट्रेशन करा लिया। फजलगंज की इंडस्ट्रियल एरिया में आज ये फैक्ट्री चल रही है।

तीन हजार से बिजनेस की हुई शुरुआत

प्रेरणा के पास न तो कोई मोटी जमा पूंजी थी और न ही किसी अपने का साथ था। इनके पास तीन हजार रूपए ही थे जिससे इन्होने बिजनेस करनी की ठान ली थी। प्रेरणा ने कहा, “मुझे असफल होने का बिल्कुल भी डर नहीं था, कोई भी काम में हार या जीत तो होती ही रहती है, घर से लेकर बाहर तक के लोगों को मेरे इस फैसले से एतराज था। मै उनकी मर्जी के हिसाब से काम नहीं कर सकती थी, मैंने लोगों की बातों का अनसुना किया।” वो आगे बताती हैं, “इस बिजनेस से मैंने सिर्फ इतनी ही उम्मीद रखी थी कि मेरे जरूरत के खर्चे पूरे होते रहें। कभी घाटा कभी मुनाफा ये उतार-चढ़ाव का दौर हमेशा चलता रहा।”

एक कमरे से शुरू हुआ ये बिजनेस आज फैक्ट्री तक पहुंच गया

लेदर के फीते बनाने की शुरुआत एक कमरे के कुछ जगह से हुई थी आज ये ‘क्रिएटिव इण्डिया’ फैक्ट्री तक पहुंच गया है। पचास से ज्यादा लोग इस फैक्ट्री से जुड़कर रोजगार पा रहे हैं। यहाँ पर लेदर की डोरी, कॉटन की डोरी, लेदर बैग्स, लेदर हैंडीक्राफ्ट जैसी तमाम चीजें बनती हैं। यहाँ के प्रोडक्ट की मांग 20 से 25 अलग-अलग देशों में होती है।

नेशनल स्तर पर कई बार इन्हें किया गया सम्मानित

प्रेरणा के इस जज्बे को खूब सराहना मिली है। नेशनल स्तर पर इन्हें तीन अवार्ड मिल चुके हैं। साल 2015 में एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल फॉर हैंडीक्राफ्ट, 2016 में नेशनल प्रोडक्टिविटी काउंसिल, 2017 में एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल फॉर हैंडीक्राफ्ट पुन: मिला। 2017 में ही भारत सरकार की तरफ से साउथ कोरिया में हुई इंटरनेशनल कार्यशाला में जाने का मौका मिला। जिसका मुख्य उद्देश्य था अपने बिजनेस को और कैसे बेहतर किया जाए। प्राइवेट संस्था से सिर्फ प्रेरणा को जाने का मौका मिला था। स्थानीय स्तर पर भी इन्हें कई संस्थाओं ने न सिर्फ सराहा है बल्कि कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है।

कई लोग पूंछने आते हैं इनसे बिजनेस का हुनर

प्रेरणा की कामयाबी इस तरह छा गयी है, कई लोग इनसे बिजनेस करने की सलाह लेने भी आते हैं। प्रेरणा ने कहा, “इससे पहले मुझे भी कोई बिजनेस करने का अनुभव नहीं था, पर मैंने जिस काम को किया उसी में लगी रही और उसी में नये मौके तलाशती रही। जिस काम में जिसकी रूचि हो वही काम मन लगाकर करे सफलता जरुर मिलेगी।” वो आगे बताती हैं, “कोई भी बिजनेस को खड़ा करने में सफलता एक या दो साल में नहीं मिलती है, ये एक लम्बी प्रक्रिया है जिसमे लगना पड़ता है, मुझे भी अपने बिजनेस को यहाँ तक पहुँचाने में 12 साल लग गये, तब कहीं जाकर आज हमारी कम्पनी करोड़ों का टर्नओवर दे रही है। शुरुआती कुछ साल बिजनेस सीखने में ही गुजर जाता है, कभी निराश न हो महिला या पुरुष बिजनेस कोई भी कर सकता है बस उसमे लगन और हिम्मत होनी चाहिए।”

गुस्से को अपनी ताकत बना ली

प्रेरणा को लोगों की बाते सुनकर गुस्सा आता था, पर इस गुस्से को इन्होने हमेशा उर्जा में बदला। इन्हें बिजनेस में नुकसान हो या मुनाफा पर ये अपना धैर्य नहीं खोती हैं। अपनी टीम के साथ आज भी हंसी-मजाक करते हुए इनके पूरे दिन का काम होता है। गुस्से और उदासी को प्रेरणा ने हमेशा दूर रखा। प्रेरणा इसी हंसी को अपनी ताकत मानती हैं।