भारत सरकार के Contract Farming को मान्यता देने के फैसले तथा उसके बाद किसानों द्वारा जगह-जगह किए गए प्रदर्शन के बाद Contract Farming विशेष रूप से चर्चा का विषय बना हुआ है. अगर हम बिल्कुल साधारण शब्दों में देखे तो Contract Farming का मतलब होता है कि किसान अपनी फसलों को लगाने के समय ही कंपनियों के साथ एक Contract होता है. जिसमें फसल का मूल्य पहले से तय किया जाता है. इसमें कंपनियां बैंको की मद्द से अधिक से अधिक पूंजी का निवेश खेती में कर पाएंगीं तथा इससे किसान और कंपनी दोनों को फायदा होता है.
किसानो को मिलने वाले लाभ की बात करें तो किसानों को पहले से अपनी फसल का मूल्य पता होता है, उसको बाजार के हिसाब से अपनी फसल का मूल्य निर्धारण की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा तथा इसके साथ ही उनको अपनी फसल का बेहतर मूल्य मिल पाएगा. अगर कंपनी के नजरिए से देखे तो कंपनी को भी बिचौलियों से छूटकारा मिलेगा अब वो किसान से सीधा अपनी आवशकता के हिसाब से फल या अनाज के लिए Contract कर पाएंगें और उनको उच्च गुणवत्ता का उत्पाद मिल पाएगा. इसके अलावा किसानों को विश्व स्तरीय तकनीक , मशीन की सुविधा , निशुल्क तकनीकी सलाह , निरंतर फसल की देखरेख तथा उच्च पैदावार मिलती है. जो कृषि क्षेत्र में किसानों की आय बढ़ाने में एक अहम हथियार साबित हो सकता है.
इसका विरोध करने वाले किसान आरोप लगा रहे हैं कि कंपनिया किसाने से निश्चित मूल्य पर खरीदने का वादा तो करती हैं, लेकिन यदि बाजार में फसल का मूल्य कम हो तो वो किसान को कुछ समय इंतजार करने को बोलती हैं, उसके बाद किसानों के उत्पाद में गुणवत्ता की कमि बताकर खरीदने से मना कर देती हैं.
सरकार का कहना है कि यह Contract सीमित समय के लिए होगा तथा उत्पाद पर होगा. इसके साथ ही सरकार ने कहा है कि जो Contract होगा उसके लिए क्षेत्रिय भाषा का प्रयोग किया जाएगा जिससे किसान उसको आसानी से समझ सके. यदि निवेशक जमीन में सुधार के लिए कोई बदलाब करता है तो भी मालिकाना हक उस पर किसान का ही होगा.
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समाधान – सरकार को किसाने से बात करनी चाहिए तथा उनके मन में जो शंका है, उनको दूर करने के लिए भी इसमें जो भी बदलाव जरूरी हैं वो करने चाहिए. जहां तक किसानों की बात है, तो उन्हें भी Contract Farming का विरोध करने की बजाए जो उनकी शंकाएं हैं उनमें बदलाव के लिए सरकार के सामने अपनी मांग रखनी चाहिए.