बूंदेलखंड, बांदा – पेयजल समस्याओं पर सरकारी आंकड़ों का मकड़जाल, नदी का पानी पीने को लोग मजबूर

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बूंदेलखंड, बांदा – पेयजल समस्याओं पर सरकारी आंकड़ों का मकड़जाल, नदी का पानी पीने को लोग मजबूर

यूपी, बांदा। ‘ मिलता नहीं है दाना, घर में रखा खजाना ’। बुंदेलखंड में सरकारी पेयजल योजनाओं का हाल भी कुछ ऐसा ही है। प्रदेश के मुख्य सचिव ने फरमान जारी किया है कि बुंदेलखंड की पेयजल योजनाएं मार्च 2018 तक यानी सिर्फ पांच माह में पूरी कर ली जाएं। दूसरी तरफ जल निगम और जल संस्थान के पास पैसों की भारी कमी है। इनके पास बजट का जबर्दस्त टोटा है। बानगी के तौर पर चालू वित्तीय वर्ष में चित्रकूटधाम मंडल की पाइप्ड पेयजल योजनाओं के लिए 10 अरब 17 करोड़ की जरूरत है लेकिन जल निगम के पास सिर्फ 13 करोड़ 68 लाख रुपये ही उपलब्ध हैं। चित्रकूटधाम मंडल जल निगम (निर्माण) अधीक्षण अभियंता गिरीशचंद्र ने बताया कि इस वित्तीय वर्ष में कोई बजट नहीं मिला है। जबकि शासन को दो बार डिमांड पत्र भेजा जा चुका है। कम से कम 55 करोड़ रुपये की दरकार है।

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हाल ही में प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव ने जल निगम और जल संस्थान के अभियंताओं को निर्देश दिए हैं कि लिखित प्रमाण पत्र दें कि ट्यूबवेल और हैंडपंप चालू हालत में हैं। शासन का यह फरमान जल निगम और जल संस्थान के गले की फांस बन गया है। एक तरफ बजट न होने से योजनाओं पर काम नहीं हो पा रहा और दूसरी तरफ सरकार की तलवार तनी है। ऐसे में लाजमी है कि लाज बचाने के लिए अभियंता आंकड़े की बाजीगरी अपनाएंगे। हैंडपंपों के मामलों में ऐसे हो भी रहा है।

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बजट बगैर जो योजनाएं वर्षों में पूरी नहीं हो पाईं वह पांच में कैसे चालू हो सकती हैं ? चित्रकूटधाम मंडल के चारों जिलों की हालत यह है कि राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल मिशन के तहत चालू वित्तीय वर्ष 2017-18 में जल निगम को कुल 14 परियोजनाओं को पूरा करना है। इनमें 12 बीते साल की और दो परियोजनाएं मौजूदा वित्तीय वर्ष की हैं। जल निगम में इन परियोजनाओं के लिए कुल 10 अरब 17 करोड़ 4 लाख रुपये का इस्टीमेट तैयार कर बजट मांगा है। लेकिन फिलहाल जल निगम के पास सिर्फ 13 करोड़ 68 लाख रुपये ही उपलब्ध हैं। यानि 88 करोड़ से ज्यादा रुपये की फौरी तौर पर जरूरत है। बजट की इस कमी के चलते पाइप्ड परियोजनाओं को अगले वर्ष मार्च माह तक कैसे पूरा किया जा सकता है ?

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पुरानी पेयजल योजनाओं के चालू होने का दावा
पेयजल को लेकर सरकारी आंकड़ों में हर योजनाओं को या तो पूरा बताया जाते है या काम हो रहा है लेकिन समस्या ये है कि लोग फिर भी क्यों प्यासे हैं, लोगों को क्यों तीन किलोमीटर और पांच किलोमीटर पानी पीने को जाना पड़ता है।

राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल मिशन के तहत चित्रकूटधाम मंडल में पुरानी पाइप्ड पेयजल योजनाओं को जल निगम ने चालू होने के दावा किया है। जल निगम के मुताबिक उसके द्वारा कुल 52 परियोजनाओं का संचालन हो रहा है। इनमें 40 पूरी क्षमता से चल रहीं हैं। 7 परियोजनाएं आंशिक क्षमता से चालू हैं। मात्र एक परियोजना बंद है।
इसी तरह ग्राम पंचायतों द्वारा संचालित 146 परियोजनाओं में 120 पूरी क्षमता से और 22 आंशिक क्षमता से चल रही हैं। बंद सिर्फ 8 बताई गईं हैं। ग्राम समूह पेयजल योजनाओं की कुल संख्या 50 बताई गई है। इसमें 25 पूरी क्षमता से और 25 आंशिक क्षमता से चलना दर्शाया गया है। इनमें कोई परियोजना बंद नहीं है। इसके अलावा ग्राम समूह परियोजनाओं में जल संस्थान द्वारा 19 परियोजनाएं चलाई जा रहीं। इनमें 11 पूरी क्षमता से और 8 आंशिक क्षमता से चल रही हैं।

मंडल में कुल 2315 हैंडपंप रिबोर
हमें ये देखना होगा कि क्या हर हैंडपंप का पानी पीने के लायक होता है, क्या सरकार ने ऐसी कोई व्यवस्था की है कि लोगों को पता चले कि कौन से हैंडपंप का पानी पीने के लिए उपयुक्त है।

बुंदेलखंड में प्यास बुझाने में हैंडपंप की खास भूमिका है। गांव से लेकर शहरों तक बड़ी तादाद में यह लगाए जा रहे हैं। लेकिन साल दर साल भूजल स्तर नीचे गिरने से यह ठप भी होते जा रहे हैं। रिबोर होने वाले हैंडपंपों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। उधर, जल निगम ने चित्रकूटधाम मंडल ने चालू वित्तीय वर्ष 2017-18 में 2315 हैंडपंपों का रिबोर बताया है। इसमें 13 करोड़ 19 लाख 63 हजार रुपये खर्च होना दर्शाया गया है। जल निगम के पास हैंडपंप रिबोर मद में सिर्फ 14 करोड़ 91 लाख 56 हजार रुपये थे।

हमीरपुर में 24 समूह पेयजल योजनाओं से जुड़े 68 गांव प्यासे
जिले में संचालित पेयजल योजनाएं वर्षों से बंद पड़ी हैं। जल निगम इन योजनाओं पर हर साल बजट मांगता है। शहरियों को तो ले देकर पानी पिलाने का इंतजाम हो रहा है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों की अधिकांश पेयजल योजनाएं बंद पड़ी हैं। जिले में कुल 82 योजनाएं संचालित हैं, इनमें 39 जल निगम के अधीन हैं। जबकि 18 जल संस्थान व 25 एकल पेयजल योजनाएं ग्राम पंचायतों के सुपुर्द हैं। ग्राम पारा, पचखुरा खुर्द, ऐंझी व कुछेछा, छानी (मुस्करा), खड़ेहीलोधन व गोहानी राठ योजनाओं के नलकूप फेल हैं। नलकूपों को वर्ष 2008 में स्थापित किया गया था। ग्राम पंचायतों की योजनाओं की भूमिगत पाइप लाइनें ध्वस्त होने पर प्रत्येक को 15 से 20 लाख रुपये जरूरत है। जलनिगम से संचालित 24 समूह योजनाओं से 68 गांवों को जोड़ा गया है लेकिन जिन गांवों में यह इकाइयां स्थापित हैं वहां के लोग तो कभी-कभार पानी पा जाते हैं।

ममना समूह पेयजल योजना में सात गांव जुड़े हैं जिसमें पचखुरा, टाई, मनकहरी, महराजपुर, बरगवां व बीलपुर है। इन गांवों में पानी पहुंचाने के लिए जलनिगम ने 22 किमी पाइप लाइनें बिछाई हैं। इसी तरह इटैलियाबाजा की पेयजल समूह योजना में 53 किमी लाइन बिछाकर बरौली, खरका, अतरा, चिकासी, इस्लामपुर, बिरहट, बड़ाखरका, जरिया व त्योतना गांवों को जोड़ा गया है जबकि जलालपुर पेयजल योजना से 18.50 किमी लाइन डाली गई। इससे जलालपुर के साथ भेड़ी और खंडौत को जोड़ा गया है। सायर पेयजल समूह योजना में छह गांवों को जोड़ने के लिए 21 किमी लाइन डाली गई है। इस योजना से ऊपरी, देवकली, भरसवां, पाटनपुर, लोहारी को जोड़ा है। छानीबुजुर्ग गांव की योजना से दो गांव को जोड़ने के लिए 15.13 किमी पाइप लाइनें बिछाई गई हैं। बक्छा गांव को पानी मुहैया कराने के लिए भैसमरी गांव में पेयजल योजना स्थापित कर छानी और खैर को जोड़ा गया। 19.02 किमी लंबी पड़ी लाइनों पर आज तक एक बूंद भी पानी नहीं पहुंच पाया है। जलनिगम का दावा है कि वह 41 गांवों को पेयजल मुहैया करा रहा है। जबकि हकीकत में 80 फीसदी गांवों के  ग्रामीण पेयजल को तरस रहे है। बंद पड़ी पेयजल योजनाओं को लेकर डीएम राजेंद्र प्रताप पांडेय ने अधिकारियों के साथ बैठक की। फिलहाल बैठक में सीडीओ ने बंद पड़ी योजनाओं को कब तक चालू करनी है इसकी लिखित जानकारी मांगी है।

बक्छा के ग्रामीण पी रहे केन नदी का पानी

बक्छा और छानी गांव के  लोग केन नदी का पानी पीने को मजबूर हैं। इनके लिए तीन किमी दूर भैसमरी गांव में योजना स्थापित की गईं, लेकिन जल निगम गांव को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने में नाकाम रहा। दरअसल बक्छा गांव के अंदर खारा पानी है। गांव के अंदर लगने वाले हैंडपंपों से जहरीला पानी निकलता है। वह मवेशी भी नहीं पीते। बक्छा के पूर्व प्रधान जगतपाल सिंह ने कहा कि आजादी के बाद से उनके गांव को पानी नहीं मिला है।