जल्लीकट्टु खेल के लिए सुप्रीम कोर्ट का नया फैसला

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तमिलनाडु में पारंपरिक और सांस्कृतिक तौर पर खेले जाने वाले जल्लीकट्टु नामक खेल पर उच्च न्यायालय ने नया फैसला सुनाया है. कोर्ट ने दो वर्ष पहले खेल को असंवैधानिक रूप से खेलने पर खेल पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया था. 7 मई २०१४ को देश में पशुओं के साथ हुये हिंसक बर्ताव को मानते हुये खेल पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंध लगा दिया था.

खेल पर प्रतिबंध लगने के बाद तीन साल तक तमिलनाडु में इस खेल का आयोजन नहीं हुआ.  लम्बी शांति के बाद इस वर्ष फिर से लोग फिर जल्लीकट्टु खेलने के लिए विरोध कर रहे हैं. उन्होंने खेल की वापस मांग की है और अब फिर से ये मामला सुप्रीमकोर्ट तक पहुँच गया है.

तमिलनाडु में जल्लीकट्टु खेल पर लगे प्रतिबंध को लेकर राज्य भर में विरोध प्रदर्शन जारी है. चेन्नई के मरीना बीच पर हजारों की तादाद में लोग जमा हुए हैं और मांग कर रहे हैं कि पोंगल के मौके पर होने वाले जल्लीकट्टू खेल पर सुप्रीम कोर्ट ने जो प्रतिबंध लगाया है  उसे हटाया जाए. संवैधानिक पीठ ये तय करेगी कि क्या जल्लीकट्टु और बैल गाड़ी रेस राज्य की संस्कृति का हिस्सा है या नहीं.

इस मामले को लेकर राज्य के सीएम ओ पन्नीरसेल्वम ने गुरुवार को ही पीएम मोदी से मुलाकात की है. पीएम ने कहा है कि क्योंकि मामला अदालत में है इसलिए वह दख़ल नहीं दे सकते.

 

जल्लीकट्टु खेल क्या है ?

जल्लीकट्टू सांडों का खेल है जिसमें उसके सींग Jalikattu 2 -पर कपड़ा बांधा जाता है. जो खिलाड़ी सांड के सींग पर बांधे हुए इस कपड़े को निकाल लेता है उसे ईनाम के रूप में सिक्के या पैसे मिलते हैं. इसलिए इस खेल को जल्लीकट्टू के नाम से जाना जाता है. ये खतरनाक खेल खासकर के पोंगल के वक़्त ही खेला जाता है.

परन्तु लोगों ने इस खेल को हिंसात्मक तरीके से खेलना शुरू कर दिया था. खेल के दौरान लोग एक दूसरे को हानी पहुंचाते थे.

साथ ही पशुओं के अधिकारों की रक्षा करने वाली संस्थाओं ने इस खेल को जानवरों के लिए हानिकारक बताया है, यही कारण था की खेल पर प्रतिबंध लग गया था.  हालांकि तमिलनाडु की जनता खेल पर लगे हुये प्रतिबंध को वापस लेने की मांग कर रही है.

अभिनेता भी खेल के समर्थन में

बता दें कि अभिनेता कमल हसन और रजनीकांत ने भी इस खेल का समर्थन किया है सांड़ों की लड़ाई का यह खेल तमिल संस्कृति का हिस्सा है. रजनीकांत ने कहा था कि ‘चोट से बचने के लिए खेल को लेकर नियम बनाए जा सकते हैं लेकिन क्या किसी संस्कृति को अस्वीकार करना सही है?’

 

 

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