धारा 377 के बाद समलैंगिक विवाह एक नया विवाद

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समलैंगिक विवाह
समलैंगिक विवाह

दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है , जिसके अनुसार समलैंगिक विवाह के पंजीकरण के लिए जाते हैं तो कहीं भी उसका पंजीकरण नहीं हो पाता है. आपको बता दें समलैंगिक विवाह का मतलब होता है कि जब कोई लड़का किसी लड़के से विवाह करता है या कोई लड़की किसी लड़की से विवाह करती है तो इस तरह के विवाह को समलैंगिक विवाह कहते हैं.
अब आप सोच रहे होंगें कि यह मुद्दा अभी कैसे आया तो आपको बता दें इसका आधार 2018 में आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला है. जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने भारत में IPC की धारा 377 खत्म करने का निर्णय दिया. इस फैसले के बाद समलैंगिक Sex अब कानून की नजरों में गुनाह नही रहा. 2018 से पहले समलैंगिक Sex के जुर्म में सजा का प्रावधान था.

सबसे पहले 2009 में दिल्ली हाईकोर्ट में समलैंगिक Sex को वैध घोषित करने के लिए याचिका दायर की गई. जिसमें समलैंगिक Sex को वैध घोषित किया गया. लेकिन 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया. 2014 में 3 Gender को मान्यता दी गई. 2018 नवतेज सिंह जौहर v/s Union of India केस में सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले फैसले को बदलते हुए, IPC की धारा 377 खत्म करने का निर्णय दिया. भारत में जब समलैंगिक Sex को मान्यता दी गई उसके बाद उनकी शादी पंजीकरण का मुद्दा उभरकर सामने आया.

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समलैंगिक विवाह

इसके समर्थन में जो दलील दी जा रही है, उसके अनुसार हिंदू Marriage Act में शादी की परिभाषा में कहीं नहीं लिखा हुआ कि शादी पुरूष और स्त्रि के बीच ही हो सकती है. इसके साथ ही अमेरिका के साथ साथ 25 से अधिक देशों में समलैंगिक शादी मान्य है.

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सरकार की तरफ से पेश होते हुए तुषार मेहता जी ने दलील दी है कि 2018 से सुप्रीम कोर्ट के फैसले में सिर्फ ये था कि हम धारा 377 को खत्म करते हैं ना इससे कम ना ज्यादा. उस फैसले में कहीं नहीं कहा गया था कि हम शादी को मान्यता देगें. इसके साथ ही समलैंगिक विवाह हमारे समाज और मल्यों के खिलाफ है.
ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि सुप्रीम कोर्ट का इसपर क्या फैसला आता है.

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