Ghaziabad Election: चुनावी मैदान में एक-दूसरे के सामने राजनीतिक घराने, विरासत बचाने का सवाल

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Ghaziabad Election: चुनावी मैदान में एक-दूसरे के सामने राजनीतिक घराने, विरासत बचाने का सवाल

गाजियाबाद: राजनीति में परिवारवाद का विरोध हर पार्टी करती है, लेकिन हकीकत इसके उलट है। गाजियाबाद जिले के राजनीतिक घरानों की विरासत भी बेटों को ही मिलती रही है और सभी पार्टियां उन्हें टिकट भी देती रही हैं। इस बार भी राजनीति में अपना रसूख रखने वाले इन परिवारों के उत्तराधिकारी चुनावी मैदान में हैं, लेकिन इन सभी के सामने अपनी विरासत और परिवार की साख को बचाने की चुनौती भी है। किसी के सामने अपनी ही पार्टी के बागी प्रत्याशी हैं, तो कोई जातीय समीकरणों में उलझ रहा है। वहीं, पहली दफा परिवार की गद्दी संभाल रहे नए चेहरों को दिग्गजों से पार पाना आसान नहीं होगा। पेश है अखंड प्रताप सिंह की रिपोर्ट:

तीसरी बार अतुल की राह कितनी आसान
अतुल गर्ग के पिता दिनेश चंद्र गर्ग 70 के दशक में गाजियाबाद नगरपालिका के चेयरमैन रह चुके हैं। 1985 में उन्होंने गाजियाबाद से बतौर बीजेपी प्रत्याशी विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। 1989 में टिकट न मिलने पर जनता दल में चले गए। दोबारा बीजेपी में लौटने के बाद 1995 में वह गाजियाबाद के पहले मेयर बने और दोबारा भी मेयर का चुनाव जीता। उनके बाद उनके बेटे अतुल गर्ग ने राजनीतिक विरासत संभाली और 2012 में पहला विधानसभा चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। 2017 में वह पहली बार बीजेपी से विधायक बने। अब तीसरी बार बीजेपी के टिकट पर फिर मैदान में हैं।

चुनौती- बीजेपी से बगावत कर केके शुक्ला के बसपा में शामिल होने से अतुल गर्ग की राह अब आसान नहीं मानी जा रही है। वहीं, वैश्य वोट बैंक में कांग्रेस के वैश्य प्रत्याशी सुशांत गोयल सेंध लगाने के लिए भी तैयार हैं।

2004 के बाद से नहीं मिली है जीत
सुरेंद्र कुमार मुन्नी के पिता प्यारेलाल शर्मा 3 बार अलग-अलग दलों से विधायक बन चुके हैं। पिता की हत्या के बाद 1980 में हुए चुनाव में सुरेंद्र कुमार मुन्नी ने कांग्रेस से टिकट मांगा, लेकिन नहीं मिला। फिर उन्होंने कांग्रेस के बागी प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की। हालांकि बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए। 1984 में उन्हें टिकट नहीं मिला और इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति की लहर में केके शर्मा विधायक बने। 1989 में सुरेंद्र मुन्नी को कांग्रेस ने टिकट दिया तो उन्होंने बीजेपी से पहली बार चुनाव लड़ रहे बालेश्वर त्यागी को हराया। 2004 में शहर विधानसभा का उपचुनाव भी जीते। उसके बाद से उन्हें लगातार हार का सामना करना पड़ा। मुन्नी के भतीजे भी राजनीति में सक्रिय रहते हैं।

चुनौती- सुरेंद्र कुमार मुन्नी को वर्तमान विधायक अजीतपाल त्यागी से टक्कर लेनी होगी। इस विधानसभा क्षेत्र में रालोद का ज्यादा वोटबैंक नहीं है। सपा के वोटबैंक में कांग्रेस प्रत्याशी बिजेंद्र यादव सेंध लगाएंगे।
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पिता के वोटबैंक का सहारा
सुरेंद्र प्रकाश गोयल पहले नगरपालिका के चेयरमैन बने, बाद में मेयर का चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं सके। 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें शहर विधानसभा से टिकट दिया, तो तत्कालीन मंत्री बालेश्वर त्यागी को हराकर वह विधायक बने। 2004 के चुनाव में हापुड़ गाजियाबाद लोकसभा सीट पर आम चुनाव में बीजेपी के 4 बार के सांसद रमेश चंद्र तोमर को हराकर वह संसद भी पहुंचे। पिछले साल कोरोना संक्रमण के चलते उनकी मौत हो गई। इस बार उनके बेटे सुशांत गोयल को कांग्रेस ने शहर विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया है।

चुनौती- कांग्रेस प्रत्याशी सुशांत गोयल का यह पहला चुनाव है। अनुभवी अतुल गर्ग और बसपा से आए केके शुक्ला उनपर भारी पड़ सकते हैं। फिलहाल उनके साथ उनके पिता सुरेंद्र प्रकाश गोयल का वोटबैंक जरूर जुड़ा हुआ है।
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विरोधियों ने बिछा दी है बिसात
राजपाल त्यागी सत्तर के दशक में गाजियाबाद बार असोसिएशन के अध्यक्ष रहे। 1980 में कांग्रेस के जिलाध्यक्ष बने। 1989 से मुरादनगर विधानसभा से कांग्रेस से टिकट न मिलने पर उन्होंने बतौर निर्दलीय जीत हासिल की और फिर कांग्रेस में शामिल हुए। 1991 में कांग्रेस के टिकट पर वह दोबारा विधायक बने, लेकिन 1993 में जनता दल के प्रत्याशी प्रेम प्रमुख से चुनाव हार गए। 1996 में वह सपा के टिकट पर मुरादनगर से जीते और कुछ समय फिर कांग्रेस में शामिल हो गए। 2002 में कांग्रेस के टिकट पर एक बार और जीते। इसी साल बीजेपी के समर्थन में बनी बसपा सरकार में वह पहली बार मंत्री भी बने। 2004 में बीजेपी ने बसपा से समर्थन वापस लिया तो सपा की सरकार बनी। इसके कुछ समय बाद राजपाल सपा में शामिल हो गए और मुलायम सरकार में मंत्री बने। 2007 के चुनाव में उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की। इस साल ही बसपा की पूर्ण बहुमत में सरकार आई तो वह विधानसभा से इस्तीफा देकर बसपा में शामिल हो गए और चुनाव लड़कर जीत भी हासिल की। 2012 के चुनाव से पहले वह बसपा छोड़कर सपा में शामिल हुए, लेकिन चुनाव में हार गए।

2013 में राजपाल के बेटे अजीतपाल त्यागी जिला पंचायत चेयरमैन बने। 2014 के लोकसभा चुनाव में पिता-पुत्र सपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए। 2016 के आखिर में अजीतपाल त्यागी बीजेपी में शामिल हुए और 2017 में विधायक भी बने। इस बार भी वह बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। राजपाल त्यागी की पुत्रवधू और पौत्र भी राजनीति में सक्रिय हैं।
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चुनौती –इस बार कांग्रेस के पुराने नेता बिजेंद्र यादव और सपा-रालोद गठबंधन के प्रत्याशी सुरेंद्र कुमार मुन्नी के आने से अजीतपाल त्यागी के लिए चुनौती काफी बढ़ी है। बिजेंद्र यादव और सुरेंद्र कुमार मुन्नी दोनों की मुरादनगर विधानसभा के मतदाताओं में खासी पैठ है।

यूपी चुनाव का कार्यक्रम
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Election 2022) का ऐलान चुनाव आयोग ने 8 जनवरी को किया। 403 सीटों वाली 18वीं विधानसभा के लिए 10 फरवरी से 7 मार्च तक सात चरणों में वोट पड़ेंगे। 10 मार्च को चुनाव के नतीजे (UP Election results) आएंगे। यूपी में सात चरणों (Seven Phase) के तहत 10 फरवरी, 14 फरवरी, 20 फरवरी, 23 फरवरी, 27 फरवरी, 3 मार्च और 7 मार्च को मतदान (Voting) होगा। 10 फरवरी को पहले चरण (First Phase) में पश्चिम यूपी के 11 जिलों की 58 सीटों पर, दूसरा चरण (Second Phase) 14 फरवरी को 9 जिलों की 55 सीटों पर, 20 फरवरी को तीसरे चरण (Third Phase) में 16 जिलों की 59 सीटों पर मतदान होगा। चौथे चरण (Fourth Phase) में मतदान 23 फरवरी को लखनऊ सहित 9 जिलों की 60 सीटों पर होगा। पांचवे चरण (Fifth Phase) में 27 फरवरी को 11 जिलों की 60 सीटों पर, छठे चरण में 3 मार्च को 10 जिलों की 57 सीटों पर और सातवें (Seventh Phase) और अंतिम चरण (Last Phase) का मतदान 7 मार्च को 9 जिलों की 54 सीटों पर किया जाएगा।

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