GOOGLE ने मलयालामी लेखिका कमला दास को किया याद, विवादित रहा है निजी जीवन

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गूगल ने आज मलयालम और इंग्लिश की जानी-मानी लेखिका कमला दास उर्फ़ कमला सुरय्या को याद किया है. कमला, ‘माधवीकुट्टी’ के नाम से भी लिखती थीं. उन्होंने 1 फरवरी 1976 को अपनी आत्मकथा My Story  को लॉन्च किया था. आज गूगल ने डूडल बनाकर कमला दास की बेस्टसेलर किताब My Story को याद किया है. आज का Google Doodle  आर्टिस्ट मंजीत थाप ने बनाया है.

मर्ज़ी की मल्लिका थीं कमला

कमला दास का जन्म पारंपरिक हिंदी नायर परिवार में 31 मार्च 1934 को हुआ था. वो शाही परिवार से ताल्लुक़ रखती थी. कमला दास ने 11 दिसंबर, 1999 में 65 साल की उम्र में इस्लाम को अपना लिया और कमला सुरैया हो गईं. उन्होंन एक इंटरव्यू के दौरान कहा थाः “मुझे मृतों के दाह संस्कार की हिंदू प्रक्रिया पसंद नहीं है. मैं नहीं चाहती मेरे शरीर को जलाया जाए. यह एक छोटी वजह हो सकती है. लेकिन मेरा इस्लामिक जीवनशैली के प्रति खास लगाव रहा है. मैंने दो नाबीना मुस्लिम बच्चों इरशाद अहम और इम्तियाज अहमद को गोद लिया है. वे मुझे इस्लाम के करीब लाए हैं.”

कमला दास की आत्मकथा ‘माय स्टोरी’ ने छपते ही हंगामा बरपा दिया था. इस किताब में उन्होंने अपनी जिंदगी के बारे में बड़ी ही बेबाकी के साथ लिखा था जो परंपरावादियों के गले नहीं उतरा था. लेकिन माधवीकुट्टी के नाम से लिखने वाली कमला दास ने कभी किसी की परवाह नहीं की. कमला दास की शादी 15 साल की उम्र में हुई थी और उनके पति माधव दास एक बैंक ऑफिसर थे. उन्होंने ही कमला को लिखने के लिए प्रेरित किया जिसके बाद कमला ने इंग्लिश और मलयालम में लिखना शुरू किया.

1985  में कविता संग्रह ‘कलेक्टेड पोएट्रीज’ के लिए कमला को अंग्रेजी के साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाज़ा गया था.

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फिल्मों से है ख़ास ताल्लुक़

कमला अंग्रेज़ी और मलयालम दोनों भाषाओं पर अच्छी पकड़ रखती थी. वो अंग्रेजीं में कविताएँ लिखती और मलयालम भाषा में कहानियां लिखती थी. हमेशा बिंदास ज़िंदगी जीने वाली कमला दास की जिंदगी पर जब फिल्म बनी तो वह विवादों में आ गई. उनकी जिंदगी पर ‘अमी’ नाम से फिल्म भी बन रही है और इसमें मंजू वॉरियर लीड रोल निभा रही हैं. शुरुवात में इस फिल्म में विद्या बालन को लेने की बात चल रही थी, पर बाद में उन्होंने इसमें काम करने से मना कर दिया था.

लेकिन फिल्म की रिलीज़ से पहले ही इस पर ‘लव जेहाद’ को बढ़ावा देने के आरोप लग गया है. फिल्म का ट्रेलर रिलीज हो चुकी है, और इसमें कमला दास की जीवन की झलक मिलती है.

वहीं कमला दास की तीन कहानियों पर फिल्में भी बनी हैं. ‘मनोमी’ नाम से लिखे गए उनके उपन्यास पर आधारित फिल्म ‘राम रावणन’ 2010 में बनी थी. इस फिल्म का निर्देशन बीजू वत्ताप्पारा ने किया था. कमला ने ये उपन्यास माधवीकुट्टी नाम से लिखा था. 1998 में बनी ‘ओरमईलेनम’ नाम की फिल्म माधवीकुट्टी की कहानी पर ही आधारित थी. इस फिल्म को टी. मोहन ने डायरेक्ट किया था. 2013 में आई काधावीदुः नाम की मलयालम फिल्म में तीन कहानियों को पिरोया गया था. इसमें एक कहानी कमला दास की भी थी.

अपनी शर्तों पर ज़िन्दगी जीने की पैरोकार

कमला दास की लेखनी बहुत ही क्रांतिकारी थी, और वे औरतों को अपने मनमुताबिक जीने की वकालत करती थीं. उनके लिए औरतों की आज़ादी बहुत मायने रखती थी. पेश है उनके कुछ ख़ास विचार.

“अगर कपड़े लपेटने से ही सम्मान की भावना पैदा होती तो सबसे सम्मानित मिस्र की ममी होतीं, क्योंकि उन पर कपड़ों की कई परतें होती हैं.”

“एक किताब किसी पुरुष का अच्छा विकल्प है. फिक्शन हो तो अच्छा है.”

“अपनी ही तरह की अन्य लेखिकाओं की तरह मुझसे भी यह उम्मीदें थीं कि मैं अपने टैलेंट का गला घोंटकर ऐसा लिखूं जो मेरे परिवार के लिए सहज हो.”

“तुमने उससे कभी प्यार नहीं किया, लेकिन तुम उसे लेकर सेंटीमेंटल थीं.”