गूगल ने डूडल बनाकर हिंदी साहित्य की इस महान कवियत्री को किया याद

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भारत ने हिंदी साहित्य को कई अनमोल नगीने दियें है l भारत का इतिहास और वर्तमान दोनों ही महान साहित्यकारों और कवी और कवित्रियों से सदा  है l उन्ही महान कवित्रियों में से एक महान लेखिका को आज उनके जन्मदिन के अवसर पर गूगल ने डूडल बनाकर याद किया है l

महादेवी का जीवन

महादेवी वर्मा का जन्म 27 अप्रैल 1907 को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में हुआl उनके नाम के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है ,दरअसल उनके परिवार में लगभग सात पीढियों के बाद एक बेटी का जन्म हुआ था , इसीलिए उनका नाम महादेवी रखा गया था l उनके पिता भागलपुर के एक कॉलेज में प्राध्यापक थेl महादेवी जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के मिशन स्कूल से ग्रहण की l आपको बता दें कि ,उन्हें संस्कृत, अंग्रेजी, संगीत और चित्रकला की शिक्षा टीजर्स द्वारा घर पर ही मिलीl 1916 में उनके बाबा श्री बाँके विहारी ने इनका विवाह बरेली के पास नबाव गंज कस्बे के निवासी श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कर दिया, उस समय नारायण वर्मा दसवीं कक्षा के विद्यार्थी थेl श्री वर्मा इण्टर करके लखनऊ मेडिकल कॉलेज में बोर्डिंग हाउस में रहने लगे। उनका विवाह होने के कारण उनकी पढ़ाई में बाधा आने लगी और फिर उन्होंने 1919 में इलाहाबाद के क्रास्थवेट कॉलेज में पढ़ाई शुरु कर दी और कॉलेज के हॉस्टल में ही रहने लगींl

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आठवीं कक्षा में पूरे प्रदेश में आई थी अव्वल 

आपको बता दें कि सन 1921 में महादेवी वर्मा ने 8वीं क्लास में पूरे प्रदेश में पहला स्थान प्राप्त किया था l सात वर्ष की छोटी आयु से ही महादेवी कवितायें लिखने लगी थीं और 1925 तक उन्होंने मैट्रिक पूरा करने के साथ ही वह एक सफल कवयित्री के रूप में पुरे देश में मशहूर हो गई थींl कहा जाता है कि महादेवी को विवाहित जीवन से विरक्ति थी, इसका कारण किसी को पता नही है l उनके पति स्वरुप नारायण कभी-कभार महादेवी से मिलने भी आते थे l महादेवी वर्मा के कहने पर भी स्वरुप नारायण ने कभी दूसरा विवाह नही किया l महादेवी जी ने एक सन्यासिनी के रूप में अपना जीवन जिया l पति की मृत्यु के पश्चात वह पूर्णत इलाहाबाद में रहने लगी l अलग-अलग पत्र-पत्रिकाओं में महादेवी की कविताएं का प्रकाशित होने लगी और कॉलेज में सुभद्रा कुमारी चौहान के साथ उनकी दोस्ती हो गईl साल 1932 में महादेवी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत विषय से एम.ए. कर रही थीं, इसी दौरान उनके दो कविता संग्रह ‘नीहार’ (1930) और ‘रश्मि’ (1932) प्रकाशित हो चुके थेl उन्होंने इसके अलावा 1934 में ‘नीरजा’ और 1936 में ‘सांध्यगीत’ नाम से दो अन्य कविता संग्रह भी लिखी l

इलाहाबाद को बनाई अपनी कर्मभूमि 

उनका जनम भले ही फर्रुखाबाद में हुआ, लेकिन इलाहाबाद शहर को उन्होंने अपना कर्मस्थल बनायाl हिंदी साहित्य में महादेवी वर्मा को छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक है l हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तम्भ जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ,सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा है l उनकी कविताओं में करुणा  कूट -कूट कर भरी हुई है l उनकी कविताओं में करुना की झलक के कारन उन्हें आधुनिक युग की मीरा के नाम से भी जाना जाता हैl

आधुनिक युग की मीरा ,निराला ने दिया हिंदी जगत की सरस्वती का दर्जा  

आपको बता दें कि कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती का दर्जा दिया था l महादेवी वर्मा ने स्वंत्रता के पहले का भारत भी देखा है और बाद का भी l उन्होंने मन की पीड़ा को इतने स्नेह और शृंगार रस से सजाया कि दीपशिखा में वह जन-जन की पीड़ा के रूप में स्थापित हुई और उसने केवल पाठकों को ही नहीं समीक्षकों को भी गहराई तक प्रभावित कियाl उन्होंने खड़ी बोली हिन्दी की कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल बृजभाषा में ही संभव मानी जाती थी। इसके लिए उन्होंने अपने समय के अनुकूल संस्कृत और बांग्ला के कोमल शब्दों को चुनकर हिन्दी का जामा पहनाया। संगीत की जानकार होने के कारण उनके गीतों का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने अध्यापन से अपने कार्यजीवन की शुरूआत की और अंतिम समय तक वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनी रहीं।

महादेवी की 18 काव्य और गद्य कृतियां, जिनमें ‘स्मृति की रेखाएं’, ‘मेरा परिवार’, ‘शृंखला की कड़ियां’, ‘पथ के साथी’ और ‘अतीत’ के चलचित्र काफी प्रमुख हैंl 11 सितंबर 1987 को इसी शहर इलाहाबाद में उनका देहांत हो गयाl लेकिन वह हमेशा के लिए हिंदी जगत के लिए अमर हो गईंl