राजा राम मोहन राय के 246 वें जन्मदिन पर गूगल ने डूडल बना कर दिया ट्रिब्यूट

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आज भारतीय इतिहास के महान सुधारक ”राजा राम मोहन राय” की 246वीं जयंती के उपलक्ष में गूगल ने डूडल बनाकर उनको याद किया है l राजा राम मोहन एक ऐसे सुधारक थे , जिन्होंने ना सिर्फ भारत में बल्कि अपने अथक प्रयासों से विश्व भर में एक क्रांति की शुरुवात की l

कौन थे ”राजा राम मोहन राय” ?
राजा राम मोहन राय भारत में जन्मे एक ऐसे समाज सुधारक थे ,जिनकी लायी हुई क्रांति का आज भी लोग आभार मानते हैl एक महान समाज सुधारक होने के साथ -साथ मोहन एक चिंतक, दार्शनिक और विद्वान भी थे l आप को बता दें, कि उन्हें आधुनिक भारतीय समाज का निर्माता’ कहा जाता है। राम मोहन ने ही ब्रह्म समाज की स्थापना की , देश के अंदर सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलन के प्रणेता थे वह। धार्मिक और सामाजिक विकास के क्षेत्र में राजा राममोहन राय का नाम सबसे अग्रणी है।

Raja Rammohan Ray -

 

कैसे मिली राजा की उपाधि ?
गौरतलब है कि ,राम मोहन ने ही ब्रिटिश शासक के सामने मुग़ल सम्राट का पक्ष रखा था ,जिसके एवज में ही मुग़ल शासक ने उन्हें राजा की  उपाधि दी थी l जिसके बाद से उन्हें “राजा राम मोहन राय “कह कर बुलाया जाने लगा l

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राजा राम मोहन राय का जीवन
राजा राममोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 ई. को राधानगर नाम के बंगाल के एक गांव में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम रमाकांत राय था। उन्होंने अपने जीवन में अरबी, फारसी, अंग्रेजी, ग्रीक, हिब्रू आदि भाषाओं का अध्ययन किया था। हिन्दू, ईसाई, इस्लाम और सूफी धर्म का भी उन्होंने गंभीर अध्ययन किया था। 17 वर्ष की कम उम्र में ही उन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध शुरू कर दिया था। वह अंग्रेजी भाषा और सभ्यता से काफी प्रभावित थे। उन्होंने इंग्लैंड की यात्रा की। धर्म और समाज सुधार उनका मुख्य लक्ष्य था।

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इन प्रथाओं का किया खंडन
1) मूर्ति पूजा – 15 वर्ष की उम्र में राम ने बंगला भाषा में एक किताब लिखकर मूर्ति पूजा का खंडन किया था l आपको बता दें, कि उन्होंने एक हिन्दू ब्राह्मण परिवार में जन्म लेकर मूर्ति पूजा के खंडन का दुह:साहस किया था l जिसका खामियाजा ये हुआ कि उन्हें कट्टरवादी परिवार से निकाल दिया गया और उन्हे देश निकाले के रूप में अपना जीवन व्यतीत करना पड़ा। लेकिन उन्होंने इन कठिन परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी और उल्टे इन परिस्थितियों का लाभ उठाया। उन्होंने दूर दूर तक यात्राएं की और इस प्रकार बहुत सा ज्ञान और अनुभव हासिल किया।

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2) सती प्रथा – भारत में सती प्रथा जैसी कुरीति को देख कर राम मोहन राय बहुत आहत हुए l दरअसल हुआ यह कि राजा राम मोहन राय किसी काम से विदेश गए थे और इसी बीच उनके भाई की मौत हो गई। उनके भाई की मौत के बाद सती प्रथा के नाम पर उनकी भाभी को जिंदा जला दिया गया। इस घटना से वह काफी आहत हुए और ठान लिया कि जैसा उनकी भाभी के साथ हुआ, वैसा अब किसी और महिला के साथ नहीं होने देंगे। इसके बाद उन्होंने सटी प्रथा विरोधी आन्दोलन चलाये l
राजा राम मोहन राय के ही अथक प्रयासों का यह परिणाम है कि ,हिंदुस्तान से इस प्रथा का पूर्णत खात्मा हो गया l

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सती प्रथा के विषय पर बॉलीवुड ने भी कई फ़िल्में बनाई है ,और फिल्मों द्वारा दिखाई गयी कहानी इस ओर इशारा करती है कि ,सती  प्रथा जैसी कुरीति भारत का इतिहास रह चुकी है l

सती (1989)
सन् 1989 में आई बंगाली फिल्म “सती” ने इस विषय को उजागर किया l इस फिल्म को अर्पणा सेन ने निर्देशित किया था l फिल्म की कहानी कमल कुमार मजुमदार की कहानी पर आधारित थी l यह फिल्म एक मूक अनाथ लड़की के बारे में है, जिसकी शादी बरगद के पेड़ से होती है, क्योंकि उसकी कुंडली के मुताबिक, शादी के बाद उनका पति मर जाएगा और वह सती होगीl फिल्म में शबाना आजमी और अरुण बनर्जी ने मुख्य भूमिका निभाई हैl Raja Ram Mohan Roy 5 news4social 1 -

पद्मावत (2018)
इसी साल (2018) में आयीं निर्देशक संजय लीला भंसाली की फिल्म “पद्मावत”,जिसमे इस प्रथा की एक झलक दिखती हैl हालांकि फिल्म में इसका सन्दर्भ अलग है ,जहाँ इसे जौहर कहा गया है l फिल्म में जब अलाउद्दीन खिलजी, राजा रावल रत्न सिंह को मारकर पद्मावती को जीतना चाहता हैं, ऐसी परिस्थिति में पद्मावती अपनी 1600 दासियों के साथ आग में कूद जाती है l और सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को जीत कर भी हरा देती है l फिल्म में अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने महारानी पद्मावती की सशक्त भूमिका निभाई हैl

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मंगल पांडे(2005)
आमिर खान स्टारर फिल्म ‘मंगल पांडे’ के एक सीन में अमीषा पटेल को उनके पति के निधन के बाद सती किया जाता हैl ऐन मौके पर एक बिटिश अधिकारी आग में झुलसती अमीषा की जान बचाता हैl इसके अलावा कई फिल्में, डॉक्यूमेंट्री और टीवी शो की कहानी भी सती प्रथा पर आधारित रही हैंl

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समाचार पत्रों की आज़ादी के लिए किया कड़ा संघर्ष
1822 ई. में उन्होंने फारसी भाषा में एक साप्ताहिक अखबार ‘मिरात-उल-अखबार’ नाम से शुरू कियाl आपको बता दें कि यह भारत में पहला फारसी अखबार था। साम्राज्यवादी ब्रिटिश सरकार को राजा राममोहन राय के धार्मिक विचार और इंग्लैंड की आयरलैंड विरोधी नीति की आलोचना पसंद नहीं आई। सरकार ने प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने के लिए अध्यादेश जारी किया, जिसके विरोध में राजा राममोहन राय ने ‘मिरात-उल-अखबार’ का प्रकाशन बंद कर दिया। राजा राममोहन राय ने समाचार पत्रों की स्वतंत्रता के लिए भी कड़ा संघर्ष किया था। उनके आन्दोलन का ही नतीजा था कि 1835 ई. में समाचार पत्रों की आजादी का रास्ता खुला।

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हिन्दू कॉलेज की स्थापना में दिया बड़ा योगदान
प्राचीन काल में अगर किसी भारतीय ने आधुनिक भारत का स्वप्न सबसे पहले देखा था तो वह थे राजा राम मोहन राय l हिन्दू समाज की कुरीतियों के घोर विरोधी होने के कारण 20 अगस्त, 1828 में उन्होंने ‘ब्रह्म समाज’ नामक एक नए प्रकार के समाज की स्थापना की । भारत में अंग्रेजी भाषा और पश्चिमी विज्ञान के अध्ययन का आरंभ भी उनके द्वारा किया गया और वह अपने प्रयासों में सफल भी हुए। इसी विचारों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने हिंदू कॉलेज की स्थापना में बड़ा योगदान दिया जो उन दिनों की सर्वाधिक आधुनिक संस्था थी।

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सभी धर्मों के ज्ञानी थे
राजा राम मोहन राय, एक ऐसी शख्सियत जिसे मुसलमान मुसलमान समझते थे, ईसाई उन्हें ईसाई समझते थे, अद्वैतवादी उन्हें अद्वैतवाती मानते थे तथा हिन्दू उन्हें वेदान्ती स्वीकार करते थे। मोहन सब धर्मों की मौलिक सत्यता तथा एकता में विश्वास करते थे। एक अंग्रेजी पत्र ने लिखा था कि, राजा राम मोहन राय को गवर्नर जनरल बना देना चाहिये क्योंकि वह न हिन्दू हैं न मुसलमान और न ईसाई।

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आरनोस वेल कब्रिस्तान में है राजा राममोहन राय की समाधि
1831 में एक खास काम के लिए वह इंग्लैंड गए। इस यात्रा के दौरान ही उन्हें मेनिंजाइटिस (दिमागी बुखार) हो गया l जिसके कारण उनका 27 सितंबर, 1833 को निधन हो गया। ब्रिटेन के ब्रिस्टल नगर के आरनोस वेल कब्रिस्तान में राजा राममोहन राय की समाधि है।