किसी भी देश को पानी दूसरे देशों से उधार भी नहीं मिलता, कुदरत से मिलने वाले पानी को ही ज्यादा से ज्यादा भरकर रखने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नही है, पानी का मसला राष्ट्र पर सबसे बड़ा खतरा है. सब कुछ छोड़ देश चुनाव में जुट गया. बता दें कि देश में पानी को लेकर इमरजेंसी जैसे हालात बनती जा रही हैं. सरकारी तौर पर अभी सिर्फ महाराष्ट्र और गुजरात के हालातों की जानकारी है कई जगहों पर हालातों का ही पता नही चल पाता. वरना हकीकत ये है कि बुंदेलखंड में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं.
देश को मैनेज हर सरकार करती है चाहे देश के उद्योग व्यापार हों और चाहे कृषि हो, मौजूदा सरकार हर क्षेत्र में सुखद अहसस कराती है. इसी सुखद अहसास के लिए जीडीपी के आंकड़े हर दिन दोहराए जाते रहे. लेकिन भोजन पानी का मामला बड़ा हादसा पैदा कर सकता है. और यही इस साल होता दिख रहा है सरकार किसानों की बात करती है, लेकिन किसान ज्यादातर खेती बारिश के पानी से ही करते है.
हालांकि देश के पांच हजार से ज्यादा बांधों और जलाशयों में से चुनिंदा सिर्फ 91 बांधों में ही पानी की निगरानी होती है. पिछले कई दशकों से इन बांधों में जमा पानी के ये आंकड़े आमतौर पर समान्य ही बताए जाते हैं. ऐसा ही इस बार भी हुआ.
ये मुद्दा पानी से जुड़ा हुआ है जिसे उत्पन्न नही किया जा सकता है. बता दें कि जल संचयन को आजकल वाटर हारवैस्टिंग कहने लगे हैं. हर साल प्रकृति से बारिश के जरिए 4000 अरब घनमीटर पानी मिलता है और जल प्रबंधन का मसला आर्थिक विकास के मामले से कहीं ज्यादा बड़ा है.