राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के विवाद का इतिहास ।

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राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के विवाद का इतिहास ।

अयोध्या में स्थित राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के मुद्दे को लेकर समय समय पर विवाद उठते ही रहे है । राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के विवादों में समुदायिक समस्याओं के साथ राजनीतिक समस्याएं भी देखने को मिलती है । मंदिर -मस्जिद के इस विवाद को लेकर बहुत से मत प्रचलित है ।

अलग अलग धारणाएं और कहानियाँ इस विवाद से जुडी है मगर इस विवाद की शुरुआत वन इंडिया हिंदी के अनुसार तब से हुई जब मुस्लिम सम्राट बाबर ने फतेहपुर सीकरी के राजा राणा संग्राम सिंह को वर्ष 1527 में हराने के बाद इस स्थान पर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया था। बाबर ने अपने जनरल मीर बांकी को क्षेत्र का वायसराय नियुक्त किया। मीर बांकी ने अयोध्या में वर्ष 1528 में बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया। जब मस्जिद का निर्माण हुआ तो मंदिर को नष्ट कर दिया गया या बड़े पैमाने पर उसमे बदलाव किये गए। कई वर्षों बाद आधुनिक भारत में हिंदुओं ने फिर से राम जन्मभूमि पर दावे करने शुरू किये जबकि देश के मुसलमानों ने विवादित स्थल पर स्थित बाबरी मस्जिद का बचाव करना शुरू किया। प्रमाणिक किताबों के अनुसार पुन: इस विवाद की शुरुआत सालों बाद वर्ष 1987 में हुई। वर्ष 1940 से पहले मुसलमान इस मस्जिद को मस्जिद-ए-जन्मस्थान कहते थे, इस बात के भी प्रमाण मिले हैं।

वर्ष 1947 में विवाद –
वर्ष 1947 में मस्जिद पर ताला लगा कर भारत सरकार ने मुसलमानों के विवादित स्थल से दूर रहने के आदेश दिए मगर हिंदू श्रद्धालुओं को एक अलग जगह से प्रवेश दिया जाता रहा। जिसके कारण देश में यह विवाद का अहम मुद्दा बना ।

1984
विश्व हिंदू परिषद ने हिंदुओं के साथ हिन्दुओं के लिए एक अभियान शुरू किया जिसमे मंदिर के निर्माण के लिए आज्ञा मांगी गई ।

1989
1989 में इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने आदेश दिया कि विवादित स्थल के मुख्य द्वारों को खोल दे और इस जगह को हमेशा के लिए हिंदुओं को दे दे। सांप्रदायिक विवाद तब ज्यादा भड़का जब विवादित स्थल पर स्थित मस्जिद को नुकसान पहुंचाया गया और भारत सरकार के आदेश पर इस स्थल पर नये मंदिर का निर्माण शुरू होने पर मुसलमानों के विरोध की ज्वाला ने समुदायिक विरोध का रूप ले लिया ।

1992
6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के साथ ही यह मुद्दा सांप्रदायिक हिंसा और नफरत का रूप लेकर पूरे देश में संक्रामक रोग की तरह फैलने लगा। इन दंगों में 2000 से ऊपर लोग मारे गए। मस्जिद विध्वंस के 10 दिन बाद मामले की जांच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन किया गया। वर्ष 2003- उच्च न्यायालय के आदेश पर भारतीय पुरात्तव विभाग ने विवादित स्थल पर 12 मार्च 2003 से 7 अगस्त 2003 तक खुदाई की जिसमें एक प्राचीन मंदिर के प्रमाण मिले। वर्ष 2003 में इलाहाबाद उच्च न्यायल की लखनऊ बेंच में 574 पेज की नक्शों और समस्त साक्ष्यों सहित एक रिपोर्ट पेश की गई।

2005
भारतीय पुरात्तव विभाग के अनुसार खुदाई में मिले भग्वशेषों के मुताबिक विवादित स्थल पर एक प्रचीन उत्तर भारतीय मंदिर के प्रचुर प्रमाण मिले हैं। विवादित स्थल पर 50X30 के ढांचे का मंदिर के प्रमाण मिले हैं। 5 जुलाई 2005 को 5 आतंकियों ने अयोध्या के रामलला मंदिर पर हमला किया। इस हमले का मौके पर मौजूद सीआरपीएफ जवानों ने वीरतापूर्वक जवाब दिया और पांचों आतंकियों को मार गिराया। वर्ष 2010- 24 सितंबर 2010 को दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने फैसले की तारीख मुकर्रर की थी। फैसले के एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को टालने के लिए की गई एक याचिका पर सुनवाई करते हुए इसे 28 सितंबर तक के लिए टाल दिया।

Source: One India