जाट समाज में बागड़ी गोत्र का इतिहास, स्थान तथा कुलदेवी या कुलदेवता का नाम

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जाट समाज
जाट समाज

जाट समाज का अपना एक गौरवशाली इतिहास रहा है. जाट समाज के लोग सिंधु घाटी में पशुचारण का काम करते थे और जो पारंपरिक रूप से गैर-अभिजात वर्ग है. वहां से बाद में मध्ययुगीन काल में उत्तर में पंजाब क्षेत्र में पलायन किया. बाद में दिल्ली क्षेत्र , पूर्वोत्तर और पश्चिमी गंगा के मैदान की तरफ पलायन किया. भारतीय  राज्यों में यह समाज मुख्य रूप से पंजाब , हरियाणा , उत्तरप्रदेश तथा राजस्थान में बहुतायत में रहते हैं. 17 वीं शताब्दी के अंत तथा 18 वीं शताब्दी के आरंभ में जाटों द्वारा मुगल साम्राज्य के खिलाफ हथियार उठाए गए. हिंदू जाट राज्य महाराजा सूरजमल के अधिन अपने चरम पर था.

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जाट समाज गोत्र

बागड़ी गोत्र जाट समाज से संबंध रखता है. ऐसा बताया जाता है कि बागड़ी जाट शब्द का प्रयोग ऐसे हिंदू जाटों के लिए किया जाता है जो बागड़ से हों या राजस्थान के बिकानेर के मैदानों के लिए और वो जो दक्षिण-पश्चिम हिसार में रहते हैं. ऐसा बताया जाता है कि ये लोग ने राजस्थान के बागड़ से बिकानेर और हरियाणा के दक्षिण-पश्चिम हिसार में पलायन किया है. आमतौर पर शुष्क प्रदेश के लिए बागड़ शब्द का प्रयोग किया जाता है. पुनिया भी खुद को बागड़ी जाट के वंशंज मानते हैं. वैसे बागड़ी जाटों की संस्कृति राजस्थान के लोगों से मिलती है.

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जाट समाज

अगर जाटों में पुनिया / बाहद गोत्र की कुलदेवी या कुलदेवता कालका माता / कैवाय माता है. जो बाड़मेर जिला राजस्थान में हैं. अगर आप कुलदेवी या कुलदेवता के नाम से भ्रमित ना हों. कुलदेवता और कुलदेवी एक ही होते हैं. कुलदेवता या कुलदेवी पूरे कुल के देवता होते हैं ना कि व्यक्तिगत या ग्रामदेवता.

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जहां कुलदेवता होता है. इसका मतलब ये होता है कि आपके पूर्वज पलायन करके उस स्थान से दूसरी जगह चले गए. आप कुल देवता की पूजा करने जाते हैं, तो वहां उस क्षेत्र में आप अपने कुल के लोगों से मिल सकते हैं.

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