सवाल 32- अभिमन्यु कैसे फंसे चक्रव्यूह में?

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सवाल 32- अभिमन्यु कैसे फंसे चक्रव्यूह में?

कोई भी योद्धा चक्रव्यूह की दीवार तोड़कर अंदर जाने के लिए सामने वाले योद्धा को मारकर अंदर जाने का प्रयत्न करता है, जिसके बाद वह बाहर के योद्धा को मारकर वह तभी अंदर जा पाता है. ताकि मारे गए योद्धा की जगह कोई दूसरा योद्धा न आ पाये. इसका मतलब है कि उसके सामने खड़े विपक्षी योद्धा को मारकर तुरंत ही अंदर घुसना, क्योंकि मारे गए योद्धा की जगह तुरंत ही दूसरा योद्धा लड़ने के लिए आ जाता है. इस तरह यह दीवार कभी टूटती नहीं है.


अभिमन्यु चक्रव्यूह में घुसना तो जानता था. लेकिन उससे बाहर निकलना नही. उसने सामने वाले योद्धा को मारा और बहुत ही थोड़ी-सी देर के लिए मिली खाली जगह से वह अंदर भी घुस गया. लेकिन घुसते ही यह जगह फिर से बंद हो गई, क्योंकि मारे गए योद्धा की जगह किसी अन्य योद्धा ने ले ली थी. अभिमन्यु दीवार तोड़ते हुए अंदर तो घुस गया, लेकिन उसने पीछे यह भी देखा कि दीवार पुन: बन गई है. अब इससे बाहर निकलना मुश्किल होगा. वह दीवार पहले की अपेक्षा और मजबूत होती है.

पहले यह सोचा गया था कि अभिमन्यु व्यूह को तोड़ेगा और उसके साथ अन्य योद्धा भी उसके पीछे से चक्रव्यूह में अंदर घुस जाएंगे. लेकिन जैसे ही अभिमन्यु घुसा और व्यूह फिर से बदला और पहली कतार पहले से ज्यादा मजबूत हो गई तो पीछे के योद्धा, भीम, सात्यकी, नकुल-सहदेव कोई भी योद्धा अंदर घुस ही नहीं पाया जैसा कि महाभारत में द्रोणाचार्य भी कहते हैं कि लगभग एक ही साथ दो योद्धाओं को मार गिराने के लिए बहुत कुशल धनुर्धर चाहिए. युद्ध में शामिल योद्धाओं में अभिमन्यु के स्तर के धनुर्धर दो-चार ही थे यानी थोड़े ही समय में अभिमन्यु अकेला चक्रव्यूह के और अंदर घुसता तो चला गया, जिसके पीछे कोई नही आया था.


जैसे-जैसे अभिमन्यु चक्रव्यूह के सेंटर में पहुंचते गए, वैसे-वैसे वहां खड़े योद्धाओं का घनत्व और योद्धाओं का कौशल उन्हें बढ़ा हुआ मिला, क्योंकि वे सभी योद्धा युद्ध नहीं कर रहे थे बस खड़े थे जबकि अभिमन्यु युद्ध करता हुआ सेंटर में पहुंच गये थे. वे जहां युद्ध और व्यूह रचना तोड़ने के कारण मानसिक और शारीरिक रूप से थके हुए थे, वहीं कौरव पक्ष के योद्धा तरोताजा थे. ऐसे में अभिमन्यु के पास चक्रव्यूह से निकलने का ज्ञान होता, तो वे बच जाते या उनके पीछे अन्य योद्धा भी उनका साथ देने के लिए आते तो भी वे बच जाते.

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दरअसल, अर्जुन-पुत्र अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदने के लिए उसमें घुस गया. चक्रव्यूह में प्रवेश करने के बाद अभिमन्यु ने कुशलतापूर्वक चक्रव्यूह के 6 चरण भेद लिए थे. इसी दौरान अभिमन्यु द्वारा दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण का वध किया गया. अपने पुत्र को मृत देख दुर्योधन के क्रोध की कोई सीमा न रही. तब कौरवों ने युद्ध के सारे नियम ताक में रख दिए.


6 चरण पार करने के बाद अभिमन्यु जैसे ही 7वें और आखिरी चरण पर पहुंचे, तो उसे दुर्योधन, जयद्रथ आदि 7 महारथियों ने घेर लिया. जिसके बाद भी अभिमन्यु फिर भी साहसपूर्वक उनसे लड़ते रहे. उन सातों ने मिलकर अभिमन्यु के रथ के घोड़ों को मार दिया. फिर भी अपनी रक्षा करने के लिए अभिमन्यु ने अपने रथ के पहिए को अपने ऊपर रक्षा कवच बनाते हुए रख लिया और दाएं हाथ से तलवार बाजी करता रहा. कुछ देर बाद अभिमन्यु की तलवार टूट गई और रथ का पहिया भी चकनाचूर हो गया.

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अब अभिमन्यु निहत्था था. युद्ध के नियम के अनुसार निहत्‍थे पर वार नहीं करना था, लेकिन तभी जयद्रथ ने पीछे से निहत्थे अभिमन्यु पर जोरदार तलवार का प्रहार किया. इसके बाद एक के बाद एक सातों योद्धाओं ने उस पर वार पर वार करना शुरू कर दिया. जिसके बाद अभिमन्यु वहीं पर वीरगति को प्राप्त हो गया. अभिमन्यु की मृत्यु का समाचार जब अर्जुन को मिला तो वे बेहद क्रोधित हो उठे और अपने पुत्र की मृत्यु के लिए शत्रुओं का सर्वनाश करने का फैसला कर लिया. सबसे पहले उन्होंने कल की संध्या का सूर्य ढलने के पूर्व जयद्रथ को मारने की शपथ ली.

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