चुनाव में जीत के लिए धर्म का सहारा लेना कहाँ तक उचित ?

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धर्म और राजनीति
धर्म और राजनीति

भारत एक लोकतांत्रिक देश है. जहाँ पर जनता चुनाव में वोट देकर अपने जनप्रतिनिधियों को चुनती है. जो सरकार बनाते हैं. चुनाव में जीत के लिए नेता तरह तरह के हथकंडे अपनाते है. कोई भाषा के आधार पर एक वर्ग विशेष के वोटों को अपनी तरफ करना चाहता है, कोई धर्म के आधार पर किसी विशेष वर्ग का खुद को हितैषी दिखाकर उनके वोट लेना चाहता है.

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धर्म और राजनीति

लेकिन क्या धर्म को मोहरा बनाकर वोट लेना सही है ? क्या भारत की आजादी में सिर्फ एक धर्म विशेष के लोगों ने ही योगदान दिया है या फिर देश विकास कर रहा है वो सिर्फ किसी एक धर्म विशेष की वजह से. ये सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण बन जाता है धर्म के नाम पर प्राचार और वोट की राजनीति वर्तमान समय में जिस तरह से हावी होती जा रही है. इससे लोग नेता की अच्छाई को देखने की जगह धर्म के आधार पर चुनाव में वोटो को डालते हैं.

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धर्म

भारत में लगभग हर वर्ष चुनाव होते रहते हैं. भारत देश की सबसे बड़ी विशेष यह है कि यहां सभी धर्मों का सम्मान किया जाता है. लेकिन राजनीति इस तरह हावी होती जा रही है कि अलग अलग पार्टियां अपने अपने धर्म का प्रतिनिधित्व करती नजर आ रही है. जबकि होना ये था कि पार्टियां गरीब और असहाय लोगों तथा किसानों का प्रतिनिधित्व करती तथा किसानों के हक की आवाज बनती.

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देश की आजादी में किसी एक विशेष धर्म का योगदान नहीं रहा, देश के विकास में भी सिर्फ किसी एक धर्म का योगदान नहीं रहा. नेताओं को भी अपनी तुच्छ राजनीति के लिए धर्म के आधार पर राजनीतिक रोटियां पकानी बंद करनी चाहिए. इसे किसी भी नजरिए से उचित नहीं ठहराया जा सकता. धर्म की जगह चुनाव का मुद्दा विकास, गरीब तथा असहाय लोगों के सहायता के नाम पर होना चाहिए ना धर्म के नाम पर.