जानिए होलिका दहन का महत्व !

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रंगो का त्योहार होली बस कुछ ही दिन दूर है। हिन्दू धर्म में होली का बहुत महत्व है, बुराई पर अच्छाई की जीत के इस पर्व में जितना महत्व रंगों का है, उतना ही होलिका दहन का भी है। ये मान्यता है कि विधि विधान से होलिका पूजा और दहन करने से दुखों का नाश होता है। इच्छाओं के पूर्ण होने का वरदान मिलता है।


होलिका के साथ पुराणिक कथा जोड़ी है की दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब देखा की उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु भगवन का भक्त है, किसी और भगवन को नहीं मानता, सिर्फ उनके ही गुण गाते है तो वह क्रोधित हो उठा और अंततः उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाएं; क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि से कोई खतरा नहीं है।

होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर बैठ गई और अग्नि में कूद गई। किन्तु हुआ इसके ठीक विपरीत, होलिका जलकर भस्म हो गयी और विष्णु भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ. इसी घटना की याद में इस दिन होलिका दहन करने का विधान है. होली का पर्व संदेश देता है कि इसी प्रकार ईश्वर अपने सच्चे भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं।

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होलिका पूजा और दहन में परिक्रमा बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है. कहते हैं परिक्रमा करते हुए अगर अपनी इच्छा कह दी जाए तो वो सच हो जाती है.परिक्रमा के अलावा होलिका दहन में उपलों को जलाना भी होता है बेहद जरूरी और शुभ माना जाता है।

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होलिका दहन नौ मार्च को फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होगा जबकि होली 10 मार्च को मनाई जाएगी। अगर होलिका पूजन की शुभ मुहरत की बात की जाए संध्या काल में– 06 बजकर 22 मिनट से 8 बजकर 49 मिनट तकभद्रा पुंछा – सुबह 09 बजकर 50 मिनट से 10 बजकर 51 मिनट तक रहेगा। इस दिन बुराई, अहंकार और नकारात्मक शक्तियों को पवित्र आग में जलाकर समाप्त किया जाता है। जिससे घर में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती हैं।

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