पंचायत का चुनाव कितने वर्षों के लिए होता है?

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पंचायत चुनाव
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पंचायत का चुनाव कितने वर्षों के लिए होता है? ( How many years does the panchayat election take place )

भारत एक लोकतांत्रिक देश है. जिसमें शासन चलाने वाले प्रतिनिधियों का चुनाव जनता द्वारा किया जाता है. जिस तरह से देश में शासन व्यवस्था को संभालने के लिए लोकसभा और राज्यसभा होती है, वैसे ही राज्यों में विधानसभा और कुछ राज्यों में विधानपरिषद का प्रावधान किया गया है. लेकिन लोकसभा और विधानसभा के प्रतिनिधि किसी स्थानीय मुद्दे या समस्या को आसानी से नहीं समझ सकते हैं. इसी कारण आम लोगों को प्रतिनिधित्व देने के लिए ही पंचायत चुनाव की व्यवस्था की गई है. इसे सत्ता का विक्रेंद्रीयकरण भी कहा जाता है. पंयाचत चुनाव में तीन स्तर होते हैं, जिसमें ग्राम पंचायत , जिला समिती तथा जिला परिषद् जो स्थानीय स्वशासन को संभालते हैं.

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कितने वर्ष के लिए होता है पंचायत चुनाव-

भारत में अगर चुने हुए प्रतिनिधियों की बात करें, तो आमतौर पर उनका चुनाव 5 वर्ष के लिए होता है. पंचायत चुनाव में भी स्थानीय स्तर पर विकास तथा स्थानीय स्तर के मुद्दों को अच्छे से समझ पाने के लिए ही प्रतिनिधियों का चुनाव किया जाता है. इनका कार्यकाल भी 5 वर्ष का होता है. भारत में पंचायत चुनाव 5 वर्षों में होते हैं तथा इनके प्रतिनिधियों को 5 वर्षों के लिए चुना जाता है.

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पंचायत चुनाव

क्या होते हैं मध्यावधि चुनाव-

भारत में आमतौर पर चुने हुए प्रतिनिधि का कार्यकाल 5 वर्ष के लिए होता है तथा 5 वर्षों के बात ही दोबारा चुनाव होते हैं. लेकिन कभी कभी किसी दुर्घटना के कारण प्रतिनिधि की मौत हो जाती है या किसी अन्य कारण से वह प्रतिनिधि अपने पद से इस्तिफा दे देता है, तो उसकी जगह खाली हो जाती है. ऐसे समय में उसकी पोस्ट को खाली नहीं रखा जाता तथा उसकी जगह नया प्रतिनिधि चुनने के लिए सिर्फ उस क्षेत्र के चुनाव बीच में ही कराए जाते हैं. इसे ही मध्यावधि चुनाव कहा जाता है.

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पंचायत चुनाव में शैक्षणिक योग्यता –

कुछ वर्षों पहले तक किसी भी चुनाव को लड़ने के लिए शैक्षणिक योग्यता की आवश्यकता नहीं होती थी. लेकिन कुछ वर्षों पहले पंचायत चुनाव के लिए कुछ राज्यों द्वारा शैक्षणिक योग्यता निर्धारित की गई. उदाहरण के तौर पर हरियाणा सरकार की तरफ से निर्णय लिया गया कि पंचायत चुनाव लड़ने के लिए कम से कम उम्मीदवार का 10 वीं पास होना जरूरी है. राज्य सरकारें पंचायत चुनाव में की योग्यता में कुछ संशोधन भी कर सकती है. जहां तक लोकसभा या विधानसभा की बात करें तो वहां पर अभी चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार के लिए शैक्षणिक योग्यता की कोई बाध्यता नहीं है.

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चुनाव

पंचायत चुनाव का इतिहास-

भारत में प्राचीन समय से ही पंचायती राज व्यवस्था आस्तित्व में रही हैं. आधुनिक भारत की बात करें तो इसमें प्रथम बार तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा राजस्थान के नागौर जिले में 2 अक्टूबर 1959 को पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 40 में राज्यों को पंचायतों के गठन का निर्देश दिया गया है. 1991 में संविधान में 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 करके पंचायत राज संस्था को संवैधानिक मान्यता दे दी गयी है. 24 अप्रैल 1993 भारत में पंचायती राज के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण पड़ाव था क्योंकि इसी दिन संविधान (73वाँ संशोधन) अधिनियम, 1992 के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ और इस तरह महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के स्वप्न को वास्तविकता में बदलने की दिशा में कदम बढ़ाया गया था. किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए स्थानीय स्तर पर प्रतिनिधित्व होना बहुत जरूरी होता है. पंचायत चुनाव से स्थानीय लोगों के हाथों में अपने क्षेत्र के विकास की जिम्मेदारी आ जाती है. वे अपने क्षेत्र के मुद्दे ऊपर तक पहुँचा सकते हैं तथा अपने स्तर पर भी अपनें गांव में अनेंक विकास कार्य करवा सकते हैं.

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पंचायत प्रतिनिधियों के सामने चुनौतियां भी आती हैं, जैसे कि अपने क्षेत्र के विकास के लिए उन्हें एक सीमित मात्रा में ही फंड मिल पाता है. जिसके कारण कुछ विकास कार्य कुछ हद तक प्रभावित होते हैं. स्थानीय स्वशासन एक बहुत अच्छी प्रक्रिया है, लेकिन अभी भी इसमें बहुत सुधार की जरूर है तथा पंचायत चुनाव में चुने गए प्रतिनिधियों को ज्यादा से ज्यादा स्वायत्ता देना गांवो के विकास के लिए एक संजीवनी का काम कर सकता है.

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