वेदों में ऐसा कहा जाता है कि जो जन्म लेता है उसकी मृत्यू होती ही है वेदों के अनुसार ईश्वर या परमात्मा अजन्मा, अप्रकट, निराकार, निर्गुण और निर्विकार है. इसमें यह सवाल उठता है कि भगवान शिव कैसे जन्म कैसे हुआ है?
भगवान शिव का जन्म
शिवपुराण के अनुसार भगवान सदाशिव और पराशक्ति अम्बिका से ही भगवान शंकर की उत्पत्ति मानी गई है. उस अम्बिका को प्रकृति, सर्वेश्वरी, त्रिदेवजननी नित्या और मूल कारण भी कहा जाता है. सदाशिव द्वारा प्रकट की गई उस शक्ति की 8 भुजाएं हैं. पराशक्ति जगतजननी वह देवी नाना प्रकार की गतियों से संपन्न है और अनेक प्रकार के अस्त्र शक्ति धारण करती है. वह शक्ति की देवी कालरूप सदाशिव की अर्धांगिनी दुर्गा हैं.
उस सदाशिव से दुर्गा प्रकट हुई। काशी के आनंदरूप वन में रमण करते हुए एक समय दोनों को यह इच्छा उत्पन्न हुई कि किसी दूसरे पुरुष की सृष्टि करनी चाहिए, जिस पर सृष्टि निर्माण का कार्यभार रखकर हम निर्वाण धारण करें. इस हेतु उन्होंने वामांग से विष्णु को प्रकट किया.
इस तरह विष्णु के माता और पिता कालरूपी सदाशिव और पराशक्ति मां दुर्गा हैं. विष्णु को उत्पन्न करने के बाद सदाशिव और शक्ति ने पूर्ववत प्रयत्न करके ब्रह्माजी को अपने दाहिने अंग से उत्पन्न किया. जिसके बाद तुरंत ही उन्हें विष्णु के नाभि कमल में डाल दिया. इस प्रकार उस कमल से पुत्र के रूप में हिरण्यगर्भ का जन्म हुआ. एक बार ब्रह्मा और विष्णु दोनों में सर्वोच्चता को लेकर लड़ाई हो गई, तो बीच में कालरूपी एक स्तंभ के रूप में आकर खड़ा हो गया.
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उस कालरूपी ब्रह्म सदाशिव ने एक ही समय शक्ति के साथ ‘शिवलोक’ नामक क्षेत्र का भी निर्माण किया था. उस उत्तम क्षेत्र को ‘काशी’ कहा जाता हैं. ऐसा माना जाता है कि वह मोक्ष का स्थान है. यहां शक्ति और शिव अर्थात कालरूपी ब्रह्म सदाशिव और दुर्गा यहां पति और पत्नी के रूप में निवास करते हैं. यही पर जगतजननी ने शंकर को जन्म दिया था. इस मनोरम स्थान काशीपुरी को प्रलयकाल में भी शिव और शिवा ने अपने सान्निध्य से कभी मुक्त नहीं किया था.