मुसलमानों के लिए इसलिए खासा है “जुमे” का दिन

701

इस्लाम धर्म में नमाज का बहुत महत्व है. इस्लाम में अल्लाह को समय पर याद करने और उसकी इबादत करने के समय को काफी अहम माना गया है. इस धर्म को मानने वाले लोग दिन में पांच बार नमाज पढ़ते हैं. लेकिन जो लोग हर दिन नमाज के लिए वक्त नहीं निकाल पाते, वो कम से कम शुक्रवार को तो ज़रूर ही मस्जिद जाकर अल्लाह की इबादत करते हैं. लेकिन शुक्रवार का ही दिन इतना महत्वपूर्ण क्यूं है, आज हम आपको इस बात की जानकारी देंगे.

इस्लाम धर्म के मुताबिक जुमे के दिन को अल्लाह के दरबार में रहम का दिन माना गया है. शुक्रवार के दिन जिब्रील नाम का फ़रिश्ता धरती पर कुरान शरीफ लाया था. माना जाता है कि आज के दिन नमाज पढ़ने से अल्लाह इंसान की पूरे हफ्ते की गलतियों को माफ कर देता है. इसी वजह से हर मुस्लिम शुक्रवार के दिन ज़रूर मस्जिद में जाकर नमाज अदा करता है.

जुमे की नमाज़ पढ़ने के लिए तीन नियम गुसल, इत्र और सिवाक बनाए गए हैं. पहले नियम गुसल के अनुसार शुक्रवार के दिन स्नान करना आवश्यक माना गया है ताकि आपका शरीर पाक हो जाए. इसके बाद है इत्र लगाना, ऐसा माना जाता है कि हफ्ते के बाकि दिन आप इत्र लगाएं या ना लगाएं लेकिन शुक्रवार के दिन इसे ज़रूर लगाएं. तीसरा नियम है सिवाक, इसमें जुमे के दिन दांतों को साफ करना ज़रूरी माना गया है. इन तीनों नियमों का पालन करने के बाद ही जुमे की नमाज अल्लाह तक पहुंचती है.

juma2 -

इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि स्वयं अल्लाह ने ही शुक्रवार का दिन चुना था. हफ्ते के सभी दिनों की तुलना में उन्होंने ही शुक्रवार के दिन को सर्वश्रेष्ठ माना था. ये दिन इतना ख़ास है कि इसे छोटी ईद कहा जाता है. अगर हैसियत है तो आज के दिन नए कपड़े पहनने का नियम भी है.

एक और इस्लामिक कथा के मुताबिक ऐसा माना जाता है कि शुक्रवार के ही दिन अल्लाह द्वारा ‘आदम’ को बनाया गया था और इसी दिन आदम की मृत्यु भी हुई थी. लेकिन आदम जन्म के बाद धरती पर आए थे, इसलिए दिन के एक घंटे को बेहद अहम माना जाता है. शुक्रवार को उसी एक घंटे में नमाज पढ़ी जाती है.