संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के लिए स्थायी सदस्यता का महत्व

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सुरक्षा परिषद
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हाल ही में लोकसभा में सरकार की तरफ से कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सीट के लिए दावेदारी को इसके 5 स्थायी सदस्यों में से 4 ने समर्थन दिया है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थापना के समय 11 सदस्य थे. 1965 में बढ़ाकर इनकी संख्या 15 कर दी गई. जिसमें 5 ( अमेरिका , ब्रिटेन , फ्राँस , रूस तथा चीन ) स्थायी सदस्य हैं, जिनके पास वीटो का अधिकार होता है. वीटो के अधिकार का मतलब होता है कि यदि इन 5 देशों में से 1 देश भी अपने वीटो अधिकार का प्रयोग करके इसके द्वारा पारित प्रस्ताव को रोक सकता है. इसके अलावा इसके 10 अस्थायी सदस्य चुने जाते हैं. अस्थायी सदस्यों का कार्यकाल 2 साल का होता है.

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अस्थायी सदस्यों का चुनने के पीछे उद्देश्य होता है कि इससे क्षेत्रीय संतुलन बना रहे. सुरक्षा परिषद के महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र का एकमात्र अंग है, जो सदस्य देशों पर बाध्यकारी प्रस्ताव पारित कर सकता है.

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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद

वर्तमान परिस्थितियों के हिसाब से देखे तो इसके अनेंक कारण हैं. जिसके कारण संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी और अस्थायी सदस्यों की संख्या में सुधार करना चाहिए. इसका सबसे बड़ा कारण तो यह है कि इसकी स्थापना 1945 में दूसरे विश्वयुद्ध के समय की गई थी. जिसमें देशों की शक्ति और क्षमता के हिसाब से काफी परिवर्तन आ चुका है. यूरोप की जनसंख्या बहुत कम है और उसका स्थायी प्रतिनिधित्व बहुत ज्यादा है. इसके साथ ही अफ्रीका की जनसंख्य बहुत अधिक है, लेकिन इसका एक भी देश इसका स्थायी सदस्य नहीं है. दुनिया में शांति कायम करने का प्रयास करने वाले देशों को भी इसमें शामिल होने की दावेदारी में वैश्विक राजनीति का शिकार होता पड़ता है तथा उनकी दावेदारी को नजरअंदाज कर दिया जाता है. भारत इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.

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सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सीट मिलती है, तो भारत को बहुत अधिक फायदा होगा. भारत अपने पड़ोसी देशों में होने वाले मानवाधिकार के मामलों को सयुक्त राष्ट्र के सामने ला सकेगा. हिंद महासागर को शांति का क्षेत्र घोषित कर सकता है. इसके साथ ही चीन की विस्तारवादी नीति का जवाब दे पाएगा.