नवरात्री का नौवां दिन मां सिद्धिदात्री से जुड़े रोचक तथ्य

488
navratri
नवरात्री का नौवां दिन मां सिद्धिदात्री से जुड़े रोचक तथ्य

नवरात्रि के नौवें दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है. जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है कि माता सिद्धिदात्री अपने भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धि देती है. नवरात्रि के आखिरी तीन दिन माता सरस्वती को समर्पित किया जाता है.

माता सिद्धिदात्री को ही माता सरस्वती के रूप में पूजा जाता है. बतातें चले कि मार्कण्डेय पुराण में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व आठ सिद्धियाँ बतलायी गयी है. माँ दुर्गा के इस अंतिम स्वरूप की आराधना के साथ ही नवरात्री के अनुष्ठान का समापन हो जाता है. देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही मार्कण्डेय पुराण की सिद्धियों को प्राप्त किया था और इनकी कृपा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था. इसी कारण वे लोक में ‘अर्द्धनारीश्वर’ नाम से प्रसिद्ध हुए.

माता सिद्धिदात्री का स्वरूप बहुत सौम्य और आकर्षक है. इन देवी के चार हाथ है. एक हाथ में चक्र, एक हाथ में गदा, एक हाथ में कमल का फूल और एक हाथ में शंख लिया हुआ है. माता की आराधना करने से सभी प्रकार के ज्ञान सुलभता से मिल जाते हैं. इन माता की आराधना करने वालों को कभी किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं होता है. इनकी पूजा नवरात्री के आखिरी दिन की जाती है. इसके बाद के दिन में दशहरा मनाया जाता है.

imgpsh fullsize anim 39 -

बता दें कि भगवान शिव को माता सिद्धिदात्री की कृपा से ही अर्द्धनारीश्वर स्वरूप प्राप्त हुआ था. माता सिद्धिदात्री की पूजा में नौ तरह के फल-फूल चढ़ाए जाने का विधी विधान है. उनका कोई विशेष भोग नहीं है, लेकिन सभी अपनी कुलरीति के अनुसार माता के लिए विशेष भोग बनाते हैं, जो अपनी कुलदेवी को चढ़ाते हैं. जिसे माता ग्रहण करती है.

यह भी पढ़ें : जाने दुर्गा माँ के 8-वें रूप ‘महागौरी’ के बारें में, कैसे करें पूजा

मां सिद्धिदात्री भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करती है. देवी दुर्गा के इस अंतिम स्वरुप को नव दुर्गाओं में सबसे श्रेष्ठ और मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है। जो श्वेत वस्त्रों में महाज्ञान और मधुर स्वर से भक्तों को सम्मोहित करती है. अगर भक्त मां सिद्धिदात्री की पूर्ण निष्ठाभाव से नवरात्रि के नौवें दिन पूजा करता है, तो ये भक्त सभी आठों सिद्धियां प्राप्त कर लेते है. दरअसल ऐसा माना जाता है कि महानवमी के दिन ही मां दुर्गा ने दुष्ट दैत्य महिषाषुर का संहार कर तीनों लोकों को उसके आतंक से मुक्त कराया था.