कोरोना वायरस क्या वाक़ई जून-जुलाई में भारत में तबाही मचाने वाला है ?

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कोरोना वायरस क्या वाक़ई जून-जुलाई में भारत में तबाही मचाने वाला है ?

एम्स निदेशक के हवाले से देश के तमाम मीडिया चैनल और सोशल मीडिया में एक बयान चल रहा था – “जून-जुलाई में अपने चरम पर होगा कोरोना- डॉ. रणदीप गुलेरिया।केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने कहा है कि अगर सरकार द्वारा जारी दिशा निर्देशों का पालन करें तो हो सकता है कि कोरोना का पीक आये ही ना।

लेकिन ये पीक क्या है- इसका मतलब कहीं नहीं समझाया जा रहा। उस पीक में रोज़ कितने मामले सामने आएंगे, इस पर भी कोई बात नहीं हो रही। हर कोई इस बयान को अपने हिसाब से समझ रहा है। कोई कह रहा है अब लॉकडाउन आगे भी बढ़ाया जाएगा। दरअसल रणदीप गुलेरिया से सवाल पूछा गया था – “क्या भारत में कोरोना का पीक आना बाकी है।”

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रणदीप गुलेरिया का जवाब था, “अभी तो केस बढ़ रहे हैं। पीक तो आएगा ही। पीक कब आएगा, ये मॉडलिंग डेटा पर आधारित होता है। कई एक्सपर्ट ने इसकी डेटा मॉडलिंग की है। इंडियन एक्सपर्ट ने भी की है और विदेशी एक्सपर्ट ने भी की है। ज़्यादातर लोगों का मानना है कि जून-जुलाई में पीक आ सकता है। कुछ एक्सपर्ट ने इससे पहले भी पीक आने की बात कही है। कुछ एक्सपर्ट ने कहा है कि इसके आगे अगस्त तक भी पीक आ सकता है।”

दरअसल, डॉ. रणदीप गुलेरिया का पूरा बयान सुनने पर ये साफ़ हो जाता है कि उनके बयान का आधार मैथेमेटिकल डेटा मॉडलिंग है। लेकिन वो कौन-सी डेटा मॉडलिंग है, कहां के एक्सपर्ट ने की है? क्या ये उनके ख़ुद की है? इसके बारे में ना तो उनसे सवाल पूछे गए और ना ही उन्होंने इसका जवाब दिया।

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प्रोफेसर शमिका रवि अर्थशास्त्री हैं और सरकार की नीतियों पर रिसर्च करती हैं। वो प्रधानमंत्री के इकोनॉमिक एडवाइज़री काउंसिल की सदस्य भी रही हैं।
कोरोना काल में वो हर रोज़ कोरोना की ग्राफ़ स्टडी करते हुए अपने नतीज़ों को ट्वीटर पर साझा करती रही हैं।

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शमिका रवि ने बताया, “इस तरह के डेटा मॉडलिंग स्टडी दो तरह के जानकार करते हैं। पहला, मेडिकल फ़ील्ड से जुड़े एपिडेमियोलॉडिस्ट यानी महामारी रोग विशेषज्ञ स्टडी करते हैं। ये एक्सपर्ट इंफेक्शन रेट डेटा के आधार पर अपना अनुमान बताते हैं। ये ज़्यादातर थ्योरेटिकल मॉडल होते हैं। दूसरा अर्थशास्त्री वर्तमान के डेटा को देख कर ट्रेंड को समझने और समझाने की कोशिश करते हैं। वो देश में उस वक़्त अपनाई जाने वाली नीतियों के आधार पर अपना विश्लेषण करते हैं जो ज्यादतर एविडेंस (प्रमाण) के आधार पर होता है।”

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