क्या वास्तव में हनुमान जी के पांच सिर थे?

1996
पंचमुखी
पंचमुखी

क्या वास्तव में हनुमान जी के पांच सिर थे

भगवान हनुमान भगवान शिव का 11वां रूद्र अवतार माने जाते है और वे प्रभु श्री राम के सबसे बड़े भक्त के रूप में ब्रह्माण्ड में पूजे जाते है। हनुमान जी ने वानर जाति में जन्म लिया। उनकी माता का नाम अंजना और उनके पिता वानरराज केशरी हैं।

इसी कारण इन्हें आंजनाय और केसरीनंदन आदि नामों से पुकारा जाता है। वहीं हनुमान जी को पवन पुत्र के तोर पर भी जाने जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते है हनुमान जी को पंचमुखी के रूप में भी पूजा जाता है।

पंचमुखी हनुमान जी
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जब मरियल नाम का दानव भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र चुराता है और यह बात जब हनुमान को पता लगती है तो वह संकल्प लेते हैं कि वे चक्र पुनः प्राप्त कर भगवान विष्णु को सौप देंगे। मरियल दानव इच्छानुसार रूप बदलने में माहिर था अत: विष्णु भगवान ने हनुमानजी को आशीर्वाद दिया, साथ ही इच्छानुसार वायुगमन की शक्ति के साथ गरुड़-मुख, भय उत्पन्न करने वाला नरसिंह-मुख, हयग्रीव मुख ज्ञान प्राप्त करने के लिए तथा वराह मुख सुख व समृद्धि के लिए था।

पार्वती जी ने उन्हें कमल पुष्प एवं यम-धर्मराज ने उन्हें पाश नामक अस्त्र प्रदान किया। आशीर्वाद एवं इन सबकी शक्तियों के साथ हनुमान जी मरियल पर विजय प्राप्त करने में सफल रहे। तभी से उनके इस पंचमुखी स्वरूप को भी मान्यता प्राप्त हुई।

राम और रावण

इस सन्दर्भ में यह भी कथा मशहूर है कि जब जब राम और रावण की सेना के बीच युद्ध चल रहा था और रावण अपने पराजय होने वाले था। तब उसने अपने मायावी भाई अहिरावन को याद किया जो मां भवानी का परम भक्त होने के साथ साथ तंत्र मंत्र का का बड़ा ज्ञानी था। उसने अपने माया के दम पर भगवान राम की सारी सेना को निद्रा में लीन कर दिया तथा राम और लक्ष्मण का अपरहण कर उन्हें पाताल लोक ले गया।

हनुमान जी

कुछ घंटे बाद जब माया का प्रभाव कम हुआ तब विभिषण ने यह पहचान लिया कि यह कार्य अहिरावन का है और उसने हनुमानजी को श्री राम और लक्ष्मण सहायता करने के लिए पाताल लोक जाने को कहा। पाताल लोक के द्वार पर उन्हें उनका पुत्र मकरध्वज मिला और युद्ध में उसे हराने के बाद बंधक श्री राम और लक्ष्मण से मिले।

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वहां पांच दीपक उन्हें पांच जगह पर पांच दिशाओं में मिले जिसे अहिरावण ने मां भवानी के लिए जलाए थे। इन पांचों दीपक को एक साथ बुझाने पर अहिरावन का वध हो जाएगा इसी कारण हनुमान जी ने पंचमुखी रूप धरा। उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की तरफ हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख।

इस रूप को धरकर उन्होंने वे पांचों दीप बुझाए तथा अहिरावण का वध कर राम,लक्ष्मण को उस से मुक्त किया। हनुमान जी ने राम -रावण योद्धा में एक एहम भूमिका अदा की थी , उनके बिना रावण को पराजय करना मुश्किल था।