कारगिल युद्ध को हुए 20 वर्ष, जीत के लिए 500 से ज़्यादा सैनिकों ने दिया था बलिदान

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कारगिल जंग को पुरे हुए 20 वर्ष, आज 26, जुलाई को देश मना रहा है कारगिल विजय दिवस। ये 26 जुलाई हमेशा भारतीय लोगों को ख़ुद पर गर्व करने का मौका देती हैं। क्योंकि यही वो दिन था 1999 में जब भारतीय सेना नें अपनी बहादुरी से पाकिस्तान के घुसपैठिया सेना को खदेड कर उसे कारगिल की जंग में चारों खाने चित कर दिया था। लेकिन इस जंग को जितने के लिए 500 से ज़्यादा भारतीय सैनिकों को अपना बलिदान देना पड़ा था।

दुनिया के सबसे ऊँचे इलाके में लडा गया था कारगिल युद्ध

सन 1999 में पाकिस्तान की सेना नें (LOC) नियंत्रण रेखा पार कर के कारगिल की ऊँची चोटियों पर कब्ज़ा कर लिया था। ये वो चोटियां थी जो सुमुद्र तल से बहुत उँची थी। भारतीय सेना नें अपनी बहादुरी से ड्रास, लदाख, और तोलो लिंग पर हमला किया था जो दुनिया की सबसे ऊँची चोटियों में से एक थी। यहीं पर ही पाकिस्तानी सेना नें अपने बंकर बना रखे थे और यहीं से ही वे लगातार भारतीय चौकियों पर हमला भी कर रहे थे।

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इंटेलिजेंस की नाकामी से हुआ था कारगिल

दरअसल जब पाकिस्तान की सेना कारगिल की जंग की तैयारी कर रही थी तो भारतीय इंटेलिजेंस को इसके बारे में पता ही नहीं चल सका था। कहा जाता हैं कि अगर भारतीय इंटेलिजेंस को कारिगल के बारे में पहले से पता लगता तो शायद भारत पहले ही कार्रवाई करके युद्र ही नहीं होने देता और भारत के 500 से ज़्यादा सैनिक भी शहीद नहीं होते। सन 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच राजनीतिक और कूटनीतिक तौर पर रिश्ते सुधर रहे थे। उस वक्त के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ख़ुद बस लेकर पाकिस्तान गए थे। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ़ नें ख़ुद अटल बिहारी बाजपेयी का स्वागत किया था।

इसराइल नें की थी मदद

जब दोनों ही देशों के बीच में युद्र छीड गया था तो भारत के पास तैयारी करने का समय नहीं था। उस वक्त के सेनाध्यक्ष वी.पी मलिक नें कहा था कि हमारे पास जो भी हथियार होंगें हम उस से जंग लड लडेंगे। उस वक्त भारतीय सेना के पास जंग लड़ने का पुरा असला नहीं था। लेकिन इसी बीच इसराइल नें भारत के साथ अपनी दोस्ती निभाते हुए भारत को ड्रोन, लेसर गाईडेड बाँब और हथियार मुहैया कराए। इसराइल के द्रारा मिली मदद से भारत की वायुसेना नें ऊँची पहाडियों में बंकर बना कर बैठे पाकिस्तान की सेना के ऊपर तबाडतोड हमले करने शुरु कर दिए।

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LOC पार नहीं करनी थी

जब कारगिल युद्र के लिए भारतीय सेना नें सरकार से इज़ाजत माँगी थी तो सरकार नें इज़ाजत तो दी लेकिन इसके साथ ही सरकार नें सेना को निर्देश भी दिए की वह LOC पार ना करें। यानी की सेना को पुरी जंग सिर्फ़ नियंत्रण रेखा के अंदर ही लड़नी थी। भारतीय सेना के सामने एक तो शर्त थी नियंत्रण रेखा के अंदर जंग लडने की, दुसरी तरफ़ हालात एकदम जंग के ख़िलाफ़ थे। क्योंकि कारगिल जैसे इलाके में मौसम एकदम से ख़राब हो जाता हैं। फिर भी भारतीय सेना नें इन विषम हालातों में जंग भी लडी और उसे जीती भी।