क्या शिक्षा और भगवान को अलग करना सही होगा ? इस प्रश्न के उत्तर पर जाने से पहले हमें जान लेना चाहिए कि शिक्षा का हमारे जीवन में क्या महत्व है तथा भगवान का क्या महत्व है. जहाँ तक शिक्षा कि बात है तो यह हमें जीवन जीने तरीका और भविष्य में आगे बढ़ने की राह दिखाती है. शिक्षा के बिना आज के समय में एक अच्छे जीवन की उम्मीद नहीं की जा सकती. जहाँ तक भगवान को मानने की बात है, तो यह भी हमारे लिए आस्था का विषय है.
किसी भी बड़ी समस्या के समय शिक्षा हमें उस समस्या के समाधान करने में सहायता करती है. वहीं भगवान में आस्था होनों हमें एक उम्मीद की किरण देती है. किसी बुरी परिस्थिति में हमारे पास इन दोनों का होना ही बहुत जरूरी होता है. अगर इस तरह से हम देखते हैं, तो शिक्षा और भगवान में आस्था बुरे समय में हमारे सहायता के लिए एक-दूसरे के पूरक होते हैं.
अगर दूसरे पहलू की बात करें तो भगवान और आस्था के नाम पर अंधविश्वास के बढ़ने से हमारे सामने एक बहुत बड़ी समस्या उभरकर सामने आती है. अंधविश्वास और पुरानी रूढीवादिता ने भगवान और शिक्षा को ही आमने सामने ला दिया है. जब तक हम पुराने विचारों से बंधे हुए हैं, तब तक नए विचार और शिक्षा का विस्तार नहीं हो सकता.
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शिक्षा और आस्था को अलग रखकर ही हम भगवान की कृपा और शिक्षा से समाज में होने वाले सुधारों के द्वारा एक उन्नत समाज की तरफ कदम बढा सकते हैं. इसलिए शिक्षा और आस्था को अलग ही रखना होगा क्योंकि पुराने विचारों से पूरी तरह से बंधे हुए दिमाख में नए विचार नहीं आ सकते. जो समाज की तरक्की में बाधा उत्तपन करते हैं. इसलिए भगवान हमारी आस्था है, हमें उसको मानते हुए अंधविश्वासों का विरोध करना चाहिए.