भारतीय उड़ीसा राज्य का पुरी क्षेत्र जिसे पुरूषोत्तम पुरी , शंख क्षेत्र और श्री क्षेत्र के नामों से जाना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि यह भगवान श्री जगन्नाथ जी की लीला भूमी है. यहाँ के वैष्णव धर्म की मान्यता यह है कि राधा और श्रीकृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक स्वयं श्री जगन्नाथ जी हैं. इसी प्रतीक के रूप श्री जगन्नाथ से सम्पूर्ण जगत का उद्भव हुआ है.
बता दें कि रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ को दशावतारों के रूप में पूजा जाता है, जिनमें विष्णु, कृष्ण, वामन और बुद्ध भी शामिल हैं. यहां तक की रथ यात्रा शुरू होने से पहले कई नेता इस रथ यात्रा को शुभकामनाएं देते है.
ओडिशा के पुरी क्षेत्र में आज से रथ यात्रा का कार्यक्रम शुरू किया जा चुका है. यूनेस्को द्वारा पुरी क्षेत्र के एक हिस्से को वैश्विक धरोहर की सूची में शामिल किया गया था. जिसके बाद से यह भगवान जगन्नाथ की दूसरी रथ यात्रा है.
जगन्नाथ यात्रा कब शुरू होती है
भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथपुरी से आरम्भ होती है. यह रथ यात्रा का प्रधान पर्व है. इस यात्रा में भाग लेने के लिए कई लोग दूर-दूर से यहां आते है और इस भव्य यात्रा में शामि होते है व रथ खींचकर पुण्य कमाते हैं.
रथ यात्रा क्या है
पुरी क्षेत्र में स्थित जगन्नाथ मंदिर भारत के चार पवित्र धामों में से एक है. यहां का मंदिर 800 वर्ष से अधिक पुराना है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण, जगन्नाथ के रूप में विराजमान है. साथ ही यहां उनके बड़े भाई बलराम और उनकी बहन देवी सुभद्रा की पूजा की जाती है. और यहां स्थित गुंडिचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है.
इस रथ यात्रा में क्या होता है
भगवान जगन्नाथ के रथ के सामने सोने के हत्थे वाले झाड़ू को लगाकर रथ यात्रा का आरंभ होता है. जिसके बाद पारंपरिक यंत्रों की थाप के बीच तीन विशाल रथों को सैंकड़ों लोग खींचते हैं.
बता दें कि इस रथयात्रा में बलराम, श्रीकृष्ण और देवी सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ निकाले जाते है. इस यात्रा में सबसे आगे बलरामजी का रथ, उसके बाद बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है. इन रथों के रंग और इनकी ऊंचाई से उन्हें पहचाना जाता है.
ऐसा कहा जाता है कि रथ को खींचने के लिए लोग काफी दूर से आते है. रथ को खींचने से लोगों के सभी दुखों का निवारण हो जाता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ती हो जाती है. नगर भ्रमण करते हुए शाम को ये तीनों रथ गुंडिचा मंदिर पहुंच जाते हैं. अगले दिन भगवान रथ से उतर कर मंदिर में प्रवेश करते हैं और सात दिनों तक वहीं विराजमान रहते हैं.
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जगन्नाथ यात्रा की ये है खूबियां
भगवान जगन्नाथ का रथ 45 फुट ऊंचा होता है. इन्हें कृष्णा का अवतार माना जाता है. इन्हें पीले रंग से सजाया जाता है यह मूर्ती भारत के देवी-देवताओं की तरह नही होती है. सबसे आगे मे भाई बलराम का रथ होता है जिसकी ऊंचाई 44 फुट रखी जाती हैं. इन्हें नीले रंगों से सजाया जाता है. उसके बाद बहन सुभद्रा का रथ निकाला जाता है. जिसकी ऊंचाई 43 फुट की होती है और इन्हें काले रंगों से सजाया जाता है.