जाने जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क का इतिहास और इससे जुडे तथ्य जो आपको पता नहीं होंगे

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उत्तराखंड की हसीन वादियों में बसा जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क की खूबसूरती और उसमें बसने वाले जंगली जानवरों के बारे में तो आपने सुना ही होगा। लेकिन क्या आपको इसके इतिहास के बारे में पता है। एक ऐसा इतिहास जो पहले उत्तराखंड के नरेश नें अंग्रेजों को सर्मपित कर दिया था।

जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क को आज की तारीख़ में 82 साल हो चुके है। आज जिस जिम कॉर्बेट पार्क को आप जानते है इससे पहला इसका नाम हेली नेशनल पार्क और बाद में रामगंगा नेशनल पार्क के नाम से जाना जाता था। 1820 में यह पार्क उत्तराखंड के टिहरी नरेश के अधिकार में आता था लेकिन बाद में इस पार्क को टिहरी नरेश नें ब्रिटिश सरकार को सौंप दिया था।

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जिम कॉर्बेट बना था पहला राष्ट्रीय उधान

वन्य जीवों को संरक्षित करने के लिए पहली बार 1936 में राष्ट्रीय उधान के रुप में इस पार्क की स्थापना हुई थी। 1973 में बाघों को संरक्षित करने के लिए इस पार्क में प्रोजेक्ट टाइगर का शुभांरभ किया गया था।

टिहरी नेरश के अधीन आता था जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क

जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क पहले उत्तराखंड के नरेश के अधीन आता था। टिहरी नेरश नें यह भूमी अंग्रेजों को सैंपी तो कुमाऊं के तत्कालीन कमिश्नर हैनरी रैमजे ने इस भूमि को संरक्षण की योजना बनाई। 1868 में इसके संरक्षण की जिम्मेदारी वन विभाग को सौंप दी थी और वर्ष 1879 में इसे आरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया गया।

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1936 में हेली नेशनल पार्क के रुप में इसकी स्थापना हुई

उस वक्त के गर्वनर सर हेली ने वर्ष 1934 में इस भूमि को राष्ट्रीय उधान बनाने की सिफारिश ब्रिटिश सरकार से की थी। जिम कॉर्बैट नें इसकी सिमाओं का निर्धारण किया। इसी बीच अगस्त 1936 को 323.23 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को मिलाकर हेली नेशनल पार्क के रुप में इसकी स्थापना हुई।

जिम कॉर्बैट नेशनल पार्क में कई नस्ल के जीव जंतु रहते है। इसमें हाथी, चीतल, काकड 685 प्रजातियों के पक्षी भी रहते है।

कैसे पहुंचा जाए जिम कॉर्बैट नेशनल पार्क

उत्तराखंड की पहाडियों में बसा जिम कॉर्बैट नेशनल पार्क पहुंचना बहुत आसान है। दिल्ली से आप सड़क और रेल मार्ग के जरिए जिम कॉर्बैट नेशनल पार्क पहुंच सकते है।

अगर आप वायुमार्ग के जरिए भी जिम कॉर्बैट जाना चाहते है तो नजदीकी हवाई अड्डा देरहादून में फूलबाग के नाम से प्रसिद्र है।

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