जाने कश्मीर के खीर भवानी मंदिर की खूबियां

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जाने कश्मीर के खीर भवानी मंदिर की खूबियां

खीर भवानी, भवानी देवी का एक नाम है जिनका प्रसिद्ध मंदिर जम्मू व कश्मीर के गान्दरबल ज़िले में तुलमुला गाँव में स्थित है ऐसा माना जाता है कि खीर भवानी देवी की पूजा लगभग सभी कश्मीरी हिन्दू और बहुत से गैर- कश्मीरी हिन्दू भी करते है. आइए आपको इस धार्मिक स्थल के इतिहास और विशेषता के बारे में बताते हैं.


खीर भवानी मेला कश्मीरी पंडितों का सालाना त्योहार है. ऐसा कहा जाता है कि रावण की भक्ति से प्रसन्न होकर मां राज्ञा माता प्रकट हुई थीं. जिसके बाद रावण ने उनकी स्थापना कुलदेवी के रूप में करवाई. हालांकि कुछ समय बाद रावण के बुरे कामों व व्यवहार के चलते देवी नाराज हो गईं, इसके बाद वे रावण की नगरी को छोड़कर चली गई.

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इसके बाद भगवान श्री राम ने रावण का वध कर हनुमान जी से राग्याना देवी की स्‍थापना किसी उपयुक्त स्थान पर करने को कहा, हनुमान की मदद से कश्मीर के तुलमुल में देवी की स्थापना की गई.


इस मंदिर का निर्माण 1912 में महाराजा प्रताप सिंह ने कराया था. इसके बाद महाराज हरी सिंह ने इसका जीर्णोद्वार कराया. कश्मीर में अमरनाथ गुफा के बाद इसे दूसरा सबसे पवित्र स्थान माना जाता है

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हालांकि साल 2007 के बाद श्रद्धालु इसी मूल मंदिर में आने लगे. ऐसा माना जाता है कि प्राचीन समय में एक कश्मीरी पुरोहित को माता ने सपने में बताया कि उनके मंदिर का नाम खीर भवानी ही रखें. शायद इसी वजह से हर साल पूजा से पहले मंदिर के कुंड में दूध और खीर की भेंट चढ़ाई जाती है. खीर का मतलब दूध और भवानी का मतलब भविष्यवाणी. यही वजह है कि झरने की मंदिर में बहुत महत्ता है.

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इस मंदिर में क्षीर व ‘खीर’ का एक विशेष महत्त्व है और इसका उपयोग प्रसाद के रूप में किया जाता है. क्षीर भवानी मंदिर के सन्दर्भ में एक दिलचस्प बात ये है कि यहां के स्थानीय लोगों में ऐसी मान्यता है कि अगर यहां पर मौजूद झरने के पानी का रंग बदल कर सफ़ेद से काला हो जाये तो पूरे क्षेत्र में अप्रत्याशित विपत्ति आती है.


प्रत्येक वर्ष मई-जून के अवसर पर मंदिर में वार्षिक उत्सव का आयोजन किया जाता है और यहां पर मई के महीने में पूर्णिमा के आठवें दिन बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ लग जाती है.