भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, लेकिन अगर कहा जाए कि इसी मुल्क में एक ऐसा गांव भी है, जहां भारत का संविधान नहीं माना जाता.इस बात पर जल्दी यकीन कर पाना मुश्किल है, लेकिन यही हकीकत है.हिमाचल प्रदेश में एक ऐसा गांव है, जहां के लोग भारत के संविधान को न मानकर अपनी हजारों साल पुरानी परंपरा को मानते हैं. पहाड़ियों से घिरे हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में है ये छोटा सा गांव ‘मलाणा’. कहा जाता है कि दुनिया को सबसे पहले लोकतंत्र यहीं से मिला था.प्राचीन काल में इस गांव में कुछ नियम बनाए गए, इन नियमों को बाद में संसदीय प्रणाली में बदल दिया गया.
तो आइए जानते हैं अनोखी परंपरा वाले इस गांव के बारे में –
गांव की अपनी संसदीय व्यवस्था
इस गांव के अपने खुद के दो सदन हैं. एक छोटा सदन और एक बड़ा सदन.बड़े सदन में कुल 11 सदस्य होते हैं, जिसमें 8 सदस्य गांव वालों में से चुने जाते हैं, जबकि तीन अन्य कारदार, गुर और पुजारी स्थायी सदस्य होते हैं.इस सदन की अनोखी बात यह है कि गांव के प्रत्येक घर से एक सदस्य जरूर होता है.घर का सबसे बुजुर्ग व्यक्ति ही प्रतिनिधित्व करता है. वहीं, ऊपरी सदन में किसी सदस्य की मृत्यु हो जाए तो पूरे ऊपरी सदन का दोबारा गठन किया जाता है.सिर्फ़ सदन ही नहीं बल्कि मलाणा गांव का अपना प्रशासन भी है.
कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए इनके अपने कानून हैं.इनके खुद के थानेदार भी होते हैं और सरकार भी इसमें दखल अंदाजी नहीं करती.अब बारी आती है सदन में सुनवाई की. सदन में हर तरह के मामलों को निपटाया जाता है. यहां फैसले देवनीति से तय होते हैं. संसद भवन के रूप में ऐतिहासिक चौपाल लगाई जाती है.ऊपरी सदन के 11 सदस्य ऊपर बैठते हैं और निचली सदन के सदस्य नीचे बैठे होते हैं.
यूं तो हर तरह के फैसलों का यहीं पर निपटारा हो जाता है, लेकिन अगर कोई ऐसा मामला फंस जाए जिसको समझ पाना मुश्किल हो रहा हो, तो ऐसे में ये मामला सबसे अंतिम पड़ाव पर भेज दिया जाता है.यानी की अब इस फैसले को जमलू देवता के सुपुर्द कर दिया जाता है.ये गांव वाले जमलू ऋषि को अपना देवता मानते हैं. इन्ही का फैसला सच्चा और अंतिम माना जाता है.किसी मामले को जमलू देवता के हवाले करने की बाद बहुत ही अजीबो गरीब तरीके से फैसला किया जाता है. जिन दो पक्षों का मामला होता है, उनसे दो बकरे मंगाए जाते हैं.दोनों ही बकरों की टांग में चीरा लगाकर बराबर मात्रा में जहर भर दिया जाता है. जहर भरने के बाद बकरों के मरने का इंतजार होता है और जिस पक्ष का बकरा पहले मरता है, वह दोषी होता है.
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अब इस अंतिम फैसले पर कोई सवाल भी नहीं खड़े कर सकता है, क्योंकि इनका मानना है कि यह फैसला खुद जमलू देवता ने सुनाया है.हालांकि साल 2012 के बाद से इस गांव में काफी बदलाव देखने को मिले हैं. मसलन पहले यहां चुनाव भी नहीं होता था, लेकिन साल 2012 के बाद से यहां चुनाव होने लगे हैं.इस विचित्र गांव में इसके अलावा और भी कई रहस्य हैं, जो इस गांव की ओर लोगों का ध्यान खींचते हैं.रहस्य से भरे इस गांव में बाहरी लोगों के कुछ भी छूने पर पाबंदी है. इसके लिए इनकी ओर से बकायदा नोटिस भी लगाया गया है, जिसमें साफ तौर पर लिखा गया है कि किसी भी चीज को छूने पर एक हजार रुपए का जुर्माना देना होगा.
इनके जुर्माने की रकम 1000 से लेकर 2500 रुपए तक है. किसी भी सामान को छूने की पाबंदी के बावजूद भी यह स्थान पर्यटकों को आकर्षित करता है.बाहर से आए लोग दुकानों का सामान नहीं छू सकते. पर्यटकों को अगर कुछ खाने का सामान खरीदना होता है तो वह पैसे दुकान के बाहर रख देते हैं और दुकानदार भी सामान जमीन पर रख देता है.इस नियम का पालन कराने के लिए यहां के लोग इस पर कड़ी नजर रखते हैं.पर्यटकों के लिए इस गांव में रुकने की भी कोई सुविधा नहीं है. पर्यटक गांव के बाहर अपना टेंट लगाकर रात गुजारते हैं.