जानिए काला पानी की सजा से क्यों कांपते थे कैदी ?

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जानिए काला पानी की सजा से क्यों कांपते थे कैदी?

काला पानी की सजा से क्यों कांपते थे कैदी ?

अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर बनी सेल्युलर जेल आज भी काला पानी की दर्दनाक दास्तां सुनाती है। आज भले इसे राष्ट्रीय स्मारक में बदल दिया गया हो लेकिन बटुकेश्वर दत्त और वीर सावरकर जैसे अनेक सेनानियों की कहानी आज भी यह जेल सुनाती है।

सेल्युलर जेल भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय है। भारत जब गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा था, अंग्रेजी सरकार स्वतंत्रता सेनानियों पर कहर ढा रही थी। हजारों सेनानियों को फांसी दे दी गई, तोपों के मुंह पर बांधकर उन्हें उड़ा दिया गया। कई ऐसे भी थे जिन्हें तिल तिलकर मारा जाता था, इसके लिए अंग्रेजों के पास सेल्युलर जेल का अस्त्र था।

काला पानी की सजा

इस जेल को सेल्युलर इसलिए नाम दिया गया था, क्योंकि यहां एक कैदी से दूसरे से बिलकुल अलग रखा जाता था। जेल में हर कैदी के लिए एक अलग सेल होती थी। यहां का अकेलापन कैदी के लिए सबसे भयावह होता था।सुदूर द्वीप होने की वजह से यह विद्रोहियों को सजा देने के लिए अनुकूल जगह समझी जाती थी।

काला पानी

उन्हें सिर्फ समाज से अलग करने के लिए यहां नहीं लाया जाता था, बल्कि उनसे जेल का निर्माण, भवन निर्माण, बंदरगाह निर्माण आदि के काम में भी लगाया जाता था। यहां आने वाले कैदी ब्रिटिश शासकों के घरों का निर्माण भी करते थे। 19वीं शताब्दी में जब स्वतंत्रता संग्राम ने जोर पकड़ा, तब यहां कैदियों की संख्या भी बढ़ती गई।

टावर के ऊपर एक बहुत बड़ा घंटा लगा था, जो किसी भी तरह का संभावित खतरा होने पर बजाया जाता था।जेल में बंद स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को बेड़ियों से बांधा जाता था। कोल्हू से तेल पेरने का काम उनसे करवाया जाता था। हर कैदी को तीस पाउंड नारियल और सरसों को पेरना होता था।

यदि वह ऐसा नहीं कर पाता था तो उन्हें बुरी तरह से पीटा जाता था और बेडियों से जकड़ दिया जाता था।

काला पानी की सजा

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काला पानी जेल में भारत से लेकर बर्मा तक के लोगों को कैद में रखा गया था। एक बार यहां 238 कैदियों ने भागने की कोशिश की थी लेकिन उन्हें पकड़ लिया गया। एक कैदी ने तो आत्महत्या कर ली और बाकी पकड़े गए। जेल अधीक्षक वाकर ने 87 लोगों को फांसी पर लटकाने का आदेश दिया था।

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