आम चुनाव 2019 से पहले लालू करेंगे BJP-JDU में सेंधमारी

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भ्रष्टाचार के आरोपों और भाजपा-जदयू के सियासी बयानबाजी से बेपरवाह लालू प्रसाद अभी अपनी धुन में हैं। लोकसभा चुनाव के पहले लालू का फोकस अपने कुनबे को बचाने-बढ़ाने पर ज्यादा दिख रहा है। अपने दल के नेताओं की निगरानी के साथ-साथ राजद प्रमुख की नजर जदयू-भाजपा के वैसे नेताओं पर है जो किसी न किसी वजह से अपने नेतृत्व से खफा चल रहे हैं। ऐसे नेताओं के मनोबल को हवा देकर अपने प्रतिद्वंद्वियों की परेशानी बढ़ाने की लालू की यह पुरानी चाल है।

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अदालती चक्कर में फंसकर रांची-पटना करते रहने के बावजूद लालू प्रसाद इन दिनों राजनीतिक मोर्चे पर काफी सक्रिय हैं। उन्हें करीब से जानने वालों को पता है कि विरोधी जितनी ताकत से उनके ऊपर हमला करते हैं, उससे ज्यादा ताकत से वह प्रतिक्रिया देते हैं।

आरक्षण संबंधी बयान देकर तीन दिन पहले जदयू को असहज करने वाले उदय नारायण चौधरी एवं श्याम रजक का समर्थन करके लालू ने दो बातें स्पष्ट कर दी हैं। पहला यह कि राजद के मुद्दों की सूची में आरक्षण आज भी सबसे ऊपर है और दूसरा बागी नेताओं को हवा देकर वह जदयू-भाजपा को असहज करने में कोई कोताही नहीं बरतेंगे।

करीब तीन महीने पहले लालू प्रसाद ने इसी रणनीति के तहत जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद शरद यादव की बगावत को भी हवा दी थी। पटना के गांधी मैदान में राजद की 27 अगस्त की रैली में लालू ने जदयू के बागी नेताओं को मंच पर तरजीह देकर साफ कर दिया था कि बिहार में महागठबंधन के बिखरने और सत्ता से बेदखल करने वालों को आसानी से नहीं छोडऩे वाले हैं।  लालू ने जदयू को परेशान करने की नीयत से ही श्याम रजक एवं उदय नारायण चौधरी के बयानों का समर्थन कर उनका मनोबल बढ़ाने की कोशिश की है।
ऐसा नहीं कि लालू प्रसाद की यह सक्रियता सिर्फ जदयू के संदर्भ में ही है। भाजपा में भी वैचारिक सेंध लगाने की लालू लगातार कोशिश करते हैं। पटना सांसद एवं वरिष्ठ भाजपा नेता शत्रुघ्न सिन्हा के पार्टी लाइन से अलग दिए गए बयानों को भी लालू राजनीतिक तौर पर फ्लैश करते आए हैं। अपने आवास में शत्रुघ्न की खास खातिरदारी करके भी लालू यदा-कदा भाजपा को अपने राजनीतिक प्रताप से अवगत कराते रहते हैं।

केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के समर्थन में बयान देकर भी लालू राजग को असहज करते आए हैं।