नहीं होगी जज लोया की मौत की स्वतंत्र जांच- उच्चतम न्यायालय

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सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जज बीएच लोया की कथित रहस्यमय हालात में मौत की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली विभिन्न याचिकाओं को खारिज कर दिया है| जज लोया की मौत के मामले में स्वतंत्र की जाए या नहीं इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपना फैसला सुनाया| सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी की जांच वाली मांग की याचिका को ठुकरा दिया है|

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि जो जज मृतक लोया के साथ सफर कर रहे थे, उनके बयान पर शक नहीं किया जा सकता| दरअसल, इन जजों के बयान दोबारा रिकॉर्ड करने की मांग की गई थी| कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका को बदनाम करने की कोशिश की गई| अदालत के मुताबिक, राजनीतिक हित साधने के लिए इस तरह की याचिकाएं दाखिल की गईं| बता दें कि अदालत ने बीते शुक्रवार को मामले में फैसला देने के लिए इसे गुरुवार तक सुरक्षित रखा था| तब चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की पीठ ने सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा लिया था|

कोर्ट ने फैसला सुनाते वक्त आगे कहा कि जज लोया की मौत प्राकृतिक थी और इसमें कोई शक नहीं है| अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के वकील दुष्यंत दवे, इंदिरा जयसिंह और प्रशांत भूषण ने लोया के साथ नागपुर में मौजूद जजों की बात पर भरोसा न करने की बात कहकर सीधे न्यायपालिका पर सवाल उठा दिए| कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसे हालात में आदर्श स्थिति तो यही है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ अवमानना की प्रक्रिया शुरू की जाए| अदालत के मुताबिक, राजनीतिक लड़ाई की वजह से न्यायपालिका को बदनाम करने की कोशिश की गई|

गौरतलब है कि जज बीएच लोया की मौत की स्वतंत्र जांच को लेकर दाखिल याचिका पर महाराष्ट्र सरकार मे जांच का पुरजोर विरोध किया था| महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को जजों को सरंक्षण देना चाहिए| ये कोई आम पर्यावरण का मामला नहीं है जिसकी जांच के आदेश या नोटिस जारी किया गया हो| ये हत्या का मामला है और क्या इस मामले में चार जजों से संदिग्ध की तरह पूछताछ की जाएगी| ऐसे में वो लोग क्या सोचेंगे जिनके मामलों का फैसला इन जजों को करना है| ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को निचली अदालतों के जजों को सरंक्षण देना चाहिए|

nyay palika ko badnaam karne ki kosis 1 news4social -

वहीं महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश मुकुल रोहतगी ने कहा था कि ये याचिका न्यायपालिका को सकेंडलाइज करने के लिए की गई है| ये राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश है| सिर्फ इसलिए कि आरोपी सत्तारूढ पार्टी के अध्यक्ष हैं, उनपर आरोप लगाए जा रहे हैं| रोहतगी ने कहा कि यह असत्यापित मीडिया रिपोर्टों के आधार पर आरोपों से प्रेरित है और इसे योजनाबद्ध तरीके से दायर किया गया है क्योंकि ‘इससे एक बड़ी राजनीतिक पार्टी का पदाधिकारी जुड़ा हुआ है|’

उल्लेखनीय है कि जज लोया की मौत 30 नवंबर 2014 को संदेहस्पद परिस्थितियों में हुई और तीन साल तक किसी ने इस पर सवाल नहीं उठाए| ये सारे सवाल कारवां की नवंबर 2017 की खबर के बाद उठाए गए जबकि याचिकाकर्ताओं ने इसके तथ्यों की सत्यता की जांच नहीं की 29 नवंबर से ही लोया के साथ मौजूद चार जजों ने अपने बयान दिए हैं और वो उनकी मौत के वक्त भी साथ थे|

बता दें कि कांग्रेस नेता और सामाजिक कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला, बॉम्बे अधिवक्ता संघ, पत्रकार बंधुराज सम्भाजी लोन, एनजीओ सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) और अन्य ने जज लोया की मौत की स्वतंत्र जांच करने की मांग की थी| जज लोया, सोहराबुद्दीन शेख के कथित फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे थे जिसमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अध्यक्ष अमित शाह भी आरोपी थे| बाद में अमित शाह को इस मामले में बरी कर दिया गया था|