मध्यप्रदेश की राजनीति में एक नया रुख देखने को मिल रहा है। यह साफ़ तोर पर कहा जा सकता है की इतिहास ने एक बार फिर खुद को दोहराया है, कांग्रेस पार्टी का जाना-माना नाम ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी का दामन छोड़ बीजेपी पार्टी की तरफ आपने रुख कर लिया है।
इसी के साथ 22 विधायकों ने भी कांग्रेस पार्टी से दर किनार कर लिया है और अब पार्टी को अपना इस्तीफा सौंप दिया है। ऐसा ही कुछ मंजर नरसिम्हा राव की सरकार के दौरान भी देखने को मिला था , जब हवाला केस में माधवराव सिंधिया का नाम उछला गया। इसकी वजह से लोकसभा चुनाव में सिंधिया को टिकट देने से इनकार कर दिया गया। नाराज सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी।
मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस’ नाम से नई पार्टी बनाई। वह अपनी नई पार्टी से चुनाव लड़े और कांग्रेस के उम्मीदवार को हराया और दो साल बाद ही उन्होंने एक बार फिर से कांग्रेस पार्टी जॉइन कर ली थी।
सन् 1999 मध्यावधि चुनाव में एक बार फिर से माधवराव सिंधिया का ढंका बजा ,माधवराव सिंधिया एक बार फिर गुना से मैदान में थे। सिंधिया को वहाँ की जनता ने निराश नहीं किया। देशराज सिंह को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया, लेकिन वे सिंधिया के समक्ष कमज़ोर प्रत्याशी साबित हुए थे। चुनाव-प्रचार से लेकर परिणाम तक सिंधिया ने जो बढ़त बनाई, वो उनके करिश्मे को साबित करने वाली थी। वे क़रीब ढाई लाख वोटों से जीते। शिवपुरी ज़िले की चारों विधानसभा सीटों पर उनकी बढ़त 141000 से ज़्यादा रही। गुना ज़िले की चार विधान सभा सीटों पर भी उन्हें अधिक वोट मिले। यह सिंधिया की लगातार नवीं जीत थी।
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वही दिल्ली से कानपुर में एक रैली को सम्बोधित करते हुए वो 2001 में एक वायुयान दुर्घटना के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। माधवराव सिंधिया ने नरसिम्हा राव की सरकार के दौरान नागरिक उड्डयन मंत्रालय,पर्यटन मंत्री और मानव संसाधन विकास जैसे मंत्रालय संभाले थे। माधवराव सिंधिया अपनी आखिरी सांस तक कांग्रेस पार्टी से जोड़े रहे।