Mamta Banerjee News: जय महाराष्ट्र, के नारे से महाराष्ट्र साधने की कोशिश में ममता! समझिए जय महाराष्ट्र, जय बंगाल का सियासी समीकरण

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Mamta Banerjee News: जय महाराष्ट्र, के नारे से महाराष्ट्र साधने की कोशिश में ममता! समझिए जय महाराष्ट्र, जय बंगाल का सियासी समीकरण

हाइलाइट्स

  • पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दो दिन के मुंबई दौरे पर हैं
  • बुधवार को ममता बनर्जी एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मिलेंगी
  • मंगलवार को वे आदित्य ठाकरे और संजय राउत से मिली थीं
  • गोवा में वो सियासी जमीन तैयार करने की कोशिश में हैं

मुंबई
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को मुंबई में दाखिल होते ही सिद्धिविनायक मंदिर में गणपति बप्पा के दर्शन किए और ठाकरे सरकार का धन्यवाद भी अदा किया। इस दौरान दीदी ने ‘जय मराठा, जय बंगला’ का नारा भी दिया। आखिर इस नारे के पीछे ममता बैनर्जी का क्या सियासी मकसद है। आज इसी नारे के राजनीतिक नफा- नुकसान को हम समझने की कोशिश करेंगे।

जय मराठा से महाराष्ट्र साधने की कोशिश?
ममता बनर्जी ने मुंबई में पहुंचकर ‘जय मराठा’ का नारा दिया है। हालांकि यह दीदी की सियासी मजबूरी भी हो सकती है। उनके इस नारे पर अब राजनीतिक पंडितों का मानना है कि दीदी इस नारे से महाराष्ट्र को साधने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन ममता बनर्जी को खुद यह समझना चाहिए कि जिस शिवसेना और एनसीपी से दोस्ती रखकर वह प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रही हैं। वह इतना आसान नहीं है क्योंकि यही सपना शरद पवार और शायद उद्धव ठाकरे भी देख रहे हैं। यह सपना भी तभी पूरा हो सकता है, जब थर्ड फ्रंट का निर्माण हो और सभी बीजेपी विरोधी दल एकजुट हों, हालांकि इनमें एकजुटता कहीं भी नजर नहीं आती है। हर दल अपने नफा-नुकसान को देखने में जुटा हुआ है। इसी कमजोर विपक्ष और एकजुटता की कमी का फायदा प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी नेता उठा रहे हैं।

थर्ड फ्रंट के नेता पर मतभेद
देश में मोदी सरकार के खिलाफ थर्ड फ्रंट बनाने की कोशिशें काफी सालों से शुरू है। कई बार आपने पढ़ा और सुना होगा कि शरद पवार की अगुवाई में थर्ड फ्रंट बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इस थर्ड फ्रंट में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस, अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, बिहार में आरजेडी और कांग्रेस समेत अन्य बीजेपी विरोधी दल एक छाते के नीचे आकर मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने की कोशिश करने वाले थे। हालांकि सरकार हालांकि थर्ड फ्रंट बन पाता है उसके पहले ही इन दलों के बीच में सिर फुटौवल देखने को मिल रहा है। अगर थर्ड फ्रंट बना तो किसकी अगुवाई में बनेगा? यदि इनकी सरकार बनी तो प्रधानमंत्री कौन बनेगा? इन तमाम बातों पर पहले से ही मतभेद शुरू हो चुका है। इन तमाम अवरोधों की वजह से थर्ड फ्रंट बनने की राह भी काफी मुश्किल नजर आ रही है।

ममता बनर्जी की कांग्रेस से दूरी
वहीं बंगाल जीतने के बाद ममता बनर्जी ने कांग्रेस से दूरियां बनानी शुरू कर दी हैं। मौजूदा समय में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच में जबरदस्त तनाव हैं। इस तनाव के पीछे दीदी की महत्वाकांक्षा भी है। दीदी भविष्य में देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रही हैं। यह तभी संभव हो सकता है जब कमान ममता बनर्जी के हाथ में हो। हालांकि यह सपना हर क्षेत्रीय दल देख रहा है। जो थर्ड फ्रंट में शामिल होकर मोदी सरकार को गिराने के लिए प्रयास करने वाला है। फिर चाहे वो समाजवादी पार्टी हो, आम आदमी पार्टी हो या महाराष्ट्र की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार हों।

कांग्रेस के बिना थर्ड फ्रंट संभव!
ममता बनर्जी की कांग्रेस पार्टी से दूरियां जग जाहिर हैं लेकिन क्या थर्ड फ्रंट का निर्माण कांग्रेस पार्टी के बगैर हो सकता है और क्या थर्ड फ्रंट को कभी कांग्रेस की जरूरत नहीं लगेगी? क्षेत्रीय दलों को यह समझना होगा कि उनका राजनीतिक विस्तार कांग्रेस पार्टी की तुलना में काफी कम है । ऐसे में बिना कांग्रेस के किसी तीसरे, चौथे थर्ड फ्रंट की कल्पना नहीं की जा सकती हैं। आज नहीं तो कल विपक्षी दलों को कांग्रेस का दामन थामना ही होगा। वहीं कांग्रेस पार्टी के नेता भी थर्ड फ्रंट को कांग्रेस के झंडे तले रखना चाहते हैं, यानी थर्ड फ्रंट पर आधिपत्य कांग्रेस पार्टी का होना चाहिए।

अखिलेश यादव भी दावेदार!
कहते हैं कि दिल्ली के तख्त का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है। मौजूदा समय में अगले साल उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। जहां कई सीटों पर बीजेपी और समाजवादी पार्टी में कांटे की टक्कर है। खुद कांग्रेस के लिए अमेठी की सीटों को बचा पाना भी टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। ऐसे में यदि उत्तर प्रदेश की सत्ता में अखिलेश यादव की वापसी होती है तो वह भी थर्ड फ्रंट के कमान की जिम्मेदारी हासिल करने का दावा पेश कर सकते हैं। वैसे भी जिन सात राज्यों में जीती गई सीटों के आधार पर केंद्र में सरकार बनाई जाती है। जहां पर ममता बनर्जी का कोई खास जनाधार या रसूख नजर नहीं आता।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी

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