Mamta Banerjee News: मोदी के एजेंडे से मेल खाते ममता के तेवर, कांग्रेस के लिए मुसीबत का सबब

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Mamta Banerjee News: मोदी के एजेंडे से मेल खाते ममता के तेवर, कांग्रेस के लिए मुसीबत का सबब

हाइलाइट्स

  • महाराष्ट्र की राजनीति में ममता बनर्जी का कोई राजनीतिक महत्व नहीं
  • बीजेपी और मोदी के खिलाफ विपक्ष को लामबंद करने की जो पहल कांग्रेस की तरफ से होनी चाहिए थी
  • शिवसेना और एनसीपी के साथ ममता की नजदीकी कांग्रेस के लिए मुसीबत का सबब

मुंबई
मुंबई की ‘गल्ली’ से लेकर दिल्ली तक राजनीतिक हलकों में यह सवाल चर्चा में है कि क्या पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के तेवर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के एजेंडे का ही अगला संस्करण हैं। चर्चा यह भी है कि क्या दिन पर दिन कमजोर होती जा रही कांग्रेस क्षेत्रीय क्षत्रपों की ताकत के नीचे दब जाएगी? क्या पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, महाराष्ट्र में शरद पवार, पंजाब में कैप्टन अमरिंदर जैसे कांग्रेस से निकले क्षेत्रीय क्षत्रप ही कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील ठोकने का काम करेंगे।

ममता की हालिया मुंबई यात्रा के बाद मुंबई से लेकर दिल्ली तक कांग्रेसी नेताओं में जो छटपटाहट है, क्या यही उसका सबब है? खुली सड़क के इन सवालों पर 10 जनपद के बंद दरवाजों के भीतर मंथन होना बहुत जरूरी है। कहते हैं जब पानी का बहाव रुक जाता है, तो वह कीचड़ बन जाता है और कमल हमेशा कीचड़ में ही खिलता है। इसीलिए जरूरी है कि पानी को बहने देने के लिए कांग्रेस को अपने बंद दरवाजे खोलने होंगे। ममता की चुनौती के बाद कांग्रेस के बड़े नेता भी निजी बातचीत में यह स्वीकार करते हैं बीजेपी और मोदी के खिलाफ विपक्ष को लामबंद करने की जो पहल ममता बनर्जी या शरद पवार करते दिख रहे हैं, दरअसल वह पहल कांग्रेस की तरफ से होनी चाहिए थी। लेकिन, 7 साल से सत्ता से बाहर रहने के बावजूद कांग्रेस नेतृत्व बीजेपी के लिए चुनौती पैदा नहीं कर पाया।

ममता की मुंबई यात्रा के मायने
महाराष्ट्र की राजनीति में ममता बनर्जी की मुंबई यात्रा के मायने तलाशे जा रहे हैं। बीजेपी बेफिक्र है और शरद पवार सदा की तरह सतर्क। शिवसेना निश्चिंत है, लेकिन कांग्रेस की कसमसाहट बढ़ती जा रही है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि महाराष्ट्र की राजनीति में ममता बनर्जी का कोई राजनीतिक महत्व नहीं है और न ही एनसीपी औए शिवसेना उनका महत्व बनने देंगी। ममता भी इस बात को अच्छी तरह जानती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी गैर राजनीतिक मुंबई यात्रा में ठाकरे और पवार को ही महत्व दिया। यहां तक तो ठीक था, लेकिन ममता ने यूपीए को खारिज करके एक तरह से यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी और कांग्रेस के वारिस समझे जा रहे राहुल गांधी पर बिना नाम लिए टिप्पणी की।

इसका जो संदेश पूरे देश में गया, वह राष्ट्रीय राजनीति में गांधी परिवार और कांग्रेस को खारिज कर खुद को राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित करने का था। इस संदेश को मजबूती प्रदान करने में एनसीपी और शिवसेना जिस तरह ममता के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं, वह दृश्य कांग्रेसियों को डरा रहा है। हालांकि, महा विकास आघाडी गठबंधन के बीच इस बिगड़ते तालमेल से बीजेपी खुश है।

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